Tuesday, December 22, 2009

तो साईं मिलेंगे

ओम साईं राम

तो साईं मिलेंगे

नीयत हो अच्छी
कमाई हो सच्ची
तो साईं मिलेंगे

मन में उमंग हो
दरस की तरंग हो
तो साईं मिलेंगे

मुख पर जाप हो
ह्रदय नाम व्याप हो
तो साईं मिलेंगे

करुणा का भाव हो
धर्म का मार्ग हो
तो साईं मिलेंगे

दया हो, धृत्ति हो
सत्कार्य की वृत्ति हो
तो साईं मिलेंगे

हरिजन से भी प्यार हो
भेदभाव ना स्वीकार हो
तो साईं मिलेंगे

प्रेम का सागर हो
बुद्दि उजागर हो
तो साईं मिलेंगे

दिशा का ग्यान हो
मार्ग की पहचान हो
तो साईं मिलेंगे

सुख दुख में सम भाव हो
घमंड का अभाव हो
तो साईं मिलेंगे

हर हाल में आनंद हो
ह्र्दय में परमानन्द हो
तो साईं मिलेंगे

दर्द से नाता हो
याद वो विधाता हो
तो साईं मिलेंगे

~ Sai Sewika
जय साईं राम

आ जाओ अब मेरे साईं

ओम साईं राम

आ जाओ अब मेरे साईं

आ जाओ अब मेरे साईं
ऐसे आओ तुम
मेरे मन में आन बसो और
फिर ना जाओ तुम

मेरी जैसी चाल देख लो
तुम बिन जो है हाल देख लो
अगर तुम्हें मैं भा जाऊं तो
यहीं बस जाओ तुम

पूजा अर्पण सब को परखो
मन के आंदर झांको निरखो
जो कोई भी मैल ना पाओ
यहीं रस जाओ तुम

कविता पढ लो मेरे मन की
शब्दों से जो छेड छाड की
तुमको अच्छी जो लग जाए
कुछ मुस्काओ तुम

मेरा भक्ती भाव देख लो
साईं मिलन का चाव देख लो
जो इसमें पूरी उतरूं तो
दरस दिखाओ तुम

मेरे तरसे नैना देखो
कटे ना काली रैना देखो
नाथ तार दो अब तो आकर
ना तरसाओ तुम

~Sai Sewika

जय साईं राम

साईं की चक्की लीला

ॐ साईं राम

साईं की चक्की लीला

एक दिवस हेमाड जी
पहुँचे द्वारकामाई
लीला की तैयारी करके
बैठे थे प्रभु साईं

कपडा एक बिछाकर प्रभु ने
चक्की रक्खी उस पर
गेहूँ डाला, लगे पीसने
आटा साईं गुरूवर

बाबा की लीला लखने को
उमडी जनता सारी
कोई समझ सका ना लीला
बाबा जी की न्यारी

चार स्त्रियाँ आगे बढकर
पहुँची साईं के पास
जबरन चक्की ले लेने का
करने लगी प्रयास

पहले क्रोधित हुए, शाँत फिर
हो गए बाबा साईं
पीछे हटकर बाबा ने थी
चक्की उन्हें थमाई

चक्की पीसते, रही सोचती
चारों ही ये बात
इस आटे की उनको ही
बाबा देंगे सौगात

घर द्वार नहीं है बाबा का
ना वो रसोई बनाते
पाँच घरों से माँग के भिक्षा
बाबा काम चलाते

यही सोचते, गाकर गीत
सारा गेहूँ पीसा
आपस में बाँट के आटा
चली ले अपना हिस्सा

उनको देख ले जाते आटा
क्रुद्ध हो गए साईं
एक गरजती वाणी फिर थी
उनको पडी सुनाई

किसकी सँपत्ति समझ कर तुम
ले जाती हो आटा
कर्ज़दार का माल नहीं जो
आपस में है बाँटा

जाओ, इस आटे को
गाँव की सीमा पर ले जाओ
सारे आटे की इक रेखा
सीमा पर बिखराओ

हुए अचँभित शिरडी वासी
आदेश साईं का पा कर
आटा बिखराया शिरडी की
सीमा पर ले जा कर

चहूँ ओर प्लेग था फैला
छाई थी महामारी
सरक्षित शिरडी को करने की
थी उनकी तैयारी

भक्तों ने साईं लीला का
पाया मधुर सुयोग
रही सदा सुरक्षित शिरडी
फैला ना कोई रोग

हुए रोमाँचित हेमाड जी
देख साईं की लीला
भक्ति रस से हो गया
उनका तन मन गीला

उपजा पावन हृदय में
अति उत्तम सुविचार
साईं की गाथा लिखी तो
होगा बेडा पार

भक्तों का कल्याण करेंगी
बाबा की लीलाएँ
सुने गुनेगा जो कोई उसके
पाप नष्ट हो जाएँ

शामा जी ने करी प्रार्थना
बाबा जी के आगे
मिली स्वीकृति गाथा लिखने की
भाग्य हेमाड के जागे

ऐसे लीला रच बाबा ने
दाभोलकर को चेताया
माध्यम उन्हें बना कर अपना
अमृत रस बरसाया

मुदित हुए सब भक्त जो पाया
सच्चरित्र का दान
श्रद्धा प्रेम की लहर उठी तो
मिटा घोर अज्ञान

~Sai Sewika

जय साईं राम

Thursday, December 10, 2009

दिनचर्या

ॐ साईं राम

दिनचर्या

हाथ जोड वँदन करूँ
परम दयामय नाथ
स्व भक्तों के भाल पर
रखना अपना हाथ


प्रातः काल.........


नित प्रातः वँदन करूँ
रवि किरणों के सँग
तेरे नाम सुनाम का
पाऊँ मैं मकरन्द

तेरे पूजन अर्चन से
सुबह शुरू हो मेरी
श्रद्धा मन में धार कर
करूँ सुभक्ति तेरी


दिन भर...............


सिमर सिमर तुझे हे प्रभु
बीते मेरा दिन
कर्मशील बन कर रहूँ
काटूँ मैं पलछिन्न

दिन बीते शुभ कर्म में
कर पाऊँ उपकार
किसी प्राणी के लिए प्रभु
हृदय में ना हो रार

मेरे कारण साईं नाथ
दुखी ना कोई होवे
बुरा समय जो आवे तो
मन ना आपा खोवे

करते जगत के कार्य भी
तुझे भजूँ हे ईश
रसना से तव नाम मैं
तजूँ नहीं जगदीश


साँय काल.............


साँय काल के समय में
ध्याऊँ तुझे अभिराम
सँध्या, कीर्तन, भजन में
बीते मेरी शाम

दिन जैसे भी बीता हो
शान्त रहे मेरा मन
बोझिल ना हो आत्मा
ना बोझिल हो तन


रात्रि काल.............


निद्रा का जब समय हो
ध्याऊँ तुझे हे देव
सोते में भीतर चले
साईं नाम सदैव

सपने में साईं नाथ मेरे
मैं शिरडी हो आऊँ
सुषुप्ता अवस्था में प्रभु
दर्शन तेरा पाऊँ

ऐसे तेरा नाम ले
सोऊँ, जागूँ, जीऊँ
साईं तेरे नाम का
अमृत प्याला पीऊँ

~Sai Sewika

जय साईं राम

Wednesday, December 9, 2009

साईं नाम चालीसा

ॐ साईं राम

साईं नाम चालीसा

दो अक्षर से मिल बना
साईं नाम इक प्यारा
लिखते जाओ मिट जाएगा
जीवन का अँधियारा


ॐ साईं राम है
महामंत्र बलवान
इस मंत्र के जाप से
साईं राम को जान


ॐ साईं राम कह
ॐ साईं राम सुन
साईं नाम की छेड ले
भीतर मधुर मधुर सी धुन


जागो तो साईं राम कहो
जो भी सन्मुख आए
साईं साईं ध्याये जो
सो साईं को पाए


साईं नाम की माला फेरूँ
साईं के गुण गाऊँ
यहाँ वहाँ या जहाँ रहूँ
साईं को ही ध्याऊँ


साईं नाम सुनाम की
जोत जगी अखँड
नित्य जाप का घी पडे
होगी कभी ना मन्द


भक्ति भाव की कलम है
श्रद्धा की है स्याही
साईं नाम सम अति सुंदर
जग में दूजा नाहीं


साईं साईं साईं साईं
लिख लो मन में ध्यालो
साईॅ नाम अमोलक धन
पाओ और संभालो


साईं नाम सुनाम है
अति मधुर सुखदायी
साईं साईं के जाप से
रीझे सर्व सहाई


सिमर सिमर मनवा सिमर
साईंनाथ का नाम
बिगडी बातें बन जाऐंगी
पूरण होंगे काम


बिन हड्डी की जिव्हा मरी
यहां वहां चल जाए
साईं नाम गुण डाल दो
रसना में रस आए


सबसे सहज सुयोग है
साईं नाम धन दान
देकर प्रभू जी ने किया
भक्तों का कल्याण


घट के मंदिर में जले
साईं नाम की जोत
करे प्रकाशित आत्मा
हर के सारे खोट


साईं नाम का बैंक है
इसमें खाता खोल
हाथ से साईं लिखता जा
मुख से साईं बोल


साईं नाम की बही लिखी
कटे कर्म के बन्ध
अजपा जाप चला जो अन्दर
पाप अग्नि हुई मन्द


साईं नाम का जाप है
सर्व सुखों की खान
नाम जपे, सुरति लगे
मिटे सभी अज्ञान


मूल्यवान जिव्हा बडी
बैठी बँद कपाट
बैठे बैठे नाम जपे
अजब अनोखे ठाठ


मुख में साईं का नाम हो
हाथ साईं का काम
साईं महिमा कान सुने
पाँव चले साईं धाम


साईं नाम कस्तूरी है
करे सुवासित आत्म
गिरह बँधा जो नाम तो
मिल जाए परमात्म


साईं नाम का रोकडा
जिसकी गाँठ में होए
चोरी का तो डर नहीं
सुख की निद्रा सोए

साईं नाम सुनाम का
गूँजे अनहद नाद
सकल शरीर स्पंदित हो
उमडे प्रेम अगाध

मन रे साईं साईं ही बोल
मन मँदिर के पट ले खोल
मधुर नाम रस पान अमोलक
कानों में रस देता घोल

श्री चरणों में बैठ कर
जपूँ साईं का नाम
मग्न रहूँ तव ध्यान में
भूलूँ जाग के काम

साईं साईं साईं जपूँ
छेड सुरीली तान
रसना बने रसिक तेरी
करे साईं गुणगान

साईं नाम शीतल तरू
ठँडी इसकी छाँव
आन तले बैठो यहीं
यहीं बसाओ गाँव

साईं नाम जहाज है
दरिया है सँसार
भक्ति भव ले चढ जाओ
सहज लगोगे पार

साईं नाम को बोल कर
करूँ तेरा जयघोष
रीझे राज धिराज तो
भरें दीन के कोष

बरसे बँजर जीवन में
साईं नाम का मेघ
तन मन भीगे नाम में
बढे प्रेम का वेग

उजली चादर नाम की
ओढूँ सिर से पैर
मैं भी उजली हो गई
तज के मन के वैर

सिमरन साईं नाम का
करो प्रेम के साथ
धृति धारणा धार कर
पकड साईं का हाथ

साईं नाम रस पान का
अजब अनोखा स्वाद
उन्मत्त मन भी रम गया
छूटे सभी विषाद

साईं नाम रस की नदी
कल कल बहती जाए
मलयुत्त मैला मन मेरा
निर्मल करती जाए

साईं नाम महामँत्र है
जप लो आठो याम
सकल मनोरथ सिद्ध हों
लगे नहीं कुछ दाम

साईं नाम सुयोग है
जो कोई इसको पावे
कटे चौरासी सहज ही
भवसागर तर जावे

पारस साईं नाम का
कर दे चोखा सोना
साईं नाम से दमक उठे
मन का कोना कोना

साईं नाम गुणगान से
बढे भक्ति का भाव
श्रद्धा सबुरी सुलभ हो
चढे मिलन का चाव

मनवा साईं साईं कह
बनके मस्त मलँग
साईं नाम की लहक रही
अन्तस बसी उमँग

सरस सुरीला गीत है
साईं राम का नाम
तन मँदिर सा हो गया
मन मँगलमय धाम

पू्र्ण भक्ति और प्रेम से
जपूँ साईं का नाम
श्री चरणों में गति मिले
पाऊँ चिर विश्राम

