ॐ सांई राम~~~
क्या करूं कैसे संभालू
ये मन संभले न संभलता है,
जितना चांहू बस में करना
उतना उङता जाता है,
जितना चांहू बाँध के रखना
उतने पर फैलाता है,
छोटा कितना है ये मन
पर न जाने कितने पंख फैलाए हैं,
इस मन का पेट कभी न भरता
रोज़ नई ख्वाइश रखता है,
जब मैं चैन से बैठना चाहूं
यही मुझे तंग करता है,
मेरा मन तो चाहे कि मन ही न हो
बस फिर कोई झंझट ही न हो,
हे सांई यह कृपा कर दो
इस मन को बस में कर दो
इसके पंख काट डालो या फिर मुझे तुम अपना लो~~~
जय सांई राम