Friday, September 24, 2010

ॐ साईं राम

धन्यवाद हो तेरा साईंरोम रोम से मेरेतू ही पार लगाता स्वामीभक्त जनों के बेडे

कैसे करता है तू देवालीला इतनी प्यारीबँजर भूमि में उपजाताफूलों से भरी क्यारी

बीहड में तू स्त्रोत बहाताअदभुत तेरी क्षमताकृपा सिन्धु तू दया की मूरतछल छल छलके ममता

असँभव को कर देता सँभवजाने कैसे दातादे देता है उसको जो भीहाथ पसारे आता

तेरे आषिश से हे साईंपँगु चढते परबतचक्षुहीन दृष्टि पा जातेऐसे तेरे करतब

नास्तिक के हृदय में देवातू भक्ति उपजातापाषाण हृदय हैं जिनके उन मेंप्रेम के दीप जलाता

बुद्धिहीन को बुद्धि देतानिर्बल को बल देताभक्त जनों के दुख तकलीफेंअपने ऊपर लेता

निर्धन धन पाते हैं मालिकआ कर तेरे द्वारेबीच भँवर में जिनकी नैयाकरता तू ही किनारे

अवगुण दूर हटा कर तूविनम्र बनाता दासतेरे शरण में आ कर होताअहँकार का नाश

तेरी ऊदि से मिट जातेपाप ताप और श्रापकृपा दृष्टि से मिट जाते हैंमन के सब सँताप

क्या गिनवाऊँ कैसे गाऊँतेरा लीला गानशब्दकोश में शब्द नहींमैं कैसे करूँ बखान

वाणी में रस, हृदय में भावभर दे करुणाप्रेरेनित नित गाऊँ गान तेराअहोभाग्य हों मेरे

~Sai Sewika

जय साईं राम
 
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