~Sai Sewika

जय साईं राम

बाबा जी के भक्त- ७ ( बायजा माँ )

ॐ साईं राम

बाबा जी के भक्त- ७ ( बायजा माँ )

तात्याकोते की जननी थी
बायजा बाई नाम था
साईं साईं रटती रहती
उनका यही तो काम था

नैवेद्य अर्पण नित्त करती थी
बाबा को अति भाव से
साईं भी स्वीकार करते
अर्पण को अति चाव से

कभी कभी तो बाबा प्यारे
जँगल में चले जाते थे
भूखे प्यासे तप करते थे
द्वारकामाई ना आते थे

तब बायजा माँ, रोटी साग
भर कर एक भगोने में
खोजा करती थी साईं को
वन के कोने कोने में

जब तक साईं ना मिल जाते
बायजा ना वापिस आती
स्वँय हाथ से उन्हें खिलाकर
माता फिर तृप्ति पाती

साईं नाथ भी बडे प्रेम से
उनको माता कहते थे
प्रेम भरा आशिष और डाँट
दोनो बाबा सहते थे

महाभाग थे बायजा माँ के
ईश्वर का था साथ मिला
उनके जीवन के आँगन में
साईं भक्ति का फूल खिला

अँत समय तक बाबा जी ने
सेवा उनकी रक्खी याद
माता पुत्र के जीवन में
कृपा वृष्टियाँ करी अगाध

~Sai Sewika

जय साईं राम

Tuesday, December 8, 2009

विडम्बना

ॐ साईं राम

विडम्बना

वहाँ दूर, बहुत दूर
जहाँ ज़मीन और आसमान
मिलते हुए दिखाई देते हैं
मिलते हैं क्या ?
नहीं.........
ज़मीन यहाँ नीचे
आसमान......बहुत ऊपर
ना ज़मीन ऊपर जाती है
ना आसमान नीचे आता है
फिर भी लगता है
दोनो मिल रहे हैं
आँखे देखती हैं एक अद्भुत दृश्य
जो होता है बस आँखो का धोखा
और उस धोखे का सुन्दर सा नाम
"क्षितिज"


कभी रेगिस्तान में
प्यास से तडपते हुए
पानी की तलाश की है?
लगता है......कुछ ही दूरी पर
ठँडा चमकीला पानी है
बस पास गए..........अँजुलि भरी
और तृषा समाप्त
लेकिन वहाँ पानी होता है क्या?
नहीं..........होती है सिर्फ गर्म रेत
पैरों और आत्मा को झुलसाती हुई........
होती है तो सिर्फ "मृग मरीचिका"
हिरण दौडते जाते हैं
आगे और आगे
पानी नहीं मिलता
मिलती है सिर्फ
धोखे में आने की सज़ा


कभी बारिश के बाद
दूर आसमान में उग आए
"इन्द्रधनुष" को देखा है?
दुनिया के सुन्दरतम रँगो को
अपने में समेटे हुए.......
कैसा आश्चर्य है
आँखो को दिखते तो हैं
पर रँग होते ही नहीं
होती है सिर्फ प्रतिच्छाया
और सूरज तुम्हारे पीछे ना हो
तो देख भी ना पाओगे उसे


आसमान और पानी
नीले दिखते हैं
पर होते हैं क्या?
नहीं
असल में होते हैं
रँग हीन
जो दिखता है
वो तो है ही नहीं


ऐसा ही है ये सँसार
आँखो के सामने है भी
पर सत्य नहीं
अभी है अभी नहीं रहेगा
फिर भी हम भागते हैं
उसके पीछे...........
और खुश हैं
अपने "क्षितिज" को निहारते हुए
"मृगमरीचिका" में दौडते हुए
और अपने "इन्द्रधनुष" को सराहते हुए
कैसी विडम्बना है
हम झूठ को सच की तरह जीते जाते हैं
रेत में पानी ढूँढते हुए मृग की तरह

जय साईं राम

किंकर मुझे बना ले

ॐ साईं राम

किंकर मुझे बना ले

श्री चरणों के दास की
इतनी है अरदास
जैसे चाहे रखना साईं
पर रखना तुम पास

तुम्हें थमा दी है अब मैंने
इस जीवन की डोर
सब कुछ छोडा तुम पर साईं
ले जाओ जिस ओर

तू ही मेरा सगा सँबंधी
तू ही मेरा प्यारा
तू ही पालक तू ही दाता
तू ही है रखवाला

तेरे मन में है जो दाता
वो है मुझको करना
तेरी मरजी से जीना है
तेरी मरजी मरना

तेरे इशारे पर मैं जागूँ
अपनी आँखे खोलूँ
तेरी लीला सुनूँ सुनाऊँ
तेरी बानी बोलूँ

तुझको तुझसे माँगूं दाता
तेरी भक्ति पाऊँ
तेरी चर्चा में दिन बीते
तेरी महिमा गाऊँ

साईं साईं करके दाता
जीवन अपना काटूँ
तेरा नाम इक्ट्ठा कर लूँ
तेरा नाम ही बाँटूं

तेरी करनी में सुख पाऊँ
सब कुछ तुझ पे छोडूँ
दुनिया के सब तोड के बँधन
तुझसे नाता जोडूँ

अपने द्वारे रख ले साईं
किंकर मुझे बना ले
सेवादार बना ले, मेरी
सेवा को अपना ले

~Sai Sewika

जय साईं राम

सांई तेरी आँखें~~~

ॐ सांई राम!!!

सांई तेरी आँखें~~~

जब जब देखूं मैं तेरी आँखों में सांई,
लगता है ये कुछ तो बोल रही है,
मेरी आँखों की नमी तेरी आँखों मैं सांई,
लगता है राज़ ये कुछ तो खोल रही है~

सांई तुझसे एक मुलाकात पर लुटा दूँ,
मैं सारी दुनिया की दौलतें,
पर ये भी तो सच है मेरे सांई,
इस मुलाकात तो कोई मोल नहीं है,
मेरी आँखों की नमी............

जब भी सांई मैने तुझे है पुकारा,
तेरी प्रीत ने दिया है हर मोङ पर सहारा,
मेरी प्रीत को शायद लगता है सांई,
अब तेरी प्रीत भी तोल रहे है,
मेरी आँखों की नमी............

सहना पङा है तुझ को भी मेरी,
खातिर बहुत कुछ सांई,
ना छुपा पाया तूँ भी कुछ मुझ से सांई,
तेरी आँखें हर पोल खोल रही है,
मेरी आँखों की नमी............

रंग गया है लगता है तूँ भी सांई,
प्रीत क कुछ अज़ब ही रंग है,
रंग ले मुझको भी इस रंग में सांई,
तेरी "सुधा" कब से ये रंग घोल रही है~~~

~सांईसुधा

SAI SUDHA {Poems in Hindi}

जय सांई राम!!!

साईं का प्यार

ओम साईं राम

अगर साईं का प्यार एक समन्दर है
तो मैं इसमें डूब जाना चाहती हूं
किनारे की कोई ललक नहीं मुझको
मैं तो लहर बनके इसमें समाना चाहती हूं

अगर साईं का प्यार एक तपता सूरज है
तो मैं इसमें झुलस जाना चाहती हूं
मैं वो शै नहीं जो आग से डरूं
मैं खुद को इसमें तपाना चाहती हूं

अगर साईं का प्यार एक रास्ता है
तो मैं इस पर चलते जाना चाहती हूं
कंकडों पत्थरों की परवाह नहीं है मुझे
मैं तो रास्ते की धूल बन जाना चाहती हूं

अगर साईं का प्यार एक मन्ज़िल है
तो मैं उस मन्ज़िल को पाना चाहती हूं
साईं मैं तेरे कदमों में आ पडी हूं
यहीं अपना आखिरी ठिकाना चाहती हूं

~साईं सेविका

जय साईं राम


Tuesday, December 1, 2009

बाबा जी के भक्त -६ ( हेमाडपँत जी )

ॐ साई राम

बाबा जी के भक्त -६ ( हेमाडपँत जी )

साईं सच्चरित्र रचयिता
गोविंदराम था नाम
जीवन गाथा लिख साईं की
पाया योग सुनाम

नाना साहब की प्रेरणा से
शिरडी धाम पधारे
बाबाजी के दर्शन पाए
अति सुन्दर अति प्यारे

प्रथम परिचय था इतना अनुपम
क्षुधा तृषा सब भूले
श्री चरणों का स्पर्श जो पाया
सुख के पल्लव फूले

अहम भाव सब किया समर्पण
साईं नाथ के आगे
हेमाडपँत की पाई उपाधि
सुकर्म भक्त के जागे

बाबा जी की लीला लिखी
मधुर किया गुणगान
भक्त जनों पर अनुग्रह करके
पाया यश और मान

बाबा जी ने कृपा करी
अन्तस्थल में आन बसे
सच्चरित्र के शब्द शब्द से
श्रद्दा और भक्ति रसे

समय समय पर साईं नाथ ने
साक्षात्कार करवाया
होलिकोत्सव के उत्सव में
चित्र अपना भिजवाया

बाबा जी की लीलाओं को
हेमाडपँत निरखते रहे
दिव्यचक्षु पा साईं नाथ से
चरित्र चित्रण करते रहे

साईं सँस्थान की वित्त व्यवस्था
करी कुशलता सँग
कार्य संभाल कर सँस्थान के
किया सभी को दँग

बने मील के स्तम्भ हेमाड जी
सब को राह दिखाने वाले
प्रत्येक भक्त के हृदय पटल में
अनुपम प्रेम जगाने वाले

सूरज चँदा तारे जब तक
इस दुनिया में चमकेंगे
भक्तों के तारागण में हेमाड
ध्रुव तारे सम दमकेंगे

~SaiSewika

जय साईं राम

Monday, November 23, 2009

काश, ऐसा होता मेरे सांई~~~

ॐ सांई राम!!!

काश, ऐसा होता मेरे सांई~~~

काश मेरे सांई मैं तेरे दर की पवन बन जाती,
छूं कर तुझको मैं खुद पर ही इतराती,
खुशबूं लेकर तेरी मैं हर जगह मंडराती,
सांई तुझसे दूर नहीं है सब को ये समझाती,
काश मेरे सांई मैं.................

काश मेरे सांई मैं तेरे दर की बरखा मैं बन जाती,
तेरे पावन चरणों को अपने जल से मैं धूलाती,
अमृत बन वो जल मैं फिर सबको ही पिलाती,
होता जो सुख का अहसास मैं खुद को ही भुलाती,
काश मेरे सांई मैं.................

काश मेरे सांई मैं तेरे दर का झाडू बन जाती,
तेरे आँगन को साफ कर कर खूब चमकाती,
तेरे भक्तों को फिर मैं उस आँगन में बैठाती,
तेरा नाम जब लेते वो मैं भी पुन्य कमाती,
काश मेरे सांई मैं......................

काश मेरे सांई मैं तेरे दर का दीपक बन जाती,
जलता जब वो दीपक मैं भी तुझसे लौ लगाती,
रोशनी दे दे कर अपनी भक्तों को राह दिखाती,
टूट जाता जब वो दीपक तुझ में ही समाती,
काश मेरे सांई मैं......................

काश मेरे सांई मैं तेरे दर का दीपक बन जाती,
काश मेरे सांई मैं तेरे चरणों का पोष्प बन जाती,
चूमती बार-बार तेरे चरण और खुश्बूं बिखराती,
अरमानों से चङाया हो जिसने उसका शुक्र मनाती,
पूरी हो जाए उसकी हर आशा ऐसा तुझसे कह पाती,
काश मेरे सांई मैं......................

