Thursday, July 30, 2009

भरोसा

ॐ साईं राम

मुझे भरोसा है तेरा
हे साईं अभिराम
तपता सूरज सिर पर हो
या ढलती हो शाम

पूरा है विश्वास कि
तुम हो मेरे साथ
जो मैं गिर भी जाऊँ तो
तुम्ही संभालो नाथ

विपदा का चाहे समय हो
या कष्ट हो घोर
मुझे भरोसा है साईॅ
तुम हो मेरी ओर

बीच अकेला छोड दें
सारे बंधु सुजान
तुम ना मुझ को छोडोगे
मेरे साईं राम

आधि व्याधि तू हरे
तू ही दोष निवारे
मुझे भरोसा है साईं
तू मुझे करे किनारे

मुझसे पहले जान ले
क्या हित में है मेरे
पूर्ण भरोसा मैं करूँ
साईं करुणाप्रेरे

काल कराल खडा रहे
चाहे मेरे द्वारे
तेरे भरोसे जीवन है
तू मारे या तारे

मेरा भरोसा रहे अटल
दिन दिन होवे गहरा
इस जीवन पर सदा रहे
श्री साईं का पहरा

एकांत वास में बैठ कर
सात समन्दर पार
तेरे भरोसे मैं जिऊँ
हे सच्ची सरकार

~सांई सेविका

जय राम साईं
ॐ साईं राम

बहुत कुछ कहना है तुमसे बाबा
पर कह नही पाती हूँ
अक्सर शब्दों का पीछा करते करते
थक सी जाती हूँ

बैठ जाती हूँ फिर यूँ ही
चुपचाप, गुमसुम
तभी होले से,पीछे से
आ जाते हो तुम

कुछ नईं पँक्तियां
मेरे कानों मे गुनगुनाते हो
शब्दों के ताने बाने
मुझे तुम सुनाते हो

थमा देते हो लेखनी
फिर मेरे हाथों में
चढ जाते हैं कई शब्द
ज़िन्दगी के खातों में

तुम्हारी मीठी सी महक लेकर
फिर नई कविता उभर आती है
बस यूँ ही तेरे ख्यालों में
ये उम्र गुज़री जाती है

~सांई सेविका

जय साईं राम

Thursday, July 23, 2009

एक विनती

साईं राम

बस इतना ही मांगा है
साईं तेरी दासी ने
पावन चरणों की धूलि ने
शुभ दर्शन की प्यासी ने

साईं अपने भक्त जनों में
मुझको भी शामिल कर लो
सच्ची भक्ति मैं कर पाऊँ
देवा मुझको ये वर दो

जग की कोई आशा तृष्णा
मुझे ना विचलित करने पाए
वैभव या कोई महा प्रलोभन
साईं कभी ना मुझे लुभाए

"मैं" मर जाए साईं मेरा
अहम भाव का नाश हो
पर निंदा कर पाऊँ किसी की
ऐसा ना अवकाश हो

भक्ति का दिखावा ना हो
आडम्बर में पडूं नहीं
जो भी तुमने शिक्षा दी है
जीवन में बस करूँ वही

नाम तेरे की जोत अखंड से
मन का दूर अंधेरा हो
ज्ञान चक्षु खुल जाएं मेरे
जीवन मे नया सवेरा हो

मुझमें और तुझमें हे साईं
अब ना कोई दूरी हो
क्षण भर भी मैं भूलूं तुझको
ऐसी ना मजबूरी हो

आगम, अस्तित्व, अस्त मेरा
तुझसे ही बस जुडा रहे
कभी किसी क्षण जीव मेरा
तुझसे ना कभी जुदा रहे

शांत भाव , एकांत वास में
साईं तुझको ध्याऊँ मैं
ध्याता तू है, ध्येय भी तू ही
साईं तुझको पाऊँ मैं

गत जन्मों के सारे बन्धन
दाता अब तो तोडो तुम
अधम जीव को पार लगा दो
बीच भंवर ना छोडो तुम

~सांई सेविका

जय साईं राम

Tuesday, July 21, 2009

ॐ सांई राम~~~

मिट्टी का खिलौना~~~

सांई मुझे सिर्फ मिट्टी का खिलौना ना समझ
इसमे आवाज़ भी है और ज़ज़्बात भी है,
सांसों की डोर से बान्धा है जब से तूने इसे,
होता इसे हर दर्द का आभास भी है~

आते तुझे है खेल बहुत ही सारे सांई,
आसमान पर है जितने भी सितारें सांई,
खेलने वाले पर क्या बीती इसका तुझे
कुछ आहास भी है,
हर दर्द का .............

