Monday, September 16, 2013

ॐ सांई राम~~~

ओ बन्दया~~
तू झुक के चलिया कर ,
के झुकिया नु साई मिलदे |

जय सांई राम~~~

Tuesday, May 14, 2013

ॐ सांई राम~~~

हे सांई इक करिश्मा दिखा दे
सब के दिलो में प्यार बसा दे
नफरत का नामों निशा मिता दे !!!
कोई किसी का दिल ना दुखाए
कोई किसी को ना सताए
हर कोई किसी के काम आए
न कोई रोए न तिलमिलाए
सिर्फ प्यार ही प्यार हो
आँखों में न आँसू आए
केवल चेहरे खिलखिलाएं
हे सांई एसा करिश्मा दिखा दे
सदा के लिए न सही , तो बस इक दिन के लिए ही दिखा दे~~~

सांई~~~ आ जाओं~~~

जय सांई राम~~~
ॐ सांई राम~~~

वो आए रूके कुछ पल , झाका और चल दिए,
मैं दौङी पीछे पकङा हाथ,
और हैरानी से पूछा कहां चल दिए
वो बोले बङे दुखी मन से ...अरे पगली
तुने की थी पुकार ति में दौङा चला आया,
पर लगा जब अंदर आने,
तो देखा मैने कि भीङ है लगी हुई
सभी ने है डेरा जमाया,
मैं बैठू कहां ये बता मुझको
क्या है तेरे मन में मेरा ठिकाना
तू जब पुकारें मुझे मैं दौङा चला आता हूँ
पर तू तो ये भी ना जाने कि है मुझे कहां बिठाना
इस भीङ कि कुछ कम कर
कर साफ मेरी जगह को
फिर बुला मुझे फिर देख कभी ना होगा वापस जाना
मैं हो गई शर्मिदां इस सच को जान कर
कि मैने की पुकार वो आ भी गए
पर कभी नहीं सोचा कि है उन्हे कहाँ बिठाना!!!!

जय सांई राम~~~

Monday, May 13, 2013

ॐ साईं राम

साईं प्रभुजी कीजिए
हम पर सुख उपकार
श्री चरणों की शरण में ले
दीजिए भव से तार

तेरे नाम की लगन हो,
शुभ चरणों की आस
दुखों में भी डोले ना
अडिग रहे विश्वास

अलख जगे शुभ जोत तव
मेरे मन के भीत
तुझसे अपरिमित प्रेम हो
तू ही हो मन का मीत

तुझसे बिछड़ के दुखी रहूँ
सुख पाऊँ तव साथ
तेरी चर्चा के बिना
पूरी ना हो बात

सोते जगते सिमरन हो
भूलूँ सब सँसार
चेतूँ, जागूँ, समझ लूँ
थोथे सब व्यवहार

सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ूँ
तेरे दर की ओर
पग पग चलती आऊँ मैं
पकड़ नाम की डोर

मेरे आत्माराम जी
सजग रहें दिन रैन
तेरे दरस की आस में
खुले रहें मम नैन

जग जागे मैं सो जाऊँ
वृत्ति भीतर खींच
सोवे जग तो जागूँ मैं
तन की आँखें मीच

तुझसे एकाकार हो
मिट जाए मेरा आप
मेरी 'मैं' पर साईं जी
आप ही रहिए व्याप

जय साईं राम
ॐ साईं राम

रमते राम आओजी आओजी
उदिया की गुनिया लाओजी लाओजी


जामनेर का विलक्षण चमत्कार



साईं नाथ जी प्यारे ने
जामनेर की लीला की
दूरस्थल पर बैठे भक्तों की
परम प्रिय ने थी सुध ली

नानाजी की पुत्री मैना
गर्भावस्था में जब थी
प्रसवकाल निकट था उसका
पर तन से वो बोझिल थी

तीन दिनों से प्रसव वेदना ने
तन मन को तोड़ा था
लेकिन नाना ने सबुरी के
दामन को ना छोड़ा था

बाबा ने भी श्रद्धा और
सबुरी का था मान किया
मैना की जीवन नैया को
स्व हाथों में थाम लिया

बापूगीर बुवा जब वापस
खानदेश थे लौट रहे
तब बाबा ने उन्हें बुलाकर
श्रीमुख से शुभ वचन कहे

"जामनेर में उतर कर तुम
नाना के घर में जाना
आरती की ये प्रति और ऊदि
नाना को तुम दे आना"

बापूगीर बुवा तब बोले
दो ही रुपये हैं मेरे पास
जलगाँव तक के भाड़े को ही
वो होंगे शायद पर्याप्त