~सांईसुधा

जय सांई राम!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

ॐ सांई राम!!!
मेरे साईं मेरे बाबा ~~~
काश, इक ऐसा रिश्ता हो,जिसका कोई नाम न हो,
भले ही वो पास न हो,पर धङकन तक पहचानता हो,
मेरी आँखों में जो आए आँसू,उसका वहां पर दिल घबराए,
जो मैं कभी हो जाऊं उदास,तो उससे भी रहा न जाए,
जब मैं करूं उसको जो याद,उसको भी फिर चैन न आए,
जब भी मैं उसको पुकारूं,झट से वो मेरे सामने आए,
मैं उससे कुछ भी न कहूँ,बिना कहे वो सब जान जाए,
मैं उससे कुछ भी न छुपाऊं,वो भी मुझसे कुछ भी न छुपाएं,
यदि ऐसा प्यारा रिश्ता हो जाए,इसके बाद फिर क्या रह जाए,
ख्वाइश शांति से जीवन गुजारने की,उसी पल पूरी हो जाए!!!

काश, मेरा और बाबा का रिश्ता कुछ ..................... angelic

जय सांई राम!!!
ॐ साईं राम!!!
मेरे साईं मेरे बाबा ~~~
मुझको राह दिखाने वाली ओ प्यारी ठोकरों,
मुझे साईं से मिलाने वाली ओ प्यारी ठोकरों,
सोई को जगाने वाली ओ प्यारी ठोकरों,
असलियत बताने वाली ओ प्यारी ठोकरों,
दुनिया का रूप दिखाने वाली ओ प्यारी ठोकरों,
मुझे पक्का करने वाली ओ प्यारी ठोकरों,
धन्यवाद तुम्हारा है ओ प्यारी ठोकरों,
तुम न होती तो मैं कैसे पाती ये राह,
मुझ अंधी की कौन पकड़ता बाँह,
सब से दूर कर के तुमने,
मुझे मेरे साईं के पास किया,
ओ प्यारी ठोकरों तुम्हारा~
हर पल शुक्रियां~~~~~


जय साईं राम!!!
मैं मिट्टी के कण-कण में हूँ,
मैं जीवन के क्षण-क्षण में हूँ!
झांके हैं नभ से तारे जो,
उन तारों की टिम-टिम में हूँ!
मैं ही तो हवाओं का वेग हूँ,
मैं ही तो घटाओं का मेघ हूँ!
अहसास करो तुम खुद में ही,
मैं तो हर इक के मन में हूँ!
क्यों फिरता है दर-दर पर तू?
मुझको पाने की चाहत में?
क्यों जलता है पल-पल में तू?
मैं तेरी हर हलचल में हूँ!
कर पलभर तो तू याद मुझे,
ना रहने दूंगा उदास तुझे!
आऊंगा जब पुकारोगे मुझे,
में जन-जन की सुमिरन में हूँ!
मैं मिट्टी के कण-कण में हूँ,
मैं जीवन के क्षण-क्षण में हूँ...

~GopalKrishan
जय श्री सांई राम jyot

श्री सदगुरू सांईनाथ के ग्यारह वचन...{With Meaning}

ॐ सांई राम!!!

श्री सदगुरू सांईनाथ के ग्यारह वचन...{With Meaning}

श्री सदगुरू सांईनाथ के ग्यारह वचन~~~


शिरडीस ज्याचे लागतील पाय।
टळती अपाय सर्व त्याचे ॥1॥


शिरडी की पावन भूमि पर पाँव रखेगा जो भी कोई ॥
तत्क्षण मिट जाएँगे कष्ट उसके,हो जो भी कोई ॥1॥

माझ्या समाधीची पायरी चढेल॥
दुःख हे हरेल सर्व त्याचे॥2॥


चढ़ेगा जो मेरी समाधि की सीढ़ी॥
मिटेगा उसका दुःख और चिंताएँ सारी॥2॥

जरी हे शरीर गेलो मी टाकून ॥
तरी मी धावेन भक्तासाठी ॥3॥


गया छोङ इस देह को फिर भी।
दौङा आऊँगा निजभक्त हेतु ॥3॥

नवसास माझी पावेल समाधी॥
धरा द्रढ बुद्धी माझ्या ठायी ॥4॥


मनोकामना पूर्ण करे यह मेरी समाधि।
रखो इस पर विश्वास और द्रढ़ बुद्धि॥4॥

नित्य मी जिवंत जाणा हेंची सत्य॥
नित्य घ्या प्रचीत अनुभवे॥5॥


नित्य हूँ जीवित मैं,जानो यह सत्य॥
कर लो प्रचीति,स्वयं के अनुभव से॥5॥

शरण मज आला आणि वाया गेला॥
दाखवा दाखवा ऐसा कोणी॥6॥


मेरी शरण में आ के कोई गया हो खाली।
ऐसा मुझे बता दे,कोई एक भी सवाली॥6॥

जो जो मज भजे जैशा जैशा भावे॥
तैसा तैसा पावे मीही त्यासी॥7॥


भजेगा मुझको जो भी जिस भाव से॥
पाएगा मुझको वह उसी भाव से॥7॥

तुमचा मी भार वाहीन सर्वथा ॥
नव्हे हें अन्यथा वचन माझे॥8॥


तुम्हारा सब भार उठाऊँगा मैं सर्वथा॥
नहीं इसमें संशय,यह वचन है मेरा॥8॥

जाणा येथे आहे सहाय्य सर्वांस॥
मागे जे जे त्यास ते ते लाभे॥9॥


मिलेगा सहाय यहाँ सबको ही जाने॥
मिलेगा उसको वही,जो भी माँगो॥9॥

माझा जो जाहला काया वाचा मनीं ॥
तयाचा मी ऋणी सर्वकाळ॥10॥


हो गया जो तन मन वचन से मेरा॥
ऋणी हूँ मैं उसका सदा-सर्वथा ही॥10॥

साई म्हणे तोचि, तोचि झाला धन्य॥
झाला जो अनन्य माझ्या पायी॥11॥


कहे सांई वही हुआ धन्य धन्य।
हुआ जो मेरे चरणों से अनन्य॥11॥

॥श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ॥

॥ॐ राजाधिराज योगिराज परब्रह्य सांईनाथ महाराज॥

॥श्री सच्चिदानन्द सदगुरु साईनाथ महाराज की जय ॥


जय सांई राम!!!

श्री सांईनाथ स्तवन मंजरी~~~Sri Sai Nath Stavan Manjari (in Hindi)