तूने खिलाया है तो मैं खेली हूँ सांई,
भीङ में रही हूँ या मैं रही हूँ अकेली सांई,
तूँ ही बता क्या मेरे बस में,
मेरे यह हालात भी है,
हर दर्द का .............

सांई तूँ कहता है सब कुछ मैं करता हूँ,
आपने किया पर फिर मैं क्यूं इतना रोता हूँ,
आपने किया पर तूँ कुछ ना बोले और मेरे
किये पर हो जाता तूँ नाराज़ भी है,
हर दर्द का .............

सहन किया है सब कुछ सहन करूंगी,
पर अब तुझसे ना फरियाद करूंगी,
इतना ही बहुत है तूँ खेल रहा है इस बार
कि मुझे तुझ से आस भी है,
हर दर्द का .............

~सांईसुधा

जय सांई राम!!!
ॐ सांई राम!!!

तुझको मनाना है सांई!!!

आता है तुझ को बता क्या मज़ा
मुझको यूँ सताने में सांई,
उम्र बीत जायेगी यूँ मेरी
तुझको मनाने में मेरे सांई~

जोङ बैठी हूँ अपना नाम,
तेरे नाम के साथ मेरे सांई,
आ जाएगा कभी तो जिक्र मेरा भी,
तेरे किसी फसाने में सांई~

तेरे साथ लगता है इतना
प्यार मुझे मेरे सांए,
क्या बिगङेगा तेरा भी मेरा
साथ निभाने में सांई~

याद तेरी आती है तो रो
लेती हूँ मेरे सांई,
मिल जाता है कुछ तो सुकून
दामन को भिगोने में सांई~

कबूल कभी तो करोगे तुम
भी मौहब्ब्त है हम से सांई,
लगेगा मगर ना जाने कितना
वक्त तुझ को ये जताने में सांई~

बिछङे हुए ज़माना बीत गया
अभी-अभी मिले थे ऐसा लगता है मेरे सांई,
हर कोशिश हुई नाकाम मेरी
तेरा वो प्यार भुलाने में सांई~

मत तोल मेरे प्यार को
रिश्तों में मेरे सांई,
बहुत दर्द होता है इन
रिश्तों के टूट जाने में सांई~

कभी तो मिलोगे किसी मोङ पर
ज़िन्दगी एअक सफर ही तो है मेरे सांई,
मिल के बिछङना यही तो रीत
बनाई है तूने मेरे सांई~

~सांईसुधा

जय सांई राम!!!
ॐ सांई राम!!!

सांई तेरी आँखें~~~

जब जब देखूं मैं तेरी आँखों में सांई,
लगता है ये कुछ तो बोल रही है,
मेरी आँखों की नमी तेरी आँखों मैं सांई,
लगता है राज़ ये कुछ तो खोल रही है~

सांई तुझसे एक मुलाकात पर लुटा दूँ,
मैं सारी दुनिया की दौलतें,
पर ये भी तो सच है मेरे सांई,
इस मुलाकात तो कोई मोल नहीं है,
मेरी आँखों की नमी............

जब भी सांई मैने तुझे है पुकारा,
तेरी प्रीत ने दिया है हर मोङ पर सहारा,
मेरी प्रीत को शायद लगता है सांई,
अब तेरी प्रीत भी तोल रहे है,
मेरी आँखों की नमी............

सहना पङा है तुझ को भी मेरी,
खातिर बहुत कुछ सांई,
ना छुपा पाया तूँ भी कुछ मुझ से सांई,
तेरी आँखें हर पोल खोल रही है,
मेरी आँखों की नमी............