तीस मील आगे फिर जाना
सँभव ना हो पाएगा
बाबा बोले "अल्लाह देगा"
सब सँभव हो जाएगा

साईं के वचनों को सुनकर
बापू ने प्रस्थान किया
दुविधा तो थी मन में लेकिन
साईंनाथ का नाम लिया

जलगाँव में उतरे जब बापू
चपरासी ने उन्हें बुलाया था
नाना ने उन्हें लेने है भेजा
उसने उन्हें बतलाया था

घोडा़गाड़ी में फिर उसने
बापू जी को बैठा लिया
नाना ने भेजा है कह कर
उनको था जलपान दिया

जामनेर के निकट पहुँचकर
लघुशँका को रुके बुआ
लौट उन्होंने जो भी देखा
उनको अचरज घोर हुआ

ओझल हो चुके थे दोनों
ताँगा और ताँगे वाला
भक्तों की खातिर बाबा ने
चमत्कार था कर डाला

नाना जी का पता पूछते
बापू उनके घर आए
ऊदि औेर आरती दोनों
नाना जी को दिए थमाए

धन्यवाद जब किया बुवा ने
ताँगे और जलपान का
नाना कुछ भी समझ ना पाए
बुवा जी के बखान का

स्तब्ध हो गए बापूगीर तब
जब नाना ने बतलाया
ना ही ताँगा ना चपरासी
उन्होंने कुछ भी भिजवाया

भावविह्वल हो दोनों ने फिर
बाबा जी को नमन किया
अद्भुत प्यारी लीला करने को
साईं को धन्यवाद दिया

साईं नाम ले, घोल पानी में
ऊदि मैना ताई को दी
पाँच मिनट में प्रसव हो गया
लीला उस साईं की थी

अपने भक्त जनों की खातिर
करते थे लीला साईं
पाप ताप सँताप मिटा कर
सुख देते थे सर्व सहाई

जय साईं राम
ॐ साईं राम

साईं तेरे दर पर आई
क्षमा प्राप्ति की आशा ले
पाप कर्म सब माफ कराके
मुक्ति की अभिलाषा ले

अवगुण मेरे अनगिन स्वामी
नख शिख भरे विकार हैं
मोह माया ना मिटती मेरी
चित्त में घर सँसार है

अहँकार के कारण अपना
क्रोध भी जायज़ लगता है
रिश्ते नातों में उलझा के
मन भी मुझको ठगता है

कभी स्वँय न्यायधीश बन जाती
पर के दोष परखती हूँ
शिक्षक बन उपदेश सुनाने
में भी नहीं झिझकती हूँ

मन में 'मैं' के भाव के कारण
खुद को ठीक समझती हूँ
अपने ही चश्में से सारी
दुनिया को मैं तकती हूँ

ईर्ष्या,ढाह,लोभ,मद,मत्सर
जितने अवगुण काया के
सब दिखते मुझे मेरे अँदर
इस सँसारी माया के

इतने अवगुण ओढ़ के स्वामी
कैसे तुझको पाऊँगी
कैसे मैले पैरों से चल
तेरे दर पर आऊँगी

साईं प्रभु जी दीन दयालु
मेरे अवगुण चित्त ना धरो
दुर्गुण दूर करो हे दाता
भक्तन पर उपकार करो

मेरी 'मैं' को मेटो स्वामी
निर्मल कर दो चित्तवन को
मनसा वाचा कर्मणा
शुद्ध करो इस तन मन को

शीश नवा शुभ चरणों में
विनती करती बारम्बार
अधम जीव को तारो बाबा
हाथ थाम लो अपरम्पार

जय साईं राम

Saturday, August 25, 2012

ॐ साईं राम


आज क्यूं फिज़ाओं में सुरूर छाया है
आज किसने ज़मीं पर अमृत बरसाया है
लगता है मेरा साईं है कहीं आस पास
उसने ही मेरे मन मयूर को थिरकाया है


आज सूरज भी कुछ ज़्यादा ही दमकता है
लगता है बाबा के मुख से इसने कुछ नूर चुराया है
आज फूलों की पंखुडियां हैं और भी कोमल
लगता है बाबा ने इन्हें प्यार से सहलाया है


आज मेरे घर के पीछे की झील का पानी है और भी निर्मल
लगता है इसने बाबा की दया दृष्टि को पाया है
आज चर्च के घंटे की आवाज़ ज़्यादा सुरीली क्यूं है
लगता है बाबा को छू कर आई हवा ने इसे बजाया है