श्री सांईनाथ स्तवन मंजरी~~~Sri Sai Nath Stavan Manjari (in Hindi)
~~~प्रार्थनाष्टक~~~

शान्त चित्त प्रज्ञावतार जय। दया-निधान सांईनाथ जय।
करुणा सागर सत्यरूप जय। मयातम संहारक प्रभु जय॥124॥

जाति-गोत्र-अतीत सिद्धेश्वर। अचिन्तनीयं पाप-ताप-हर।
पाहिमाम् शिव पाहिमाम् शिव। शिरडी ग्राम-निवासिय केशव॥125॥

ज्ञान-विधाता ज्ञानेश्वर जय। मंगल मूरत मंगलमय जय।
भक्त-वर्गमानस-मराल जय। सेवक-रक्षक प्रणतापाल जय॥126॥

स्रष्टि रचयिता ब्रह्मा जय-जय। रमापते हे विष्णु रूप जय।
जगत प्रलयकर्ता शिव जय-जय। महारुद्र हें अभ्यंकर जय॥127॥

व्यापक ईश समाया जग तूं। सर्वलोक में छाया प्रभु तूं।
तेरे आलय सर्वह्रदय हैं। कण-कण जग सब सांई ईश्वर है॥128॥

क्षमा करे अपराध हमारें। रहे याचना सदा मुरारे।
भ्रम-संशय सब नाथ निवारें। राग-रंग-रति से उद्धारे॥129॥

मैं हूँ बछङा कामधेनु तूं। चन्द्रकान्ता मैं पूर्ण इन्दु तूं।
नमामि वत्सल प्रणम्य जय। नाना स्वर बहु रूप धाम जय॥130॥

मेरे सिर पर अभय हस्त दों। चिन्त रोग शोक तुम हर लो।
दासगणू को प्रभु अपनाओं। 'भूपति' के उर में बस जओं॥131॥

कवि स्तुति कर जोरे गाता। हों अनुकम्पा सदा विधाता।
पाप-ताप दुःख दैन्य दूर हो। नयन बसा नित तव सरूप हों॥132॥

ज्यौ गौ अपना वत्स दुलारे। त्यौ साईं माँ दास दुलारे।
निर्दय नहीं बनो जगदम्बे। इस शिशु को दुलारो अंबे ॥133॥

चन्दन तरुवर तुम हो स्वामी। हीन-पौध हूं मैं अनुगामी।
सुरसरि समां तू है अतिपावन। दुराचार रत मैं कर्दमवत ॥134॥

तुझसे लिपट रहू यदि मलयुत। कौन कहे तुझको चन्दन तरु।
सदगुरु तेरी तभी बड़ाई। त्यागो मन जब सतत बुराई ॥135॥

कस्तुरी का जब साथ मिले। अति माटी का तब मोल बड़े।
सुरभित सुमनों का साथ मिले। धागे को भी सम सुरभि मिले ॥136॥

महान जनों की होती रीति। जीना पर हुई हैं उनकी प्रीति।
वही पदार्थ होता अनमोल। नहीं जग में उसका फिर तौला ॥137॥

रहा नंदी का भस्म कोपीना। संचय शिव ने किया आधीन।
गौरव उसने जन से पाया। शिव संगत ने यश फैलाया॥138॥

यमुना तट पर रचायें। वृन्दावन में धूम मचायें।
गोपीरंजन करें मुरारी। भक्त-वृनद मोहें गिरधारी॥139॥

होंवें द्रवित प्रभों करूणाघन। मेरे प्रियतम नाथ ह्रदयघन।
अधमाधम को आन तारियें। क्षमा सिन्धु अब क्षमा धारियें॥140॥

अभ्युदय निःश्रेयस पाऊ। अंतरयामी से यह चाहूं।
जिसमें हित हो मेरे दाता। वही दीजियें मुझे विधाता॥141॥

मैं तो कटु जलहूं प्रभु खारा। तुम में मधु सागर लहराता।
कृपा-बिंदु इक पाऊ तेरा। मधुरिम मधु बन जायें मेरा॥142॥

हे प्रभु आपकी शक्ति अपार। तिहारे सेवक हम सरकार।
खारा जलधि करें प्रभु मीठा। दासगणु पावे मन-चीता॥143॥

सिद्धवृन्द का तुं सम्राट। वैभव व्यापक ब्रह्म विराट।
मुझमें अनेक प्रकार अभाव। अकिंचन नाथ करें निर्वाह॥144॥

कथन अत्यधिक निरा व्यर्थ हैं। आधार एक गुरु समर्थ हैं ।
माँ की गोदी में जब सुत हो। भयभीत कहो कैसे तब हो॥145॥

जो यह स्तोत्र पड़े प्रति वासर। प्रेमार्पित हो गाये सादर ।
मन-वाँछित फल नाथ अवश दें। शाशवत शान्ति सत्य गुरुवर दें॥146॥

सिद्ध वरदान स्तोत्र दिलावे। दिव्य कवच सम सतत बचावें।
सुफल वर्ष में पाठक पावें। जग त्रयताप नहीं रह जावें॥147॥

निज शुभकर में स्तोत्र सम्भालो। शुचिपवित्र हो स्वर को ढालो।
प्रभु प्रति पावन मानस कर लो। स्तोत्र पठन श्रद्धा से कर लो॥148॥

गुरूवार दिवस गुरु का मानों। सतगुरु ध्यान चित्त में ठानों।
स्थोथरा पठन हो अति फलदाई। महाप्रभावी सदा-सहाई॥149॥

व्रत एकादशी पुण्य सुहाई। पठन सुदिन इसका कर भाई।
निश्चय चमत्कार थम पाओ। शुभ कल्याण कल्पतरु पाओ॥150॥

उत्तम गति स्तोत्र प्रदाता। सदगुरू दर्शन पाठक पाता।
इह परलोक सभी हो शुभकर। सुख संतोष प्राप्त हो सत्वर॥151॥

स्तोत्र पारायण सद्य: फल दे। मन्द-बुद्धि को बुद्धि प्रबल दे।
हो संरक्षक अकाल मरण से। हों शतायु जा स्तोत्र पठन से॥152॥

निर्धन धन पायेगा भाई। महा कुबेर सत्य शिव साईं।
प्रभु अनुकम्पा स्तोत्र समाई। कवि-वाणी शुभ-सुगम सहाई॥153॥

संततिहीन पायें सन्तान। दायक स्तोत्र पठन कल्याण।
मुक्त रोग से होगी काया। सुखकर हो साईं की छाया॥154॥

स्तोत्र-पाठ नित मंगलमय है। जीवन बनता सुखद प्रखर है।
ब्रह्मविचार गहनतर पाओ। चिंतामुक्त जियो हर्षाओ॥155॥

आदर उर का इसे चढ़ाओ। अंत द्रढ़ विश्वास बासाओ।
तर्क वितर्क विलग कर साधो। शुद्ध विवेक बुद्धि अवराधो॥156॥

यात्रा करो शिरडी तीर्थ की। लगन लगी को नाथ चरण की।
दीन दुखी का आश्रय जो हैं। भक्त-काम-कल्प-द्रुम सोहें॥157॥

सुप्रेरणा बाबा की पाऊं। प्रभु आज्ञा पा स्तोत्र रचाऊं।
बाबा का आशीष न होता। क्यों यह गान पतित से होता॥158॥

शक शंवत अठरह चालीसा। भादों मास शुक्ल गौरीशा।
शाशिवार गणेश चौथ शुभ तिथि। पूर्ण हुई साईं की स्तुति॥159॥

पुण्य धार रेवा शुभ तट पर। माहेश्वर अति पुण्य सुथल पर।
साईंनाथ स्तवन मंजरी। राज्य-अहिल्या भू में उतारी॥160॥

मान्धाता का क्षेत्र पुरातन। प्रगटा स्तोत्र जहां पर पावन।
हुआ मन पर साईं अधिकार। समझो मंत्र साईं उदगार॥161॥

दासगणु किंकर साईं का। रज-कण संत साधु चरणों का।
लेख-बद्ध दामोदर करते। भाषा गायन ' भूपति' करते॥162॥

साईंनाथ स्तवन मंजरी। तारक भव-सागर-ह्रद-तन्त्री।
सारे जग में साईं छाये। पाण्डुरंग गुण किकंर गाये॥163॥

श्रीहरिहरापर्णमस्तु | शुभं भवतु | पुण्डलिक वरदा विठ्ठल |
सीताकांत स्मरण | जय जय राम | पार्वतीपते हर हर महादेव |

श्री सदगुरु साईंनाथ महाराज की जय ||
श्री सदगुरु साईंनाथपर्णमस्तु ||



श्री सांईनाथ स्तवन मंजरी~~~Sri Sai Nath Stavan Manjari (in Hindi)

ॐ सांई राम!!!


श्री दासगणु महाराज कृत
श्री सांईनाथ स्तवन मंजरी~~


हिन्दी अनुगायन
ठाकुर भूपति सिंह

॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥
॥ॐ श्री सांईनाथाय नमः॥




मयूरेश्वर जय सर्वाधार। सर्व साक्षी हे गौरिकुमार।
अचिन्त्य सरूप हे लंबोदर। रक्षा करो मम,सिद्धेश्वर॥1॥

सकल गुणों का तूं है स्वामी। गण्पति तूं है अन्तरयामी।
अखिल शास्त्र गाते तव महिमा। भालचन्द्र मंगल गज वदना॥2॥

माँ शारदे वाग विलासनी। शब्द-स्रष्टि की अखिल स्वामिनी।
जगज्जननी तव शक्ति अपार। तुझसे अखिल जगत व्यवहार॥3॥

कवियों की तूं शक्ति प्रदात्री। सारे जग की भूषण दात्री।
तेरे चरणों के हम बंदे। नमो नमो माता जगदम्बे॥4॥

पूर्ण ब्रह्म हे सन्त सहारे। पंढ़रीनाथ रूप तुम धारे।
करूणासिंधु जय दयानिधान। पांढ़ुरंग नरसिंह भगवान॥5॥

सारे जग का सूत्रधार तूं। इस संस्रति का सुराधार तूं।
करते शास्त्र तुम्हारा चिंतन। तत् स्वरूप में रमते निशदिन॥6॥

जो केवल पोथी के ज्ञानी । नहीं पाते तुझको वे प्राणी।
बुद्धिहीन प्रगटाये वाणी। व्यर्थ विवाद करें अज्ञानी॥7॥

तुझको जानते सच्चे संत। पाये नहीं कोई भी अंत।
पद-पंकज में विनत प्रणाम। जयति-जयति शिरडी घनश्याम॥8॥

पंचवक्त्र शिवशंकर जय हो। प्रलयंकर अभ्यंकर जय हो।
जय नीलकण्ठ हे दिगंबर। पशुपतिनाठ के प्रणव स्वरा॥9॥

ह्रदय से जपता जो तव नाम। उसके होते पूर्ण सब काम।
सांई नाम महा सुखदाई। महिमा व्यापक जग में छाई॥10॥

पदारविन्द में करूं प्रणाम। स्तोत्र लिखूं प्रभु तेरे नाम।
आशीष वर्षा करो नाथ हे । जगतपति हे भोलेनाथ हे॥11॥

दत्तात्रेय को करूं प्रणाम। विष्णु नारायण जो सुखधाम।
तुकाराम से सन्तजनों को। प्रणाम शत शत भक्तजनों को॥12॥

जयति-जयति जय जय सांई नाथ हे। रक्षक तूं ही दीनदयाल हे।
मुझको कर दो प्रभु सनाथ। शरणागत हूं तेरे द्वार हे॥13॥

तूं है पूर्ण ब्रह्म भगवान। विष्णु पुरूषोत्तम तूं सुखधाम।
उमापति शिव तूं निष्काम। था दहन किया नाथ ने काम॥14॥

नराकार तूं तूं है परमेश्वर। ज्ञान-गगन का अहो दिवाकर।
दयासिंधु तूं करूणा-आकर। दलन-रोग भव-मूल सुधाकर॥15॥

निर्धन जन का चिन्तामणि तूं। भक्त-काज हित सुरसुरि जम तूं।
भवसागर हित नौका तूं है। निराश्रितों का आश्रय तूं है॥16॥

जग-कारण तूं आदि विधाता। विमलभाव चैतन्य प्रदाता।
दीनबंधु करूणानिधि ताता। क्रीङा तेरी अदभुत दाता॥17॥

तूं है अजन्मा जग निर्माता। तूं मृत्युंजय काल-विजेता।
एक मात्र तूं ज्ञेय-तत्व है। सत्य-शोध से रहे प्राप्य है॥18॥

जो अज्ञानी जग के वासी। जन्म-मरण कारा-ग्रहवासी।
जन्म-मरण के आप पार है। विभु निरंजन जगदाधार है॥19॥

निर्झर से जल जैसा आये। पूर्वकाल से रहा समाये।
स्वयं उमंगित होकर आये। जिसने खुद है स्त्रोत बहायें॥20॥

शिला छिद्र से ज्यों बह निकला। निर्झर उसको नाम मिल गया।
झर-झर कर निर्झर बन छाया। मिथ्या स्वत्व छिद्र से पाया॥21॥

कभी भरा और कभी सूखता। जल निस्संग इसे नकारता।
चिद्र शून्य को सलिल न माने। छिद्र किन्तु अभिमान बखाने॥22॥

भ्रमवश छिद्र समझता जीवन। जल न हो तो कहाँ है जीवन।
दया पात्र है छिद्र विचार। दम्भ व्यर्थ उसने यों धारा॥23॥

यह नरदेह छिद्र सम भाई। चेतन सलिल शुद्ध स्थायी।
छिद्र असंख्य हुआ करते हैं। जलकण वही रहा करते हैं॥24॥

अतः नाथ हे परम दयाघन। अज्ञान नग का करने वेधन।
वग्र अस्त्र करते कर धारण। लीला सब भक्तों के कारण॥25॥

जङत छिद्र कितने है सारे। भरे जगत में जैसे तारे।
गत हुये वर्तमान अभी हैं। युग भविष्य के भीज अभी हैं॥26॥

भिन्न-भिन्न ये छिद्र सभी है। भिन्न-भिन्न सब नाम गति है।
पृथक-पृथक इनकी पहचान। जग में कोई नहीं अनजान॥27॥

चेतन छिद्रों से ऊपर है। "मैं तूं" अन्तर नहीं उचित है।