रंग गया है लगता है तूँ भी सांई,
प्रीत क कुछ अज़ब ही रंग है,
रंग ले मुझको भी इस रंग में सांई,
तेरी "सुधा" कब से ये रंग घोल रही है~~~

~सांईसुधा

जय सांई राम!!!
ओम साईं राम

मेरे बाबा को बहुत ही
भाते हैं ये आंसू
जब याद उनकी आती है
संग आते हैं ये आंसू

सच्चे प्रेम के साक्षी हैं
साथी हैं ये आंसू
विरह नहीं सह पाते हैं
जज़्बाती हैं ये आंसू

होंठ जब खामोश रहें
सब कह जाते हैं ये आंसू
जब ज़ोर कहीं नहीं चलता तो
बह जाते हैं ये आंसू

बाबा को याद करके
आते हैं जब आंसू
आंसू नहीं रहते
फूल बन जाते हैं आंसू

हाले दिल साईं को
सुनाते हैं आंसू
भक्ती की ऊंची सीढी पर
चढ जाते हैं आंसू

बाबा की नज़रों से ना
बच पाते हैं आंसू
डोर बनके उनको पास
ले आते हैं आंसू

दरिया से भी गहरे और
खारे हैं ये आंसू
इसीलिये तो बाबा को
प्यारे हैं ये आंसू

~साईं सेविका

जय साईं राम

शिवजी के अवतार

साईं राम

साईं अपरम्पार तुम
शिवजी के अवतार तुम

भक्त जनों का करने तारण
मानव चोला कर लिया धारण

धरती पर उतरे कैलासी
बन कर देवा शिरडी वासी

विरक्ति वही विराग वही था
नवजीवन पर त्याग वही था

त्रिशूल छोड कर सटका थामा
जटाधारी ने पटका बांधा

व्याघ्र चर्म को छोड़ के दाता
कफनी धारण करी विधाता

त्याग कमंडल पकडा टमरैल
सबके दिल का धोते मैल

शिव साईं ने मांगी भिक्शा
मालिक एक की देते शिक्शा

जटा की गंगा चरण में लाए
भक्त जनों का मन हरषाए

तन की भस्म की करी विभूति
स्वंय हाथ से देते ऊदि

मृगछाला का छोड बिछोना
शुरु किया तख्ते पर सोना

उसके भी टुकड़े कर डाले
शिव साईं के रंग निराले

वीतरागी थे महा अघोरी
सबके दिल की करते चोरी

अमृत छोड के विष पी जाते
भक्तों का हर दुख अपनाते

शिवशंकर साईं भगवान
कोटि कोटि है तुम्हें प्रणाम

~साईं सेविका


जय साईं राम

Monday, July 20, 2009

ॐ सांई राम!!!

रब्बा मेरे हाल दा मेहरम तू रहीओ ,
अन्दर तू है बाहर तू है ,
रोम रोम विच तू ,
तू है ताना , तू है बाना ,
सब कुछ मेरा तू...
कहे हुसैन फ़कीर निमाणा ...
मैं नही सब तू...

मेरे बाबा मेरे सांई मेरे मालिक मेरे मौला....

{मेहरम} Mehram means those people who are very near to you with...

जय सांई राम!!!
ॐ सांई राम!!!

अनदेखे प्रियतम प्यारे सांई ,
हे अविनाशी हे सुखधाम,
तूने कृपा बरसाई है ,
जो अब मेरी बारी आई है ।
सुख पा लिया, दुख झेल लिया,
संसारिक खेल भी खेल लिया,
अब मिला सहारा सांई तेरा,
मेरे परमकृपालु बाबा का,
अब इस अमृत का मैं पान करूं,
इस गंगा में मैं स्नान करूं,
अब और नहीं कुछ चाहूं मैं,
बस इन चरणों में खो जाऊं मैं~~~

