Thursday, September 23, 2010

ऒम सांई राम

ये जो नश्वर काया हैइसकी अद्भुत माया हैमानों तो ये सब कुछ है जान लो तो छाया है
चाहो तो जगत मिथ्या में तुम राग रंग में मस्त रहो या फिर खुद को पहचानो श्री चरणों में अलमस्त रहो
चाहो तो इस पर मान करो इस रूप पर अभिमान करो पर इसने तो ढल जाना है इस सच पर थोडा ध्यान धरो
वात्त, पित्त और कफ़ से दूषित ऐसी नश्वर काया को साईं नाम से निर्मल करके जानो ठगिनी माया को
तो चलो क्षणभंगुर काया को साईं नाम कर देते हैंअंग अंग में साईं नाम की भक्ति को भर लेते हैं
पांच इन्द्रियां केन्द्रित हो जायें बाबा जी के ध्यान में पांचों प्राण बाबा जी को मन्जिल अपनी मान लें
ह्रदय को सुह्रदय कर लेंमन को करें सुमन फिर बाबा को अर्पण करके पावें नाम का धन
बुद्धि को सद् बुद्धि कर लें चित्त को सत्चिदानन्दधृत्ति धारणा धार के पावें परमानन्द
पलक उठे जब जब भी अपनेबाबा जी का दर्शन पाये पलक झुके तो मन मन्दिर मेंबाबाजी को बैठा पाये
मुख से जब कुछ बोलें तो साईं नाम ही दोहरायें कानों से कुछ सुनना हो तो साईं नाद ही सुन पायें
हाथ उठें तो जुड जायें श्री चरणों में भक्ति से कारज करते साईं ध्यायें बाबा जी की शक्ति से
पांव चलें तो मन्ज़िल उनकी बाबा जी का द्वारा हो पांव रुकें तो ठीक सामने मेरा साईं प्यारा हो
रसना का रस ऐसा हो जाये साईं नाम में रस आये बैठे, उठते, सोते, जगते साईं जी का जस गायें
चंचल मन इक मंदिर हो जाये साईं का जिसमें डेरा हो मोह माया ना होवे जिसमें ना अज्ञान अंधेरा हो
सांस सांस जब आवे जावे, साईं का अनहद नाद हो अंत समय जब सांस रुके तो साईं जी की याद हो
मन की डोर थमी हो मेरे बाबा जी के हाथ में जब जी चाहे ले जायें वो इसको अपने साथ में
ऐसे काया पावन होगी मन मन्दिर हो जावेगा साईं याद में डूबा प्राणी साईं में मिल जावेगा

~SaiSewika
जय साईं राम
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