जहां द्वैत का लेश नहीं है।सत्य चेतना व्याप रही है॥28॥

चेतना का व्यापक विस्तार। हुआ अससे पूरित संसार।
"तेरा मेरा" भेद अविचार। परम त्याज्य है बाह्य विकार॥29॥

मेघ गर्भ में निहित सलिल जो। जङतः निर्मल नहीं भिन्न सो।
धरती तल पर जब वह आता। भेद-विभेद तभी उपजाता॥30॥

जो गोद में गिर जाता है। वह गोदावरी बन जाता है।
जो नाले में गिर जाता है। वह अपवित्र कहला जाता है॥31॥

सन्त रूप गोदावरी निर्मल। तुम उसके पाव अविरल जल।
हम नाले के सलिल मलिनतम। भेद यही दोनों में केवल॥32॥

करने जीवन स्वयं कृतार्थ। शरण तुम्हारी आये नाथ।
कर जोरे हम शीश झुकाते। पावन प्रभु पर बलि-बलि जाते॥33॥

पात्र-मात्र से है पावनता। गोदा-जल की अति निर्मलता।
सलिल सर्वत्र तो एक समान। कहीं न दिखता भिन्न प्रणाम॥34॥

गोदावरी का जो जलपात्र। कैसे पावन हुआ वह पात्र।
उसके पीछे मर्म एक है। गुणः दोष आधार नेक है॥35॥

मेघ-गर्भ से जो जल आता। बदल नहीं वह भू-कण पाता।
वही कहलाता है भू-भाग। गोदावरी जल पुण्य-सुभाग॥36॥

वन्य भूमि पर गिरा मेघ जो। यद्यपि गुण में रहे एक जो।
निन्दित बना वही कटुखारा। गया भाग्य से वह धिक्कारा॥37॥

सदगुरू प्रिय पावन हैं कितने। षड्रिपुओं के जीता जिनने।
अति पुनीत है गुरू की छाया। शिरडी सन्त नाम शुभ पाया॥38॥

अतः सन्त गोदावरी ज्यों है। अति प्रिय हित भक्तों के त्यों हैं।
प्राणी मात्र के प्राणाधार। मानव धर्म अवयं साकार॥39॥

जग निर्माण हुआ है जब से। पुण्यधार सुरसरिता तब से।
सतत प्रवाहित अविरल जल से। रुद्धित किंचित हुआ न तल है॥40॥

सिया लखन संग राम पधारे। गोदावरी के पुण्य किनारे।
युग अतीत वह बीत गया है। सलिल वही क्या शेष रहा है॥41॥

जल का पात्र वहीं का वह है। जलधि समाया पूर्व सलिल है।
पावनता तब से है वैसी। पात्र पुरातन युग के जैसी॥42॥

पूरव सलिल जाता है ज्यों ही। नूतन जल आता है त्यों ही।
इसी भाँति अवतार रीति है। युग-युग में होती प्रतीत है॥43॥

बहु शताब्दियाँ संवत् सर यों। उन शतकों में सन्त प्रवर ज्यों।
हो सलिल सरिस सन्त साकार। ऊर्मिविभूतियां अपरंपार॥44॥

सुरसरिता ज्यों सन्त सु-धारा। आदि महायुग ले अवतार।
सनक सनन्दन सनत कुमार। सन्त वृन्द ज्यों बाढ़ अपारा॥45॥

नारद तुम्बर पुनः पधारे। ध्रुव प्रहलाद बली तन धारे।
शबरी अंगद नल हनुमान। गोप गोपिका बिदुर महाना॥46॥

सन्त सुसरिता बढ़ती जाती। शत-शत धारा जलधि समाती।
बाढ़ें बहु यों युग-युग आती वर्णन नहीं वाणी कर पाती॥47॥

सन्त रूप गोदावरी तट पर। कलियुग के नव मध्य प्रहर पर।
भक्ति-बाढ़ लेकर तुम आये। 'सांईनाथ" सुनाम तुम कहाये॥48॥

चरण कमल द्वय दिव्य ललाम। प्रभु स्वीकारों विनत प्रणाम।
अवगुण प्रभु हैं अनगिन मेरे। चित न धरों प्रभु दोष घनेरे॥49॥

मैं अज्ञानी पहित पुरातन। पापी दल का परम शिरोमणी।
सच में कुटिल महाखलकामी। मत ठुकराओं अन्तरयामी॥50॥

दोषी कैसा भी हो लोहा। पारस स्वर्ण बनाता चोखा।
नाला मल से भरा अपावन। सुरसरिता करती है पावन॥51॥

मेरा मन अति कलुष भरा है। नाथ ह्रदय अति दया भरा है।
कृपाद्रष्टि से निर्मल कर दें। झोली मेरी प्रभुवर भर दें॥52॥

पासस का संग जब मिल जाता। लोह सुवर्ण यदि नहीं बन पाता।
तब तो दोषी पारस होता। विरद वही अपना है खोता॥53॥

पापी रहा यदि प्रभु तव दास। होता आपका ही उपहास।
प्रभु तुम पारस,मैं हूँ लोहा। राखो तुम ही अपनी शोभा॥54॥

अपराध करे बालक अज्ञान। क्रोध न करती जननी महान।
हो प्रभु प्रेम पूर्ण तुम माता। कृपाप्रसाद दीजियें दाता॥55॥

सदगुरू सांई हे प्रभु मेरे। कल्पवृक्ष तुम करूणा प्रेरे।
भवसागर में मेरी नैया। तूं ही भगवान पार करैया॥56॥

कामधेनू सम तूं चिन्ता मणि।ज्ञान-गगन का तूं है दिनमणि।
सर्व गुणों का तूं है आकार। शिरडी पावन स्वर्ग धरा पर॥57॥

पुण्यधाम है अतिशय पावन। शान्तिमूर्ति हैं चिदानन्दघन।
पूर्ण ब्रम्ह तुम प्रणव रूप हें। भेदरहित तुम ज्ञानसूर्य हें॥58॥

विज्ञानमूर्ति अहो पुरूषोत्तम। क्षमा शान्ति के परम निकेतन।
भक्त वृन्द के उर अभिराम। हों प्रसन्न प्रभु पूरण काम॥59॥

सदगुरू नाथ मछिन्दर तूं है। योगी राज जालन्धर तूं है।
निवृत्तिनाथ ज्ञानेश्वर तूं हैं। कबीर एकनाथ प्रभु तूं है॥60॥

सावता बोधला भी तूं है। रामदास समर्थ प्रभु तूं है।
माणिक प्रभु शुभ सन्त सुख तूं। तुकाराम हे सांई प्रभु तूं॥61॥

आपने धारे ये अवतार। तत्वतः एक भिन्न आकार।
रहस्य आपका अगम अपार। जाति-पाँति के प्रभो उस पार॥62॥

कोई यवन तुम्हें बतलाता। कोई ब्राह्मण तुम्हें जतलाता।
कृष्ण चरित की महिमा जैसी। लीला की है तुमने तैसी॥63॥

गोपीयां कहतीं कृष्ण कन्हैया। कहे 'लाडले' यशुमति मैया।
कोई कहें उन्हें गोपाल। गिरिधर यदूभूषण नंदलाल॥64॥

कहें बंशीधर कोई ग्वाल। देखे कंस कृष्ण में काल।
सखा उद्धव के प्रिय भगवान। गुरूवत अर्जुन केशव जान॥65॥

ह्रदय भाव जिसके हो जैसे। सदगुरू को देखे वह वैसा।
प्रभु तुम अटल रहे हो ऐसे। शिरडी थल में ध्रुव सम बैठे॥66॥

रहा मस्जिद प्रभु का आवास। तव छिद्रहीन कर्ण आभास।
मुस्लिम करते लोग अनुमान। सम थे तुमको राम रहमान॥67॥

धूनी तव अग्नि साधना। होती जिससे हिन्दू भावना।
"अल्ला मालिक" तुम थे जपते। शिवसम तुमको भक्त सुमरते॥68॥

हिन्दू-मुस्लिम ऊपरी भेद। सुभक्त देखते पूर्ण अभेद।
नहीं जानते ज्ञानी विद्वेष। ईश्वर एक पर अनगिन वेष॥69॥

पारब्रम्ह आप स्वाधीन। वर्ण जाति से मुक्त आसीन।
हिन्दू-मुस्लिम सब को प्यारे। चिदानन्द गुरूजन रखवारे॥70॥

करने हिन्दू-मुस्लिम एक। करने दूर सभी मतभेद।
मस्जिद अग्नि जोङ कर नाता। लीला करते जन-सुख-दाता॥71॥

प्रभु धर्म-जाति-बन्ध से हीन। निर्मल तत्व सत्य स्वाधीन।
अनुभवगम्य तुम तर्कातीत। गूंजे अनहद आत्म संगीत॥72॥

समक्ष आपके वाणी हारे। तर्क वितर्क व्यर्थ बेचारे।
परिमति शबद् है भावाभास। हूं मैं अकिंचन प्रभु का दास॥73॥

यदयपि आप हैं शबदाधार। शब्द बिना न प्रगटें गीत।
स्तुति करूं ले शबदाधार। स्वीकारों हें दिव्य अवतार॥74॥

कृपा आपकी पाकर स्वामी। गाता गुण-गण यह अनुगामी।
शबदों का ही माध्यम मेरा। भक्ति प्रेम से है उर प्रेरा॥75॥

सन्तों की महिमा है न्यारी। ईशर की विभूति अनियारी।
सन्त सरसते साम्य सभी से। नहीं रखते बैर किसी से॥76॥

हिरण्यकशिपु रावंअ बलवान। विनाश हुआ इनका जग जान।
देव-द्वेष था इसका कारण। सन्त द्वेष का करें निवारण॥77॥

गोपीचन्द अन्याय कराये। जालन्धर मन में नहीं लाये।
महासन्त के किया क्षमा था। परम शान्ति का वरण किया था॥78॥

बङकर नृप-उद्धार किया था। दीर्घ आयु वरदान दिया था।
सन्तों की महिमा जग-पावन। कौन कर सके गुण गणगायन॥79॥

सन्त भूमि के ज्ञान दिवाकर। कृपा ज्योति देते करुणाकर।
शीतल शशि सम सन्त सुखद हैं। कृपा कौमुदी प्रखर अवनि है॥80॥

है कस्तूरी सम मोहक संत। कृपा है उनकी सरस सुगंध।
ईखरसवत होते हैं संत। मधुर सुरूचि ज्यों सुखद बसंत॥81॥

साधु-असाधु सभी पा करूणा। दृष्टि समान सभी पर रखना।
पापी से कम प्यार न करते। पाप-ताप-हर-करूणा करते॥82॥

जो मल-युत है बहकर आता। सुरसरि जल में आन समाता।
निर्मल मंजूषा में रहता। सुरसरि जल नहीं वह गहता॥83॥

वही वसन इक बार था आया। मंजूषा में रहा समाया।
अवगाहन सुरसरि में करता। धूल कर निर्मल खुद को करता॥84॥

सुद्रढ़ मंजूषा है बैकुण्ठ। अलौकिक निष्ठा गंग तरंग।
जीवात्मा ही वसन समझिये। षड् विकार ही मैल समझिये॥85॥

जग में तव पद-दर्शन पाना। यही गंगा में डूब नहाना।
पावन इससे होते तन-मन। मल-विमुक्त होता वह तत्क्षण॥86॥

दुखद विवश हैं हम संसारी। दोष-कालिमा हम में भारी।
सन्त दरश के हम अधिकारी। मुक्ति हेतु निज बाट निहारी॥87॥

गोदावरी पूरित निर्मल जल। मैली गठरी भीगी तत्जल।
बन न सकी यदि फिर भी निर्मल। क्या न दोषयुत गोदावरि जल॥88॥

आप सघन हैं शीतल तरूवर।श्रान्त पथिक हम डगमग पथ हम।
तपे ताप त्रय महाप्रखर तम। जेठ दुपहरी जलते भूकण॥89॥

ताप हमारे दूर निवारों। महा विपद से आप उबारों।
करों नाथ तुम करूणा छाया। सर्वज्ञात तेरी प्रभु दया॥90॥

परम व्यर्थ वह छायातरू है। दूर करे न ताप प्रखर हैं।
जो शरणागत को न बचाये। शीतल तरू कैसे कहलाये॥91॥

कृपा आपकी यदि नहीं पाये। कैसे निर्मल हम रह जावें।
पारथ-साथ रहे थे गिरधर। धर्म हेतु प्रभु पाँचजन्य-धर॥92॥

सुग्रीव कृपा से दनुज बिभीषण। पाया प्राणतपाल रघुपति पद।
भगवत पाते अमित बङाई। सन्त मात्र के कारण भाई॥93॥

नेति-नेति हैं वेद उचरते। रूपरहित हैं ब्रह्म विचरते।
महामंत्र सन्तों ने पाये। सगुण बनाकर भू पर लायें॥94॥

दामा ए दिया रूप महार। रुकमणि-वर त्रैलोक्य आधार।
चोखी जी ने किया कमाल। विष्णु को दिया कर्म पशुपाल॥95॥

महिमा सन्त ईश ही जानें। दासनुदास स्वयं बन जावें।
सच्चा सन्त बङप्पन पाता। प्रभु का सुजन अतिथि हो जाता॥96॥

ऐसे सन्त तुम्हीं सुखदाता। तुम्हीं पिता हो तुम ही माता।
सदगुरु सांईनाथ हमारे। कलियुग में शिरडी अवतारें॥97॥

लीला तिहारी नाथ महान। जन-जन नहीं पायें पहचान।
जिव्हा कर ना सके गुणगान। तना हुआ है रहस्य वितान॥98॥

तुमने जल के दीप जलायें। चमत्कार जग में थे पायें।
भक्त उद्धार हित जग में आयें। तीरथ शिरडी धाम बनाए॥99॥

जो जिस रूप आपको ध्यायें। देव सरूप वही तव पायें।
सूक्षम तक्त निज सेज बनायें। विचित्र योग सामर्थ दिखायें॥100॥

पुत्र हीन सन्तति पा जावें। रोग असाध्य नहीं रह जावें।
रक्षा वह विभूति से पाता। शरण तिहारी जो भी आता॥101॥