जय सांई राम!!!
ओम साईं राम

साईं मुझे हर पल तेरा साथ चाहिए
सिर पर हमेंशा तेरा हाथ चाहिए

मेरे हर करम पर निगाह अपनी रखना
मुझको हे मालिक पनाह अपनी रखना

भटकूं कभी तो तू राह दिखाना
ना भूलूं तुझे ऐसी चाह जगाना

मेरा हर रस्ता तेरे दर पे पहुंचे
मेरा हर कदम बस तेरे घर पे पहुंचे

आकर थाम लेना मैं गिरने लगूं जो
गिराना, तेरी राह से फिरने लगूं तो

कोई लम्हा तुझसे जुदा ना हो मेरा
तुझसे अलग कोई खुदा ना हो मेरा

तुझसे ना शुरु ऐसी कोई बात ना हो
तुझपे ना खत्म ऐसे जज़्बात ना हो

सांसों में दिल में समाए तू रहना
मेरा ये भरोसा बनाए तू रहना

~सांई सेविका

जय साईं राम

Thursday, July 16, 2009

ओम साईं राम

कैसे करूं तुम्हारी पूजा


कल रात मेरे सपने मे
फिर से बाबा आए
हाथ जोडकर खडी रही मैं
जडवत शीश नवाए

बाबा बोले प्रश्न पूछ ले
कर ना तू संकोच
जो भी तेरे मन में है
सब कह दे यूं ना सोच

श्री चरणों मे नत होकर मैं
बोली मेरे स्वामी
कुछ शंकाए मन में हैं
सुलझाओ अंतरयामी

कैसे करूं तुम्हारी पूजा
साईं ये बतलादो
विधि विधान जैसे भी हों
भक्तों को समझा दो

तुमको अर्पण करूं मैं बाबा
कैसे हों वो फूल
कोई ऐसा फूल नहीं है
जिसमें ना हों शूल

धूप दीप कहां से लाऊं
जिनमें सुगंध हो पूरी
बिना सुगंध के मेरी पूजा
रह ना जाए अधूरी

कैसे स्वर में मधुर आरती
गा के तुम्हें पुकारूं
कागा जैसी मेरी वाणी
कैसे इसे सुधारूं

नैवेद्य बनाऊं कैसा जो हो
मनभावन प्रभु तेरा
स्वीकारो तुम खुशी खुशी से
जो चढावा हो मेरा

इन सारे प्रश्नों को सुनकर
बाबा जी मुस्काए
फिर पूजा कैसी हो इसके
सभी भेद समझाए

बोले मुझको नहीं चाहिए
पुष्पों की कोई माला
अपने मन को "सुमन" बना कर
अर्पित कर दो बाला

धूप दीप या बाती की
मुझे नही दरकार
श्रद्धा और सबूरी ही मैं
कर लेता स्वीकार

दे सको तो अपने सारे अवगुण
मेरे आगे डालो
सेवा और त्याग का मार्ग
जीवन में अपनालो

वाणी कर लो ऐसी कि तुम
जब भी मुख को खोलो
हर प्राणी से मधुर स्वरों में
मीठी बातें बोलो

कभी किसी का दिल ना तोडो
कभी ना करो विवाद
तेरे कारण किसी जीव को
कभी ना होवे विषाद

सीधी सच्ची भक्ति की राह
दिखलाता हूं तुझको
पूजा के कोई आडम्बर
नहीं चाहिए मुझको

पूर्ण भाव से नत हो कर के
करो एक ही बार
ऐसा श्रद्धामय वंदन मैं
कर लेता स्वीकार

~सांई सेविका

जय साईं राम

Monday, July 13, 2009

साईं सतचरित्र

साईं राम

साईं सतचरित्र

साईं सतचरित्र नाम की
महागंग है एक
इसमें डूब के तर गए
साईं भक्त अनेक

साईं मार्ग का जान लो
ये है अनुपम मोती
भक्तों के जीवन में जगती
इससे जगमग ज्योति

बाबाजी के जीवन की
इसमें सकल है गाथा
जो बांचे इसे प्रेम से
सो अतिशय सुख पाता

साईं नाथ का नाम ले
भाव की जोत बना लो
अश्रु घी बन जाएंगे
प्रेम का दीप जला लो

श्रद्धा और सबूरी से
अपने मन को भर लो
चिन्तन, मनन,ध्यान फिर
साईं नाथ का कर लो

मन में धर के धारणा
निशदिन पढो पढाओ
हर अक्षर के संग में
साईं साईं ध्याओ

सांयकाल या प्रातः हो
जब जी चाहे पढना
या फिर सप्ताह पाठ ही
चाहे इसका धरना

समय हो चाहे खुशी का
या आपद की घात
पढो समय कट जावेगा
यही सार की बात

सतचरित्र के पठन से
बढे भक्ति और ज्ञान
पतित आत्मा पावन हो
जन का हो कल्याण

अविद्या का नाश कर
काटे पाप के कर्म
भवसागर से पार हो
समझ गया जो मर्म

सतचरित्र के पाठ से
खुले मोक्ष के द्वार
जन्म मरण छूटे सभी
जन का हो उद्धार

~सांई सेविका

जय साईं राम

Saturday, July 11, 2009

साईं राम


हाथ जोड कर शीश झुका कर
साई तेरे दर पर आकर
बाबा करते हम अरदास
रखना श्री चरणो के पास