हां मेरा साईं मेरा खुदा यकीनन मेरे पास है
उसी ने मेरे दिल के द्वार को खटखटाया है
वो यहीं मेरे पास आ के बैठा है
उसी ने इन पंक्त्तियों को मेरे कानों में गुनगुनाया है


जय साईं राम
ॐ साईं राम


साईं गुणसमूह गुणगान॰॰॰॰॰॰


साईं सदगुरू तेरी शरण
परम मोक्ष का द्वार
तेरे दर पर जो झुका
हो गया भव से पार


साईं तुम पारस हो-

सुर सम तेरा रूप है
पारस सम व्यवहार
तपे स्वर्ण सा हो गया
जो आया तेरे द्वार


साईं तुम रँगरेज़ हो-

साईं तू रँगरेज है
देता तन मन रँग
चढ़े रँग जो प्रेम का
होवे नहीं अभँग


साईं तुम चँदन हो-

चन्दन सम सुवास तेरी
फैल रही चहुँ ओर
मँत्र मुग्ध हों ले सभी
शुभ चरणों की ठौर


साईं तुम प्रियतम हो-

तू तो प्रियतम प्यारा है
सबसे करता प्रीत
जिसने प्रेम से नाम लिया
हो गया उसका मीत


साईं तुम सगे सँबँधी हो-

तू है बन्धु और सखा
हे साईं अभिराम
मात पिता सम रूप तेरा
तू सदगुरू सुजान


साईं तुम ज्ञान स्वरूप हो-

साईं ज्ञान स्वरूप है
अखण्ड ज्योति प्रकाश
सकल सृष्टि का ज्ञाता तू
भू, पाताल, आकाश


साईं तुम सुख स्वरूप हो-

साईं तू सुखरूप है
पाप ताप से दूर
मुख मण्डल पर दमक रहा
सूर्य तेज का पूर


साईं तुम लीलाधर हो-

साईं लीलाधर बड़ा
अद्भुत तव अवतार
चमत्कार करके किया
भक्तों का उपकार


क्या क्या तेरे गुण गहूँ
क्या मेरी औकात
तू तो सँत बेअँत है
सारे जग का नाथ


स्वीकारो मम नमन देव
धरो शीश पर हस्त
तेरे लीला गान में
रहूँ सदा मैं मस्त


जय साईं राम
ॐ साईं राम

शुक्रिया साईं-

जीवन में बहुत कुछ देने के लिए............
क्योंकि-
तेरी नेमतों के सहारे ही
यह जीवन जी पा रही हूँ

शुक्रिया साईं-

जीवन में बहुत कुछ नहीं देने के लिए..........
क्योंकि-
जो कुछ नहीं है, अगर वो होता
तो और भी उलझती जाती
और उसे सँभालती कैसे?

शुक्रिया साईं-

बहुत कुछ देकर वापस ले लेने के लिए...........
क्योंकि-
इसी तरह तो सारे बँधन टूटेंगे
इसी तरह तो सारे मोह छूटेंगे

शुक्रिया साईं-

बहुत कुछ हमेशा के लिए देने के लिए........
क्योंकि-
अगर तुम्हारा निरँतर और शाश्वत साथ ना होता
तो ये जीवन व्यर्थ ही होता

इसलिए साईं..............


हर हाल के लिए शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया


जय साईं राम

Thursday, June 28, 2012

Om Sai Ram!!!

मेरी प्यारी बेटी तेजल,
बाबा का आशीर्वाद,
माँ का बहुत सारा प्यार~~~

भाई का प्यार , मेरे घर की आन--मेरी बेटी तेजल~~
माँ की ममता , मेरी ही परछाई ---मेरी बेटी तेजल~~
पिता की कली, लाड प्यार से पली --- मेरी बेटी तेजल~~


बाबा के चहरे जैसा तेज हो तुममें--- मेरी बेटी तेजल~~~
कृतियाँ हों तेरी अनमोल---मेरी बेटी तेजल~~~
आँखों में हो सुंदर सपने---मेरी बेटी तेजल~~~
और होठों पर मीठे बोल ---मेरी बेटी तेजल~~

रचना ऐसा कुछ, करना ऐसा कुछ---मेरी बेटी तेजल~~~
जो हो सब से बहुमूल्य ---मेरी बेटी तेजल~~~
बन जाना तुम, इस सृष्टि की--मेरी बेटी तेजल~~
तेज से भरी कृति अमूल्य---मेरी बेटी तेजल~~~~~


Jai Sai Ram!!!

Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


मेरे घर के पास बाबा का
इक मँदिर बन रहा है
खुशी के मारे मेरा
उछल ये मन रहा है


कब से तड़प रही थी
देवा तुम्हारी दासी
क्या भूल हुई मुझसे
क्यूँ अखियाँ रहीं प्यासी


मेरे मालिक ने तमन्ना
मेरे दिल की पूरी कर दी
सारे जहाँ की खुशियाँ
मेरे दामन में हैं भर दी


पावन पुनीत सुन्दर
दिलकश नज़ारा होगा
तरसे नैनों के सन्मुख
मेरा साईं प्यारा होगा


अब तेरे दर पे स्वामी
नित आना जाना होगा
भक्तों की सँगतों का
मँज़र सुहाना होगा


खुश होऊँगी मैं जब जब
तेरे पास आ जाऊँगी
बाँटूंगी तुझसे खुशियाँ
मन में मैं हरषाऊँगी


याऽ कभी जो देवा
गमगीन होगी दासी
दर्शन तुम्हारा पाकर
मिट जाएगी उदासी


नित आरती में आकर
मँजीरे बजाऊँगी
मनभावन साईं तेरा
नेवैद्य बनाऊँगी


परदेस में भी मेरा
इक मायका प्यारा होगा
साईं माँ का आँचल होगा
अद्भुत सहारा होगा


भक्तन की भावना को
स्वीकार दाता करना
मेरा फैला हुआ दामन
शुभ दर्शनों से भरना


जय साईं राम
ॐ साईं राम!!!


जब दिल में मेरे जो कुछ भी मलाल थे ...
जब जीवन कुछ बेहाल था ...
जब कुछ खालीपन और तन्हाई थी...
किस्मत की तँगदिली भी थी....
जब कोई आस नहीं है दुनिया से....
जब मेरी झोली में थे छेद हजार
और किस्मत की कुछ मार भी थी....
जब इन टेढे मेढे रस्तों पर कई दोस्त मिले थे और छोड गए थे...
दुनिया के रिश्ते नातों ने कुछ ज़ख्म दिए थे सीने में......


पर फिर जब तुझे देखा , तेरी चेहरा देखा, बस यही याद आया....


जब दुःख से मन घबरा जाए~
चहुँ और अन्धेरा छा जाए~
जब एक किरण भी आशा की ~
आती हो न नज़र .....प्रार्थना कर...प्रार्थना कर...प्रार्थना कर...प्रार्थना कर...


शुक्र है मेरे साईं तेरा....तेरी रहमतों का... तुम ही थे हर पल संग मेरे बाबा....तेरा हाथ था सदा मेरे सिर पर ...तुने मुझे संभाला.....मेरे लडखडाते हुए क़दमों को तुने संभाला....शुक्र है मेरे साईं...

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम


साईं तेरे द्वारे आऊँ
बाबा तुझको शीश नवाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ


तेरा रस्ता मँज़िल मेरी
तुझको पाना चाहत मेरी
तेरे पथ पर चलती जाऊँ
थकूँ रुकूँ ना बढती जाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ


तेरा सुमिरन काम है मेरा
मन मन्दिर में धाम है तेरा
साईं साईं रटती जाऊँ
साँस साँस से तुझको ध्याऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ


तेरी कथा कहूँ सुनूँ मैं
तेरा लीला गान गुनूँ मैं
तेरी महिमा सुनूँ सुनाऊँ
तेरी चर्चा में सुख पाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ


तुझपे श्रद्धा, तेरी भक्ति
तुझसे चाहत और आसक्ति
तुझसे ही बस आस लगाऊँ
मन में दृढ विश्वास जगाऊँ
तुझपे मैं बलिहारी जाऊँ
तुझपे वारि वारि जाऊँ