भक्त जनों के संकट हरते। कार्य असम्भव सम्भव करतें।
जग की चींटी भार शून्य ज्यों। समक्ष तिहारे कठिन कार्य त्यों॥102॥

सांई सदगुरू नाथ हमारें। रहम करो मुझ पर हे प्यारे।
शरणागत हूँ प्रभु अपनायें। इस अनाथ को नहीं ठुकरायें॥103॥

प्रभु तुम हो राज्य राजेश्वर। कुबेर के भी परम अधीश्वर।
देव धन्वन्तरी तव अवतार। प्राणदायक है सर्वाधार॥104॥

बहु देवों की पूजन करतें। बाह्य वस्तु हम संग्रह करते।
पूजन प्रभु की शीधी-साधा। बाह्य वस्तु की नहीं उपाधी॥105॥

जैसे दीपावली त्यौहार। आये प्रखर सूरज के द्वार।
दीपक ज्योतिं कहां वह लाये। सूर्य समक्ष जो जगमग होवें॥106॥

जल क्या ऐसा भू के पास। बुझा सके जो सागर प्यास।
अग्नि जिससे उष्मा पायें। ऐसा वस्तु कहां हम पावें॥107॥

जो पदार्थ हैं प्रभु पूजन के। आत्म-वश वे सभी आपके।
हे समर्थ गुरू देव हमारे। निर्गुण अलख निरंजन प्यारे॥108॥

तत्वद्रष्टि का दर्शन कुछ है। भक्ति भावना-ह्रदय सत्य हैं।
केवल वाणी परम निरर्थक। अनुभव करना निज में सार्थक॥109॥

अर्पित कंरू तुम्हें क्या सांई। वह सम्पत्ति जग में नहीं पाई।
जग वैभव तुमने उपजाया। कैसे कहूं कमी कुछ दाता॥110॥

"पत्रं-पुष्पं" विनत चढ़ाऊं। प्रभु चरणों में चित्त लगाऊं।
जो कुछ मिला मुझे हें स्वामी। करूं समर्पित तन-मन वाणी॥111॥

प्रेम-अश्रु जलधार बहाऊं। प्रभु चरणों को मैं नहलाऊं।
चन्दन बना ह्रदय निज गारूं। भक्ति भाव का तिलक लगाऊं॥112॥

शब्दाभूष्ण-कफनी लाऊं। प्रेम निशानी वह पहनाऊं।
प्रणय-सुमन उपहार बनाऊं। नाथ-कंठ में पुलक चढ़ाऊं॥113॥

आहुति दोषों की कर डालूं। वेदी में वह होम उछालूं।
दुर्विचार धूम्र यों भागे। वह दुर्गंध नहीं फिर लागे॥114॥

अग्नि सरिस हैं सदगुरू समर्थ। दुर्गुण-धूप करें हम अर्पित।
स्वाहा जलकर जब होता है। तदरूप तत्क्षण बन जाता है॥115॥

धूप-द्रव्य जब उस पर चढ़ता। अग्नि ज्वाला में है जलता।
सुरभि-अस्तित्व कहां रहेगा। दूर गगन में शून्य बनेगा॥116॥

प्रभु की होती अन्यथा रीति। बनती कुवस्तु जल कर विभुति।
सदगुण कुन्दन सा बन दमके। शाशवत जग बढ़ निरखे परखे॥117॥

निर्मल मन जब हो जाता है। दुर्विकार तब जल जाता है।
गंगा ज्यों पावन है होती। अविकल दूषण मल वह धोती॥118॥

सांई के हित दीप बनाऊं। सत्वर माया मोह जलाऊं।
विराग प्रकाश जगमग होवें। राग अन्ध वह उर का खावें॥119॥

पावन निष्ठा का सिंहासन। निर्मित करता प्रभु के कारण।
कृपा करें प्रभु आप पधारें। अब नैवेद्य-भक्ति स्वीकारें॥120॥

भक्ति-नैवेद्य प्रभु तुम पाओं। सरस-रास-रस हमें पिलाओं।
माता, मैं हूँ वत्स तिहारा। पाऊं तव दुग्धामृत धारा॥121॥

मन-रूपी दक्षिणा चुकाऊं। मन में नहीं कुछ और बसाऊं।
अहम् भाव सब करूं सम्पर्ण। अन्तः रहे नाथ का दर्पण॥122॥

बिनती नाथ पुनः दुहराऊं। श्री चरणों में शीश नमाऊं।
सांई कलियुग ब्रह्म अवतार। करों प्रणाम मेरे स्वीकार॥123॥


Thursday, November 12, 2009

साईंबाबा की लीला अनन्त

ओम साईं राम

साईंबाबा की लीला अनन्त

साईं तेरी लीला को
कहूं सुनूं सौ बार
कहते सुनते थकूं नहीं
वर दो अपरम्पार

गोदावरी के तीर पर
प्रभु पधारे आप
भक्त जनों का हरने को
पाप ताप संताप

चांद पाटिल की घोडी खोई
फिरता मारा मारा
सहज दिखाई घोडी उसको
प्रथम परिचय था प्यारा

बारात की शोभा बढाई
शिरडी आन पधारे
म्हालसापति ने साईं पुकारा
धन्य भाग्य हमारे

बायजाबाई को धन्य किया
माता वो कहलाई
मस्ज़िद में धूनि रमी तो
बनी द्वारकामाई

बहत्तर जन्मों के साथ का
शामा को याद दिलाया
हाथ आग में डालकर
नन्हा शिशु बचाया

चांदोरकर को प्यास लगी
बीहड में स्त्रोत बहाए
लीलाधर अवतारी ने
पानी से दीप जलाए

मैना ताई को ऊदि का
भेजा आशिर्वाद
राधामाई ने निसदिन ही
पाया महाप्रसाद

शिरडी के हर मंदिर का
किया जीर्णोद्धार
भागो जी को सेवा का
अवसर दिया सरकार

शामा को जीवन दिया
सर्प दंश उतारा
सर्व व्याधि को साईं ने
अपने तन पर धारा

बाबा की लीला अनन्त
कहे सुने जो कोई
साईं का प्यारा बने
साईं को पावे सोई

~Sai Sewika

जय साईं राम

Tuesday, November 10, 2009

बाबा जी के भक्त -५ ( नानावली जी )

ॐ साईं राम

बाबा जी के भक्त -५ ( नानावली जी )

नानावली बाबा का भक्त
शिरडी में ही रहता था
बडा दीवाना मतवाला सा
उसे ज़माना कहता था

बाबा के सन्मुख, अँतर ना था
उसमें और सब भक्तों में
ढाल बना खडा रहता था
भले बुरे सब वक्तों में

बाबा से कहते थे सब ही
दीवाने को दूर हटाओ
भक्तों को ये तँग करता है
सबको इससे आप बचाओ

पर बाबा तो दयामयी थे
करूणा के अवतार
भक्त प्रिय को करते थे वो
हृदय से स्वीकार

वो भी बाबा से करता था
जान से बढकर प्यार
बुरा जो कहता कोई, तो होता
लडने को तैयार

एक बार नानावली ने
बाबा जी से बोला यूँ
मुझे बैठना है गादी पर
जिस गादी पर बैठे तुम

उठ बैठे गादी से बाबा
नानावली से कुछ नहीं कहा
भक्तों का उन्माद और प्रेम
बाबा जी ने सदा सहा

ऐसा सच्चा भक्त था वो
सब दुनिया से न्यारा
बाबा जी के जाते ही
दुनिया से किया किनारा

साईं नाथ की महासमाधि के
तेरह दिन के अँदर
परमात्मा में विलय हो गया
बाबा जी का बँदर

~ Sai Sewika
जय साईं राम

Sunday, November 8, 2009

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

ॐ साईं राम !!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

मांगी हुई खुशियों से ,
किसका भला होता है,
किस्मत में जो लिखा होता है,
उतना ही अदा होता है,
न डर रे मन दुनिया से,
यहाँ किसी के चाहने से नहीं
किसी का बुरा होता है,
मिलता है वही,
जो हमने बोया होता है,
कर पुकारा उस दाता के आगे,
क्योंकि सब कुछ उसी के बस में होता है!!!
jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot

जय साईं राम !!!

बाबा जी के भक्त -४ ( भागो जी शिंदे )

ॐ साईं राम

बाबा जी के भक्त -४ ( भागो जी शिंदे )

भागो जी शिंदे नामक
बाबा के इक भक्त थे
देवा के सँग साया बन कर
वो रहते हर वक्त थे

बाह्य दृष्टि से देखो तो वो
लगते थे दुर्भागी से
तन की पीडा घोर सही थी
कुष्ठ रोग की व्याधि से

महारोग से पीडित थे वो
जर्जर उनकी काया थी
लेकिन उन पर साईं नाथ के
वरद हस्त की छाया थी

उनका कोई महापुण्य ही
जीवन मे सन्मुख आया
इसीलिेए तो भागो जी ने
साईं का सँग था पाया

बाबा के प्रधान सेवक थे
हर दम साथ रहते थे
साईं नाथ का प्रेम और क्रोध
सम रह कर वो सहते थे

साँयकाल में बाबा जी जब
लेण्डी बाग को जाते थे
भागो छाता ताने चलते
फूले नहीं समाते थे

एक बार जब साईं नाथ ने
नन्हा शिशु बचाने को
अपना हाथ आग में डाला
परम कृपा बरसाने को

तब सेवा का अवसर पाया
भागो जी के जागे भाग
तेल लगा कर पट्टी करते
देवा का वो थामें हाथ

अँत समय तक चली ये सेवा
साईं ने ना मना किया
ले कर सेवा भागो जी की
उनको आशिर्वाद दिया

भागो जी के पुण्य जागे
जब साईं के साथ हुए
पाप सब कट गए उनके
भागो जी कृतार्थ हुए

धन्य धन्य हे साईं देव
भक्त की पीडा हरने वाले
धन्य धन्य हे भक्त महान
सब कुछ अर्पण करने वाले

~ Sai Sewika
जय साईं राम

बाबा जी के भक्त -३ ( तात्या कोते पाटिल )

ॐ साईं राम

बाबा जी के भक्त -३ ( तात्या कोते पाटिल )

बढ भागी थे तात्या कोते
मालिक के सँग रहते थे
बाबा उनको बडे प्रेम से
छोटा भाई कहते थे

भले बुरे का ज्ञान नहीं था
तात्या छोटे बालक थे
पर बाबा उनके रक्षक थे
बाबा उनके पालक थे

कभी कभी बाबा की बातें वो
सुनी अनसुनी कर देते थे
तब बाबा उन के कष्टों को
अपने ऊपर ले लेते थे

द्वारकामाई में बाबा के सँग
तात्या चौदह वर्ष रहे
तीन दिशा में पैर जोडकर
सुख दुख सारे सुने कहे

क्या हित में है तात्या के
ये बाबा जी बतलाते थे
बडे प्रेम से देवा उनको
भला बुरा समझाते थे

तात्या भी परछाईं बन कर
सदा रहे बाबा के साथ
अँत समय तक फिर ना छोडा
साईं ने भी उनका हाथ

अन्तर्यामी साईं ने था
देख लिया तात्या का अँत
कृपा सिंधु करतार ने तब
कृपा वृष्टि थी करी अनन्त

तात्या के बदले साईं ने
मृत्यु को स्वीकार किया
प्राणों से बढकर बाबा ने
तात्या को था प्यार दिया

धन्य धन्य हे साईं देव
भक्त प्रेम अति सुखदाई
जीवन के पग पग पर रक्षा
करते रहते सर्व सहाई

~Sai Sewika

जय साई राम

Monday, November 2, 2009

बाबा जी के भक्त -२ ( म्हालसापति जी )

ॐ साईं राम

बाबा जी के भक्त -२ ( म्हालसापति जी )

म्हालसापति जी परम भक्त थे
बाबा जी के प्यारे
साईं नाथ के अँग सँग रहते
मस्जिद माई के द्वारे

बाबा जी को साईं नाम ले
म्हालसापति ने पुकारा था
बाबा ने भी प्रसन्न भाव से
प्यारा नाम स्वीकारा था

साईं उनको बडे प्रेम से
"भक्त" कहा करते थे
सुख दुख साईं प्रसाद मान कर
"भक्त" सहा करते थे

निष्काम भक्ति के प्रतीक भक्त थे
श्रद्धा थी भरपूर
धन तृष्णा और लोभ मोह से
रहते थे अति दूर

ना ही कोई इच्छा थी उनकी
ना ही थी अभिलाषा
बाबा के सँग यूँ रहते थे
ज्यों पानी सँग प्यासा

एक बार जाब साईं नाथ ने
महासमाधि लगाई
तीन दिवस तक प्राण चिन्ह भी
दिया नहीं दिखलाई

म्हालसापति बैठे रहे
पावन देह को गोद धरे
अडिग रह कर साईं नाथ की
प्रतीक्षा वो करते रहे

उनको था विश्वास कि देव
शीघ्र चले आऐंगे
भक्तों को बीच भँवर में छोड
साईं नहीं जाऐंगे

धन्य धन्य थे म्हालसापति जी
बाबा के रक्षक बने
घोर विरोध सह कर भी
साईं के सँग रहे तने

महासमाधि पर्यन्त "भक्त"
बाबा जी के साथ रहे