मागे हम हाथ पसारे
जो हम चाहे देना प्यारे
धन दौलत की नही है आस
ही राज योग की प्यास

नहीं चाहिये महल चौबारे
नहीं चाहिये वैभव सारे
नहीं चाहिये यश और मान
ना देना कोई सम्मान

जो हम चाहें सुन लो दाता
देना होगा तुम्हें विधाता
खाली हम ना जायेंगे
जो मान्गा सो पायेंगे

हमको प्रभु प्रेम दो ऐसा
शामा को देते थे जैसा
हरदम रखो अपने साथ
मस्तक पर धर कर श्री हाथ

भक्ति हममे जगाओ वैसी
जगाई मेधा मे थी जैसी
भक्ति मे भूलें जग सारा
केवल तेरा रहे सहारा

महादान हमको दो ऐसा
लक्श्मी शिन्दे को दिया था जैसा
अष्टांग योग नवधा भक्ति
साई सब है तेरी शक्ति

सेवा का अवसर दो ऐसा
भागो जी को दिया था जैसा
चाहे कष्ट अनेक सहें
श्री चरणों का ध्यान रहे

निकटता दे दो हमको वैसी
म्हाल्सापति को दी थी जैसी
प्रभु बना लो अपना दास
ह्रदय में करो निवास

सम्वाद करो हमसे प्रभु ऐसे
तात्या से करते थे जैसे
सुख दुख तुमसे बांट सकें
रिश्ता तुम से गान्ठ सके

महाग्यान दो हमको ऐसा
नाना साहेब को दिया था जैसा
दूर अझान अन्धेरा हो
जीवन में नया सवेरा हो

वाणी दे दो हमको वैसी
दासगणु को दी थी जैसी
घर घर तेरा गान करें
साई तेरा ध्यान धरें

आशिष दे दो हमको ऐसा
हेमाडपंत को दिया था जैसा
कुछ हम भी तो कर जाऎं
साईं स्तुति रच तर जाऎं

महाप्रसाद हमको दो ऐसा
देते राधा माई को जैसा
हम भी पाऎं कॄपा प्रसाद
शेष रहे ना कोई स्वाद

आधि व्याधि हर लो ऐसे
काका जी की हरी थी जैसे
शेष रहे ना कोई विकार
दुर्गुण , दुर्मन दुर्विचार

मुक्ति देना हमको वैसी
बालाराम को दी थी जैसी
श्री चरणों में डालें डेरा
जन्म मरण का छूटे फेरा

जो मांगा है नहीं असंभव
तुम चाहो तो कर दो संभव
विनती ना ठुकराओ तुम
बच्चों को अपनाओ तुम

माना दोष घनेरे हैं
बाबा फिर भी तेरे हैं
दो हमको मनचाहा दान
भक्तों का कर दो कल्याण


~सांई सेविका

जय साईं राम

Wednesday, July 8, 2009

ॐ साईं राम

कल रात सपने में मैनें
फिर बाबा को पुकारा
कई प्रश्न पूछने हैं
आ जाओ ना दोबारा

आवाज़ मेरी सुनकर
बाबाजी चले आए
प्रश्नों की झडी लगादी
बिन क्षण भी इक गवाए

जो भी था मेरे मन में
उनके समक्ष रखा
फिर साईं की वाणी का
सुमधुर सा रस चक्खा

मैंने कहा ये उनसे
साईं इतना तो बता दो
मेरी भक्ती में क्या कमी है
ये मुझको भी जता तो