जय साईं राम

Monday, March 26, 2012

ॐ सांई राम!!!



~~~श्री दत्तात्रेय बावनी~~~





जय योगेश्वर दत्त दयाल
तू ही एक जग में प्रतिपाल
अत्रि-अनसूया कर निमित्त
प्रगटा है जग कारण निश्चित~~1

ब्रह्मा-हरि-हर का अवतार
शरणागत का तारनहार
अंतर्यामी सत्-चित् सुख
बहार सदगुरू द्विभुज सुमुख~~2

झोली अन्नपूर्णा है कर में
शांति कमंडल सोहे कर में
कहीं चतुर्भुज षङभुज सार
अनंत बाहू तूं आधार~~3

आया शरण में बाल अजान
उठिए दिगंबर निकले प्राण
सुनी अर्जुन की आर्त पुकार
दर्शन देकर किया उद्धार~~4

दी योंॠद्धिसिद्धि अपार
अंत में मुक्ति महापद सार
किया आज ये कैसा विलंब?
तेरे बिना मुझको ना आलंब~~5

विष्णु शर्म द्विज का उद्धार
किया भोज लख प्रेम अपार
जंभ दैत्य से त्रासिक देव
किया नाश,ही शांति ततखेव~~6

विस्तारी माया दिता सुत
किया वध इन्द्र कर से तूर्त
ऐसी लीला कहीं पर तेरी
कौन कर सका वर्णन सारी?~~7

दौङ कर आयुसुत के काम
किये पूर्ण सारे निष्काम
बोध दिया यदु से परशुराम
साध्यदेव प्रल्हाद अकाम~~8

ऐसी तेरी कृपा अगाध
क्यों न सुने मेरी आवाज़
देख न अंत,दौङा अनंत
आधे में न हो शिशु का अंत~~9

देख कर द्विज स्त्री का स्नेह
बना पुत्र उसका तू निःसंदेह
स्मर्तगामी कलितार कृपाल
किया उद्धार धोबी गंवार~~10

पेटपीङ से किया मुक्त विप्र
बाह्मण सेठ की रक्षा क्षिप्र
क्यों ब करे अब मेरा उद्धार
लक्ष्य देकर फिर एक बार~~11

शुष्क झाङ पर पात उगाये
क्यों उदासीन आन भाये?
जर्जर बांझ स्त्री का स्वपन
किया सुफल यों सुत का कृत्स्न~~12

दूर कर बाह्मण का कोढ़
किया पूर्ण उसका 'कोड' '(मनोरथ)'
बाझं भैंस , की दुहती देव
हर लिया दरिद्र ही तंतखेव~~13

खाकर भाजी तूं तृप्त हुआ
सुवर्णघट यों सप्रेम दिया
बाह्मण स्त्री का मृत भरतार
करके जीवित दिया आधार~~14

पिशाच पीङा की यों दूर
विप्र पोत्र को उठाया शूर
हरि विप्रमद अंत्यज हाथ
रक्षित भक्त त्रिविक्रम तात~~15

निमिष मात्र से 'तंतुक' एक
पहुँचाया श्री शैल देख
एक साथ में आठ स्वरूप
धरे देव बहुरूप अरूप~~16

संतोष पाये भक्त सुजात
देकर प्रचीति यों साक्षात
यवनराज की टाली पीङ
जातपात की तुझे न चीढ़~~17

रामकृष्ण रूप में अवतार
लीलाएं की थी बारंबार
पत्थर गणिका व्याधोद्धार
पशुपक्षी पर कृपा अपार~~18

अधमोध्दारक तेरा नाम
गाते ही पूरे हो सब काम
आधि-व्याधि उपाधि सारी
टल जाये सुमिरन से सारी~~18

मूठ चोट न लगती जान
स्मरण से नर पारे निर्वाण
डाकण साकण,महिषासुर
भूत पिशाची,जन्द असुर~~20

करे मूठ का नाश ही तूर्त
'दतधुन' सुनते ही मूर्त
करे धूप जो, गाये ऐसे
'दत्त बावनी' सप्रेम से~~21

सुधरे अनके तीनों लोक
रहे न उनको कभी शोक
दासी सिद्धि उनकी होय
दुःख दरिद्र उनका जाय~~22

पावन गुरूवार नित्य नियम
करे पाठ जो बावन सप्रेम
यशावकाश में नित्य नियम
करे न दंडित उनको यम~~23

अनेक रूप में यही अभंग
भजते , न लगे माया रंग
सहस्त्रनाम, पर नामी एक
दत्त दिगंबर असंग एक~~24

वंदन तुझको बारंबार
वेद, श्वास तेरा आधार
वर्णन करते, थके जहां शेष
कौन मैं हूँ ? बहुकृत वेष~~25

अनुभव तृप्ति का उदगार
सुना हो जिसने , खाये मार
तपस्वी तत्त्वमसि यह देव
बोलो जय जय श्री गुरूदेव~~26

॥ अवधूत चिंतन श्री गुरूदेव॥

जय सांई राम!!!
ॐ साईं राम!!!
 चाहे संकट ने मुझे घेरा हो , चाहे चारों तरफ अन्धेरा हो~
पर चित्त न डगमग मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में~
यही विनती है मेरे बाबा आपसे पल पल क्षण क्षण रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में~
जय साईं राम!!!
 

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