साया बन कर साईं नाथ का
सुख दुख उनके सँग सहे

बाबा जी की महासमाधि के
चार वर्ष के बाद
साईं में जा लीन हुए वो
मिला नाद से नाद

~Sai Sewika

जय साईं राम

Thursday, October 29, 2009

बाबा जी के भक्त- १ (श्यामा जी )

ॐ साईं राम

बाबा जी के भक्त- १ (श्यामा जी )

माधवराव देशपाँडे जी
शिरडी धाम में रहते थे
बहत्तर जन्मों से साईं सँग थे
ऐसा बाबा कहते थे

बच्चों को शिक्षा देते थे
गुरु धरे साईं राम
सुबह शाम बस साईं जपना
यही प्रिय था काम

बडे प्रेम से बाबा जी ने
उनको श्यामा नाम दिया
भक्ति पथ पर उन्हें बढाने
का बाबा ने काम किया

धर्म ग्रन्थ कभी उनको देकर
बाबा ने कृतार्थ किया
संकट और सुख में भी उनका
साईं नाथ ने साथ दिया

बाबाजी के भक्त प्रिय थे
थोडे गुस्से वाले
लेकिन सब कुछ कर रक्खा था
साईं नाथ के हवाले

बाबा जी से तनिक भी दूरी
उन्हें नहीं भाती थी
बिछड ना जाँए देव, सोच कर
जान चली जाती थी

जैसे शिव मँदिर के बाहर
नन्दी खडे रहते हैं
ऐसे बाबा सँग हैं श्यामा
भक्त यही कहते हैं

दुखियों के कष्टों को श्यामा
बाबा तक पहुँचाते थे
बदले में उन भक्त जनों की
ढेर दुआँऐं पाते थे

श्यामा जी के रोम रोम में
साईं यूँ थे व्याप्
उनकी निद्रा में चलता था
साईं नाम का जाप

धन्य जन्म था श्यामा जी का
बाबा का सँग पाया
गत जन्मों के शुभ कर्मों से
जीव देव सँग आया

युगों युगों तक दिखा ना सुना,
था वो बँधन ऐसा
साईं ईश और श्यामा भक्त
के बीच बना था जैसा

~ Sai Sewika

जय साईं राम

ना सौदा ना व्यापार

ॐ साईं राम

ना सौदा ना व्यापार

ना कोई कौल किया है
ना करार किया है
साईं हमने तुमसे बस
प्यार किया है

ना कोई दावा किया है
ना ही वादा लिया है
साईं तुमसे जुडने का
इरादा किया है

ना कोई शर्त रक्खी है
ना ही माँग रक्खी है
तेरे पैरों तले हे नाथ
दिल और जान रक्खी है

ना मुराद माँगी कोई
ना ही आस लगाई है
बस दिल में तेरे लिए
इक मस्जिद बनाई है

ना कोई रसमें ही निभायी
ना ही कसमें खाई हैं
दिल की मस्जिद में तुझे
बैठाया हे साईं है

ना ही सौदा किया है
ना व्यापार किया है
तुझपे साईं तन मन
ये वार दिया है

~Sai Sewika

जय साईं राम

Friday, October 23, 2009

तव दर्शन की प्यासी अखियाँ

ॐ साईं राम

तव दर्शन की प्यासी अखियाँ

तव दर्शन की प्यासी अखियाँ
तुम बिन रहे उदासी अखियाँ

सब में ढूँढे तुझको अखियाँ
दुख देती हैं मुझको अखियाँ

राह तकती हैं तेरा अखियाँ
माने कहा ना मेरा अखियाँ

हर आहट पे चौंकें अखियाँ
बह जाती बे मौके अखियाँ

जागे रात रात भर अखियाँ
भर आती हर बात पे अखियाँ

तुझे देख मुस्काती अखियाँ
सब बातें कह जाती अखियाँ

तुझसे जुडी घनेरी अखियाँ
मेरी हैं या तेरी अखियाँ

~Sai Sewika

जय साईं राम
ॐ सांई राम!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

सच है क्या और झूठ है क्या,
ये मैं कुछ भी नहीं जानती,
मेरे कर्म है क्या , और अकर्म है क्या,
मैं कुछ भी नहीं पहचानती,
पाप है क्या और पुन्य है क्या,
मैं ये भी नहीं जानती,
जो दिल कहता वो मैं करती,
बस दिल का कहाँ मैं मानती,
कल क्या होगा किसने दिखा,
जो बीत गया वो बिसरा लेखा,
आज है जो वही सच है बस,
इसी को सच मैं मानती,
तूने सच दिखलाया मुझको,
मैं कुछ नहीं थी जानती,
यही कारण है ओ मेरे सांई-
जो तुझे ही अपना सर्वाधार मैं मानती~~~

jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot

जय सांई राम!!!

BABA & Me~~~

Om Sai Ram!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

BABA & Me~~~

बाबा तुम हवा मैं सांस,
बाबा , मैं निआसरा ,तुम मेरी आस,
बाबा तुम रास्ता मैं राही,
बाबा तुम पानी , मैं प्यास,
बाबा तुम रोटी , मैं भूख,
बाबा तुम फूल मैं कान्टा,
बाबा तुम सुख के हो सागर,
और मैं दुःख,
बाबा तुम निर्मल , कोमल, सुंदर, सुशील,
मैं मैली,कुरूप,गंदी,
बाबा तुम ज्ञान का हो सागर,
मैं खाली हूँ गागर,
बाबा, मैं बाङ तुम लहर,
बाबा,मैं काला बादल तूं बारिश,
बाबा, तुम पूर्णिमा, मैं अमाव्सया,
बाबा, मैं रात काली, तुम सहर,
बाबा तुम शाम ठंडी, मैं तपती दोपहर,
बाबा, मैं पतझङ ,तुम सावन,
तुम शीतल चँद,मैं तपता सूरज,
बाबा तुम राम, मैं रावण,
बाबा, मैं लोहे जैसी सख्त,तुम सोने से नरम,
बाबा तुम झरना हो शीतल से, और मैं आग जैसी गरम,
बाबा तुम हीरा, तुम मोती, मैं रोङा, मैं पत्थर,
बाबा तुम डाली हो नरम सी, मैं तना बङा सख्त,
मैं खाली हूँ गागर,
बाबा, मैं बाङ तुम लहर,
बाबा मैं पतझङ , तुम हो सावन,
बाबा तुम राम, मैं रावण~~~



BABA You are air & me breathing,
BABA, I am helpless & you are the help,
BABA You are way & me a visitor ,
BABA You are water & me a thirst,
BABA You are diet & me hunger,
BABA You are flower & me a thorn,
BABA You are the ocean of joy,
& me a misery,
BABA You are pure, soft , beautiful & sensible,
& me impure , ugly & dirty,
BABA You are the knowledge of truth,
& me an empty pot,
BABA, me a flood & You are wave,
BABA, I am black cloud & You are rain)
BABA You are full bright moon & me smallest dark moon,
BABA ,I am dark night & You are bright morning,
BABA You are cool evening & me a hot noon,
BABA , me bad weather & You are Spring,
BABA You are cool moon & me burning sun,
BABA You are good soul & me a bad one,
BABA, I am a hard steel & You are soft pure gold,
BABA You are pure water fall & me burning fire,
BAAB You are a diamond, a jewel & me a stone, a rock,
BABA You are a soft branch & me very hard,
BABA , me an empty pot,
BABA me flood & You are a wave,
BABA ,I am a bad weather & You are Spring season,
BABA You are good soul & me a bad one~~

जय सांई राम!!!

ये कौन चमत्कार है ?? Who is this Creator ?

Om Sai Ram!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

ये कौन चमत्कार है ??
Who is this Creator ?

ये कौन चमत्कार है , ये कौन चमत्कार ??
जिसने बनाये है पहाङ और बनायी है चोटियां,
उसके बनाये चित्र कल्पना के पार है,
ये कौन चमत्कार है , ये कौन चमत्कार ??

Who is this Creator, who is this anyway?
Who has created Hills & Peaks?
He has made this world beyond imagination & expectation,
Who is this Creator, who is this?

यहां बाग है हरे भरे-वसुंधरा के साथ सटे,
उसने बनाये फूल कांटों के साथ खङे है,
ये कौन चमत्कार है , ये कौन चमत्कार ??

Here the gardens are green & full of beauty & flowers,
He has created Flowers along with thorns,
Who is this Creator, who is this?

यहां पेङ है बङे-बङे,सत्म्भ से खङे-खङे,
कि आसमान पर सितारों चाँद का श्रंगार है,
समुन्दर है भरे पढे बादलों की छावं से,
कि जिसमें झलकता आकाश बार-बार है,
ये कौन चमत्कार है , ये कौन चमत्कार ??

He created v big & tall trees which are standing like pillars,
That the Sky decorated with Stars & Moon,
Seas are filled with pure water & are covered with the shadows of the Clouds,
& the Sky is looking from with in the Clouds,
Who is this Creator, who is this?

Jai Sai Ram!!!

Thursday, October 15, 2009

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

मैंने कहा फूलों से
मैंने कहा आँगन के...
फूलों से हँसो तो वो खिलखिला के हँस दिये
और ये कहा जीवन है भाई मेरे भाई हँसने के लिये

सूरज हँसा तो बिखर बिखर गईं किरनें
सूरज हँसा रे किरन किरन चुन कर धरती ये
सज के सुनहरी बन गई रे
मैंने कहा आँगन के...
ओ मैंने कहा सपनों से सजो तो वो मुस्कुरा के सज गये
और ये कहा जीवन है भाई मेरे भाई सजने के लिये
सजने के लिये

मौसम मिला वो कहीं एक दिन मुझको
मौसम मिला रे मैंने कहा रुको खेलो मेरे संग तुम
मौसम भला रुका जो वो हो गया गुम
मैंने कहा आँगन के....
ओ मैंने कहा अपनों से चलो तो वो साथ मेरे चल दिये
और ये कहा जीवन है भाई मेरे भाई चलने के लिये
चलने के लिये
मैंने कहा
आँगन के...
फूलों से हँसो तो वो खिलखिला कर हँस दिये





Sai आँगन mei...
कैसी है ये रुत के जिस में फूल बनके दिल खिले
घुल रहे हैं रंग सारे घुल रही हैं ख़ःउशबूएं
चाँदनी झरने घटायें गीत बारिश तितलियाँ
हम पे हो गये हैं सब मेहरबान

Sai आँगन mei...
देखो नदी के किनारे पंछी पुकारे किसी पंछी को
देखो ये जो नदी है मिलने चली है सागर ही को
ये प्यार का ही साअरा है कारवान

कसी है ये रुत के ...Sai आँगन mei...

हो, कैसे किसी को बतायें कैसे ये समझायें क्या प्यार है
इस में बंधन नहीं है और ना कोई भी दीवार है
सुनो प्यार की निराली है दास्ताँ

कैसी है ये रुत ...Sai आँगन mei...





~Sai Preet

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

साईं राम

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

साईं के सुंदर आँगन की
प्रथम सालगिरह आई
इस पावन पुनीत वेला की
सब भक्तों को बहुत बधाई

साईं नाथ का नाम लिए यहाँ
हर दिन सूरज उगता है
दिल ढलने पर वो ही सूरज
मस्तक टेके झुकता है

श्री साईं का लीला गान
यहाँ पे चलता रहता है
साईं नाम का निर्मल झरना
यहीं कहीं पे बहता है

कभी कोई शुकराना, कोई
क्षमा याचना करता है
कभी कोई श्रद्धा के फूल