कभी भी बाबा क्यूँ तुम
मेरे सामने ना आते
क्यूँ चमत्कार कोई
मुझको नहीं दिखलाते

सोती हूँ जागती हूँ
मैं तेरे ही सहारे
नख शिख से जानता है
मुझको तू साईं प्यारे

फिर क्यूँ नहीं दिखलाते
तुम लीला कोई न्यारी
अदभुत सा खेल कोई
दिखलादो अबकी बारी

वो फूलों की जो माला
मैनें तुम्हें चढाई
मैं देखती ही रह गयी
पर तुमने ना बढाई

मेरे सामने हे दाता
तुमने ना आँख खोली
इक पलक ही झपका दो
मैं कितना तुमसे बोली

साईं तेरे लबों को
मैं एक टक निहारी
कभी ना बोले मुझसे
तुम बाबा एक बारी

मेरे घर का हर इक कोना
मैंने तो छान डाला
तुम कहीं तो दिखोगे
ये वहम मैंने पाला

पर तुम दिखे ना मुझको
ना निशाँ कोई छोडा
कैसे बताऊँ साईं
इस दिल को तुमने तोडा

ये बात मेरी सुनकर
बाबाजी मुस्कुराए
इक क्षण में दूर हो गए
गमो के जो थे साए

सुमधुर वाणी में फिर
बाबाजी मुझसे बोले
कच्ची तुम्हारी भक्ती
जो क्षण क्षण में है डोले

क्यूँ देखना चाहती हो
तुम चमत्कार मेरा
विशवास उठ गया क्या
मुझसे ही कहो तेरा

क्या बार बार मुझको
परीक्षा देनी होगी
क्यूँ चमत्कार चाहता
आता है दर पे जो भी

मैं भी तो चाहता हूँ
कई भक्त ऐसे प्यारे
म्हालसापति जैसे
शामा के जैसे न्यारे

इच्छा रहित करी थी
उन सबने मेरी भक्ती
ना आशा थी ना तृष्णा
ना थी कोई आसक्ती

जो नहीं दिखाउंगा
मैं चमत्कार अपना
तो भूलोगी क्या मुझको
समझ के कोई सपना

चमत्कार की तुम
आशाएं ना यूँ पालो
चंचल अधीर मन को
साधो और संभालो

भक्ति बढाओ अपनी
ये माला, पलक छोडो
श्रधा से मन को भर के
तुम मेरी ओर मोडो



मैं देह में नहीं पर
भक्तों के दरम्यां हूँ
ह्रदय टटोलो अपना
पाओगी मैं वहाँ हूँ

~सांई सेविका

जय साईं राम
ॐ साईं राम

कल रात सपने में मैंने
बाबा जी को देखा
आंखों से आंसू झरते थे
मिट गयी थी स्मित रेखा

सिसक रहे थे मेरे बाबा
भरते लम्बी आँहें
भक्तों ने ये क्या कर डाला
चाहे या अनचाहे

मैंने तो समझा था मेरे
प्यारे भक्त अनेक
मिल जुल नाम करेंगे रोशन
मेरा सहित विवेक

देख देख गदगद होता था
सुंदर द्वारकामाई
दूर दूर के भक्तों ने
भावो. से जो सजायी

अनुभव कोई सुनाता अपने
नाम जाप कोई करता
मुझको सबने मान लिया था
सुख करता दुःख हरता

कुछ दिन से पर लगता ऐसा
भक्त खो गए सारे
तू तू मैं मैं पर आ उतरे
जो थे मेरे प्यारे

उलझन में यूँ उनको पाकर
मन रोता है मेरा
क्यूँ मेरे मन्दिर में छाया
अहम् भाव का घेरा

क्या मैं समझूं भक्तों का
विशवास ना मैंने जीता
या फिर श्रद्धा और सबुरी
से उनका मन रीता

घायल मन है दुखी आत्मा
देख सको तो देखो
नाम छोड़ कर भटक रहे हैं
मेरे भक्त अनेकों

बाबा जी की व्यथा जान कर
मन मेरा भी रोया
बाबा हमको वापस दे दो
जो भी हमने खोया

मानव हैं हम हमसे दाता
भूल हो गयी भारी
हाथ जोड़कर क्षमा माँगते
तुमसे बारी बारी

बस अपना आशीष और प्यार
मैया हमको दे दो
अहम् भाव सब तुम्हें समर्पण
इसको तुम ही ले लो

वादा करते हैं हम तुमसे
फिर ना होगा ऐसा
जैसा तुम चाहते हो साईं
मन्दिर रहेगा वैसा

~सांई सेविका

जय साईं राम
ओम साईं राम

साईं तेरा साथ मिला
जीवन से अब नहीं गिला

बाबा तेरी भक्ति पाई
दुख सहने की शक्ति पाई

मन में जागी श्रद्धा पूरी
सब्र किया और पाई सबूरी

श्री चरणों में डाला डेरा
दामन थाम लिया बस तेरा

भेद भाव की तोड दिवार
तुझ से कर ली आंखे चार

कर्ता पन का भाव छोडकर
मैं पन की तलवार तोड कर

तुझ से प्रीत लगाई साईं
थामें रहना सर्व सहाई

परम प्रिय हे साईं हुज़ूर
खुद से ना अब करना दूर

कभी छोडना ना तुम साथ
वरना जी ना पाएंगे हम नाथ

~सांई सेविका


जय साईं राम
ॐ साईं राम

साईं नाम की माला फेरूँ
साईं के गुण गाऊं
यहाँ वहाँ या जहाँ रहूँ
साईं साईं ध्याऊं

आँख उठाऊँ साईं दिखता
आँख झुकाऊँ साईं
मन मन्दिर में आन विराजा
मेरा सर्व सहाई

दीवानी सी हुई बावरी
साईं तेरी दासी
निरख निरख सुख पातीं
फिर भी अखियाँ रहती प्यासी

साँस साँस जो आती जाती
साईं साईं ध्याती
गुण गान करती ये जिव्हा
कभी ना थकने पाती

बस ऐसे ही साईं मेरे
तुझको ध्याती जाऊं
सिमर सिमर कर स्वास स्वास में
साईं तुझको पाऊँ

कभी ना भूलूं देवा तुझको
मुझको ऐसा कर दो
तुझको भूलूँ तो जग छूटे
साईं ऐसा वर दो

~सांई सेविका


जय साईं राम
ॐ साईं राम

मेरा जी चाहता है साईं
तेरा मैं गुणगान करूं
जहां भी कोरा कागज़ देखूं
लिख लिख तेरा नाम भरूं

आसमान पर साईं लिख दूं
सूरज की किरणों से मैं
नाम तेरा फिर गूंज उठे
भूतल के हर कण कण में

सागर की लहरों पर जाकर
बिखरा दूं मैं साईं नाम
दूर दूर तक जहां नज़र हो
वहीं पे देखूं तेरा धाम

हवाओं और फिज़ाओं पे लिख दूं
साईं नाथ मैं नाम तेरा
चमन में खुशबू बन कर फैले
जयघोष तेरा जयनाद तेरा

ज़र्रे ज़र्रे में भर जाए
साईं नाम का ही स्पंदन
पुलकित होकर दर्शन पाऊं
हर पल तेरा हो चितरंजन

साईंमय ये सृष्टि सारी
देखूं यहां वहां चहूं ओर
नज़रों से ओझल ना होना
मेरे चंचल चित्त के चोर