श्री चरणों में धरता है

साई के दीवाने आ यहाँ
दिल की बातें करते हैं
भक्ति की अगली सीढी पर
साईं नाम ले चढते हैं

हर दिन यहाँ "साईं दिवस" है
"साईं सन्ध्या" हर शाम है
कण कण में यहाँ रचा बसा सा
साईं नाथ का नाम है

साईं का आँगन ये प्यारा
सजा रहे, फूले फले
निर्भय, निशचित भक्त रहें
साईं के आँचल तले

~Sai Sewika

जय साईं राम

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

ॐ साईं राम

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

एक बरस हो गया
साईं का आँगन सजा
आँगन में फहरा रही
साईं नाम की ध्वजा

साईं की ममता तले
भक्तों के पुण्य फले
एक मालिक की डगर पे
कई कदम बढ चले

हाथों में थामें हुए
साई नाम की मशाल
दूर करने को अँधेरा
आ गए साईं के लाल

भीड भक्तों की जुडी
जुड के सत्सँगत बनी
शुद्धत्तम हर आत्मा
साईं के रंग में रंगी

साईं का आँगन मिला
जैसे साईं मिल गए
पडी फुहार नाम की तो
भक्ति के गुल खिल गए

साईं के आँगन को बाबा
आशिष अपना दीजिए
बना रहे युगों युगों तक
श्री अनुकम्पा कीजिए

~Sai Sewika

जय साईं राम

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

Om Sai Ram!!!

Sai♥Ka♥Aangan~Celebrating Its First Saimayi Anniversary Week~~~

आओ सांई के गुण गायें.
उस पर अपना ध्यान लगायें,
आओ सांई के इस आँगन को महकाएं~~

जिस से जगमग है जग सारा,
वही ज्योति आंखों में लायें,
आओ सांई के इस आँगन को महकाएं~~

जिस बगिया में सुगन्ध उस की,
फूल वहीं से चुनकर लायें,
आओ सांई के इस आँगन को महकाएं~~

सत्य नदी वह सबसे गहरी,
उस की धारा में बह जायें,
आओ सांई के इस आँगन को महकाएं~~

जो सुख, दुख देता जीवन में,
उस से शान्ति निरन्तर पायें,
आओ सांई के इस आँगन को महकाएं~~

jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot jyot



Jai Sai Ram!!!

Wednesday, October 14, 2009

बस इतनी सी अरज है

ॐ साईं राम

बस इतनी सी अरज है

यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ
जहाँ में चाहे जहां रहूँ

तझसे ही बस प्रेम करूँ
तेरा ही बस ध्यान धरूँ

तुझमें ये मन रमा रहे
नाम मनन का समा रहे

तेरी चर्चा में सुख पाऊँ
हर क्षण तुझको सन्मुख पाऊँ

नयनों में तव रूप भरा हो
तुझमें श्रद्धा भाव खरा हो

कोई ऐसा साँस ना आवे
संग जो तेरा नाम ना ध्यावे

नाम तेरा ले सोऊँ जागूँ
तुझसे बस तुझको ही माँगूं

तुझमें ही तल्लीन रहूँ मैं
तेरे भाव में लीन रहूँ मैं

चढ जाए मुझपे नाम खुमारी
मर जाए भीतर का संसारी

ठोको पीटो जैसे मुझको
स्व साँचे में ढालो मुझको

बस इतनी सी अरज है मेरी
तुझसे जुडना गरज है मेरी

~SaiSewika

जय साईं राम

Saturday, October 10, 2009

सांई तेरी आँखें~~~

ॐ सांई राम!!!

सांई तेरी आँखें~~~

जब जब देखूं मैं तेरी आँखों में सांई,
लगता है ये कुछ तो बोल रही है,
मेरी आँखों की नमी तेरी आँखों मैं सांई,
लगता है राज़ ये कुछ तो खोल रही है~

सांई तुझसे एक मुलाकात पर लुटा दूँ,
मैं सारी दुनिया की दौलतें,
पर ये भी तो सच है मेरे सांई,
इस मुलाकात तो कोई मोल नहीं है,
मेरी आँखों की नमी............

जब भी सांई मैने तुझे है पुकारा,
तेरी प्रीत ने दिया है हर मोङ पर सहारा,
मेरी प्रीत को शायद लगता है सांई,
अब तेरी प्रीत भी तोल रहे है,
मेरी आँखों की नमी............

सहना पङा है तुझ को भी मेरी,
खातिर बहुत कुछ सांई,
ना छुपा पाया तूँ भी कुछ मुझ से सांई,
तेरी आँखें हर पोल खोल रही है,
मेरी आँखों की नमी............

रंग गया है लगता है तूँ भी सांई,
प्रीत क कुछ अज़ब ही रंग है,
रंग ले मुझको भी इस रंग में सांई,
तेरी "सुधा" कब से ये रंग घोल रही है~~~

~सांईसुधा

SAI SUDHA {Poems in Hindi}

जय सांई राम!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

ॐ साईं राम!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

लोग कहेगें पागल हूँ मैं तो हो गई हूँ दीवानी,
पर मेरे दिल की प्यास किसी ने न जानी,
लोग क्या जाने दीदार की तङप,
जिसे हो वही जाने ये दर्द,
हर किसी में तुझे ढूढ़ती फिरूं,
तेरी एक झलक को तरसती फिरूं,
साईं,एक कर्म कीजिए,रोज़ का झंझट खत्म कीजिए,
मेरे नैनों में बस जाइऐ,या फिर मुझे खाक बना दीजिए,
अपने चरणों के नीचे बिछा लीजिए,इस जीने से अलग कीजिए,
यह तङप अब सही न जाए,ये दर्द बढता ही जाए,
कीजिए दया अब , मेरे साईं मेरे बाबा , मेरे नैनों में बस जाइऐ~~~

जय साईं राम!!!

Thursday, October 8, 2009

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

ॐ सांई राम!!!

मेरे साईं मेरे बाबा ~~~

वो आए रूके कुछ पल , झाका और चल दिए,
मैं दौङी पीछे पकङा हाथ,
और हैरानी से पूछा कहां चल दिए,
वो बोले बङे दुखी मन से ...
अरे पगली
तुने की थी पुकार ति में दौङा चला आया,
पर लगा जब अंदर आने,
तो देखा मैने कि भीङ है लगी हुई,
सभी ने है डेरा जमाया,
मैं बैठू कहां ये बता मुझको,
क्या है तेरे मन में मेरा ठिकाना,
तू जब पुकारें मुझे मैं दौङा चला आता हूँ,
पर तू तो ये भी ना जाने कि है मुझे कहां बिठाना,
इस भीङ को कुछ कम कर,
कर साफ मेरी जगह को,
फिर बुला मुझे फिर देख कभी ना होगा वापस जाना,
मैं हो गई शर्मिदां इस सच को जान कर,
कि मैने की पुकार मेरे बाबा आ भी गए,
पर कभी नहीं सोचा कि है उन्हे कहाँ बिठाना!!!!

जय सांई राम!!!

साईं नाम चालीसा

ॐ साईं राम

साईं नाम चालीसा

दो अक्षर से मिल बना
साईं नाम इक प्यारा
लिखते जाओ मिट जाएगा
जीवन का अँधियारा


ॐ साईं राम है
महामंत्र बलवान
इस मंत्र के जाप से
साईं राम को जान


ॐ साईं राम कह
ॐ साईं राम सुन
साईं नाम की छेड ले
भीतर मधुर मधुर सी धुन


जागो तो साईं राम कहो
जो भी सन्मुख आए
साईं साईं ध्याये जो
सो साईं को पाए


साईं नाम की माला फेरूँ
साईं के गुण गाऊँ
यहाँ वहाँ या जहाँ रहूँ
साईं को ही ध्याऊँ


साईं नाम सुनाम की
जोत जगी अखँड
नित्य जाप का घी पडे
होगी कभी ना मन्द


भक्ति भाव की कलम है
श्रद्धा की है स्याही
साईं नाम सम अति सुंदर
जग में दूजा नाहीं


साईं साईं साईं साईं
लिख लो मन में ध्यालो
साईॅ नाम अमोलक धन
पाओ और संभालो


साईं नाम सुनाम है
अति मधुर सुखदायी
साईं साईं के जाप से
रीझे सर्व सहाई


सिमर सिमर मनवा सिमर
साईंनाथ का नाम
बिगडी बातें बन जाऐंगी
पूरण होंगे काम


बिन हड्डी की जिव्हा मरी
यहां वहां चल जाए
साईं नाम गुण डाल दो
रसना में रस आए


सबसे सहज सुयोग है
साईं नाम धन दान
देकर प्रभू जी ने किया
भक्तों का कल्याण


घट के मंदिर में जले
साईं नाम की जोत
करे प्रकाशित आत्मा
हर के सारे खोट


साईं नाम का बैंक है
इसमें खाता खोल
हाथ से साईं लिखता जा
मुख से साईं बोल


साईं नाम की बही लिखी
कटे कर्म के बन्ध
अजपा जाप चला जो अन्दर
पाप अग्नि हुई मन्द


साईं नाम का जाप है
सर्व सुखों की खान
नाम जपे, सुरति लगे
मिटे सभी अज्ञान


मूल्यवान जिव्हा बडी
बैठी बँद कपाट
बैठे बैठे नाम जपे
अजब अनोखे ठाठ


मुख में साईं का नाम हो
हाथ साईं का काम
साईं महिमा कान सुने
पाँव चले साईं धाम


साईं नाम कस्तूरी है
करे सुवासित आत्म
गिरह बँधा जो नाम तो
मिल जाए परमात्म


साईं नाम का रोकडा
जिसकी गाँठ में होए
चोरी का तो डर नहीं
सुख की निद्रा सोए

साईं नाम सुनाम का
गूँजे अनहद नाद
सकल शरीर स्पंदित हो
उमडे प्रेम अगाध

मन रे साईं साईं ही बोल
मन मँदिर के पट ले खोल
मधुर नाम रस पान अमोलक
कानों में रस देता घोल

श्री चरणों में बैठ कर
जपूँ साईं का नाम
मग्न रहूँ तव ध्यान में
भूलूँ जाग के काम

साईं साईं साईं जपूँ
छेड सुरीली तान
रसना बने रसिक तेरी
करे साईं गुणगान

साईं नाम शीतल तरू
ठँडी इसकी छाँव
आन तले बैठो यहीं
यहीं बसाओ गाँव

साईं नाम जहाज है
दरिया है सँसार
भक्ति भव ले चढ जाओ
सहज लगोगे पार

साईं नाम को बोल कर
करूँ तेरा जयघोष
रीझे राज धिराज तो
भरें दीन के कोष

बरसे बँजर जीवन में
साईं नाम का मेघ
तन मन भीगे नाम में
बढे प्रेम का वेग

उजली चादर नाम की
ओढूँ सिर से पैर
मैं भी उजली हो गई
तज के मन के वैर

सिमरन साईं नाम का
करो प्रेम के साथ
धृति धारणा धार कर
पकड साईं का हाथ

साईं नाम रस पान का
अजब अनोखा स्वाद
उन्मत्त मन भी रम गया
छूटे सभी विषाद

साईं नाम रस की नदी
कल कल बहती जाए
मलयुत्त मैला मन मेरा
निर्मल करती जाए

साईं नाम महामँत्र है
जप लो आठो याम
सकल मनोरथ सिद्ध हों
लगे नहीं कुछ दाम

साईं नाम सुयोग है
जो कोई इसको पावे
कटे चौरासी सहज ही
भवसागर तर जावे

पारस साईं नाम का
कर दे चोखा सोना
साईं नाम से दमक उठे
मन का कोना कोना

साईं नाम गुणगान से
बढे भक्ति का भाव
श्रद्धा सबुरी सुलभ हो
चढे मिलन का चाव

मनवा साईं साईं कह
बनके मस्त मलँग
साईं नाम की लहक रही
अन्तस बसी उमँग

सरस सुरीला गीत है
साईं राम का नाम
तन मँदिर सा हो गया
मन मँगलमय धाम

पू्र्ण भक्ति और प्रेम से
जपूँ साईं का नाम
श्री चरणों में गति मिले
पाऊँ चिर विश्राम

~Sai Sewika

जय साईं राम
OM SRI SAI NATHAYA NAMAH. Dear Visitor, Please Join our Forum and be a part of Sai Family to share your experiences & Sai Leelas with the whole world. JAI SAI RAM

Visit Our Spiritual Forum & Join the Ever growing Sai Family !
http://www.sai-ka-aangan.org/

Member of Sai Web Directory

Sai Wallpapers
Powered by WebRing.