~सांई सेविका


जय साईं राम
ओम साईं राम

बाबा जी के दोहे----------


मन्दिर मस्जिद जोड के
द्वारका देइ बनाय
सबका मालिक एक है
साईं दियो समझाय

गोदावरी के तीर की
महिमा दस दिस छाई
प्रभु स्वयं ही प्रगट हुए
नाम धराया साईं

तीन वाडों के बीच में
हरि करते विश्राम
तांता भक्तों का लगा
शिरडी बन गई धाम

हिन्दु हैं या यवन हैं
बाबा नहीं बतलाए
जैसी जाकी भावना
तैसो दरशन पाए

चन्दन उत्सव जोड दिया
रामनवमी के संग
हिन्दु मुसलिम प्रेम का
खूब जमा फिर रंग

पाप ताप संताप का
करने हेतु अंत
बाबा चक्की पीसते
देखे हेमाडपंत

चक्की में आटा पिसा
मेढ दियो बिख्रराय
शिरडी से सभी व्याधी को
साईं दियो भगाय

पोथी पढे नहीं होत है
अग्यानी को ग्यान
सदगुरु जिसके ह्रदय बसे
ताको ग्यानी जान

द्वारकामाई की गोद मे
बैठो कर विश्वास
सबके पापों का माई
कर देती है नाश

समाधि मंदिर की सीढी पर
रख देते जो पांव
उनके जीवन दुख का
रहे ना कोई ठांव

सब जीवों में देखे जो
साईं राम का वास
उसके ह्रदय में साईं
आप ही करे निवास

दास गणु क्यूं जात हो
प्रयाग काशी आप
गंगा जमना यहीं रहे
श्री चरणों में व्याप

तेली तुमने दिया नहीं
साईंनाथ को तेल
पानी से दीपक जले
लीला के थे खेल

चोलकर शक्कर छोड के
जोडे पाई पाई
अंतरयामी साईं ने
कर दीन्ही भरपाई

जो जन की निंदा करे
ऐसो ही गति पाए
जैसे कूडा ढेर से
शूकर विष्ठा खाए

पूजन चिन्तन मनन का
जो करता अभ्यास
साईं उसके साथ हैं
साईं उसके पास

मर्म दक्षिणा जान लो
पूरा लो पहचान
कर्मबन्ध के काटने
साईं लेते दान

नश्वर ये संसार है
मोह माया को त्याग
यही बताने को साईं
ऊदी दियो परसाद

धूप दीप का थाल ले
जोग खडे प्रभु द्वार
तांत्या चंवर ढुला रहे
नाना है बलिहार

~सांई सेविका

जय साईं राम

गुरु शिष्य पूर्णिमा

ॐ साईं राम

गुरु शिष्य पूर्णिमा


सदगुरू साईं गुरू दिवस की
आपको बहुत बधाई
श्री चरणों में हमको रखना
साईं सर्व सहाई

पुण्य दिवस में हमको साई
बस इतना ही वर दो
गुरू दिवस के संग संग इसको
शिष्य पूर्णिमा कर दो

हर शिष्य के मन मंदिर में
साई आन विराजो
दास जनों के हृदय पटल पर
सूरज सम तुम साजो

शरण में अपनी राखिए
सदगुरू साईं सुजान
श्रद्धा और सबूरी का
प्रभु दीजिए दान

भक्ति से साईं आपकी
कभी ना भटके मन
हर पल तुझमें रमा रहे
नश्वर ये जो तन

सबके मन में सदा जले
तेरे नाम की जोत
प्रेम तेरे के रंग में साईं
रहें ओत और प्रोत

सदगुरू की महिमा अनंत
नित नित गाते जाएं
प्रति दिवस हो गुरू पूर्णिमा
हर दिन इसे मनाऐ

गुरू शिष्य की परम्परा
सदा रहे अखंड
ऐसा आशिश दीजिए
हे श्री सच्चिदानन्द॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

~सांई सेविका

जय साई राम

Thursday, July 2, 2009

ॐ सांई राम!!!

सांई तेरी आँखें~~~

जब जब देखूं मैं तेरी आँखों में सांई,
लगता है ये कुछ तो बोल रही है,
मेरी आँखों की नमी तेरी आँखों मैं सांई,
लगता है राज़ ये कुछ तो खोल रही है~

सांई तुझसे एक मुलाकात पर लुटा दूँ,
मैं सारी दुनिया की दौलतें,
पर ये भी तो सच है मेरे सांई,
इस मुलाकात तो कोई मोल नहीं है,
मेरी आँखों की नमी............

जब भी सांई मैने तुझे है पुकारा,
तेरी प्रीत ने दिया है हर मोङ पर सहारा,
मेरी प्रीत को शायद लगता है सांई,
अब तेरी प्रीत भी तोल रहे है,
मेरी आँखों की नमी............

सहना पङा है तुझ को भी मेरी,
खातिर बहुत कुछ सांई,
ना छुपा पाया तूँ भी कुछ मुझ से सांई,
तेरी आँखें हर पोल खोल रही है,
मेरी आँखों की नमी............

रंग गया है लगता है तूँ भी सांई,
प्रीत क कुछ अज़ब ही रंग है,
रंग ले मुझको भी इस रंग में सांई,
तेरी "सुधा" कब से ये रंग घोल रही है~~~

~सांईसुधा

जय सांई राम!!!
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