ॐ साईं राम!!!
मेरे साईं मेरे बाबा ~~~
साईं ???
ये समझाया और समझा जा नहीं सकता है~
पर इतनी बात तो पक्की है कि
मेरा साईं मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , चर्च में नहीं है ~
मेरा साईं मूर्ति , पत्थर या कागज़ में नहीं है ~
मेरा साईं भगवा कपड़ों में नहीं है ~
मेरा साईं खुल्ली धोती या कोई बोदी में भी नहीं है ~
मेरा साईं नदियों , गुफाओं या पहाड़ों में भी नहीं है ~
फिर कहाँ है मेरा साईं, मेरा बाबा ???
चलो मैं ही बताती हूँ...
मेरा साईं हर किसी के अन्दर है ~
मेरे साईं एक विशवास है~ एक नियम है ~ एक एहसास है ~ एक सच है~~
जिस मन में साईं है ...वो मन ही मंदिर है ~
किसी में भी साईं जैसे गुणों का होना ही साईं का होना है ~
जैसे सूरज औरों के लिए जलता है~
जैसे जल औरों को जीवन देता है~
जैसे हवा औरों को सकून देती है~
जैसे धरती माँ औरों को सब कुछ देती है~
जैसे पेड़ अपने फल औरों को देते है~
ठीक वैसे ही जो इन्सान सब औरों के लिए करता है~
वो ही साईं जैसा है...बाकी सब तो.........................................................
जय साईं राम!!!
Monday, April 5, 2010
धूनि माँ की महिमा
ॐ साईं राम
धूनि माँ की महिमा
इस बार द्वारकामाई में जाकर
धूनि माँ के सन्मुख सिर झुकाया,
तो उन्हे अपने से ही
बात करते हुए पाया
पिछले डेढ सौ साल से जलती धूनि ने
मेरे माथे को हल्के से छुआ
तो जैसे बाबा के स्पर्श का
मधुर सा आभास हुआ
यूँ ही अपने ताप को
फैलाते होले होले
धूनि माँ ने अपने
जीवन के भेद खोले
अपनी सुर्ख लपटों को
हल्के से लहरा कर
धूनि माँ बोली
अपनी गर्मी को गहरा कर
याद है मुझे आज भी वो दिन
जब बाबा ने अपनी योग शक्ति से
मुझे जलाया था
फिर हर दिन सुबह और शाम
मैनें प्रेम बाबा का पाया था
बाबा अक्सर लकडियाँ डालते हुए
मेरे सामने बैठ जाते थे
कभी आसमान की ओर देखते,
कभी श्री मुख से वचन फरमाते थे
साईं प्रतिदिन भिक्षा में
जो कुछ भी पाते थे
सर्वप्रथम उसकी आहूति
मेरी ज्वाला में चढाते थे
फिर हवा में चमकीली चिंगारियाँ
छोडते हुए धुनि माँ ने बताया
कैसे समय ने उन्हे
साईं की लीलाओं का साक्षी बनाया
एक बार दशहरे के दिन बाबा
क्रोधित हुए किसी बात पर
भक्तों को लगा कि क्रोध
शाँत ना होगा रात भर
बाबा ने अपने सभी वस्त्र
क्रोधित हो कर फाड डाले
और मेरी अग्नि की लपटों के
कर दिए हवाले
इस आहूति को पा मेरी लपटें
दुगुनी धधक पडी थी
बाबा की क्रोधाग्नि और मेरी ज्वाला
मानों एक साथ बढी थीं
धीरे धीरे बाबा शाँत हुए
और पुनः प्रेम बरसाया था
सब भक्त जनों ने मानो
नव जीवन सा पाया था
एक दिवस मैने भी
बाबा की लीला देखने का मन बनाया
और अपनी लपटों को तेज कर
ऊपर की ओर बढाया
अपनी ज्वाला को
धीरे धीरे बढा कर
जैसे मैने छू ही लिया
द्वारकामाई की छत को जा कर
अन्तरयामी साईं ने क्षण भर मे
मेरी इच्छा को था जान लिया
और अद्भुत लीला दिखला कर
उस इच्छा को था मान दिया
बाबा ने अपने सटके से चोट की
द्वारकामाई की दीवार पर
मेरी लपटें शाँत होने लगी
सटके की हर मार पर
साठ बरस में ना जाने
कितनी ही बार
बाबा की लीलाओं का
पाया था मैनें साक्षात्कार
एक अग्निहोत्र की तरह बाबा ने
मुझे जीवन भर प्रज्जवलित रक्खा था
और मेरी ही राख से उपजी 'ऊदि' का
भक्तों ने कृपा प्रसाद चक्खा था
बाबा से किसी भक्त ने
पूछा था एक बार
सदैव धूनि जलाए रखने का
क्या है आधार?
तब साईं नाथ ने
श्री मुख से जो फरमाया था
उसने भक्त जनों मे
मेरा महत्व बढाया था
बाबा ने कहा था-
धूनि की पावन अग्नि
कर्मों और विकारों को जलाती है
और जीवन में जो भी है,क्षणभंगुर है
यह एहसास कराती है
अग्नि वस्तु और कुवस्तु में
भेद नहीं जताती है
जो भी उसके सँपर्क में आए
उसे सम ताप ही पहुँचाती है
समस्त वेद पुराण भी
धूनि की महिमा गाते हैं
देवता भी अपना नैवेद्य
अग्नि के द्वारा ही पाते हैं
धूनि की अग्नि में भस्म हो
जो कुछ भी बच जाता है
उसी का तो हर साईं भक्त
महा प्रसाद पाता है
फिर गर्म साँस को
हवा में छोड कर
अपनी पावन लपटों से मानों
हाथों को जोड कर
धूनि माँ ने साईं नाथ को
प्रणाम किया
और मुझे आशिष देते हुए
अपनी वाणी को विश्राम दिया
मैंनें भी मँत्र मुग्धा हो
धूनि माँ की महिमा को जाना
साईॅ उनके माध्यम से जो कहना चाहते थे
उस सच को पहचाना
लोबान डालते हुए मैनें
धुनि माँ को प्रणाम किया
जीवन की एकमात्र सच्चाई
'ऊदि' का प्रसाद लिया
धूनि माँ से प्रेरित हो कर
मैने भी अपने ह्रदय में
साईं नाम की धूनि जलाई है
कोशिश करती हूँ उसमें
अपने विकारों की आहूति दूँ,
यही शिक्षा तो मैनें धूनि माँ से पाई है
इस बार द्वारकामाई में जाकर
धूनि माँ के सन्मुख सिर झुकाया,
तो उन्हे अपने से ही
बात करते हुए पाया
पिछले डेढ सौ साल से जलती धूनि ने
मेरे माथे को हल्के से छुआ
तो जैसे बाबा के स्पर्श का
मधुर सा आभास हुआ
यूँ ही अपने ताप को
फैलाते होले होले
धूनि माँ ने अपने
जीवन के भेद खोले
अपनी सुर्ख लपटों को
हल्के से लहरा कर
धूनि माँ बोली
अपनी गर्मी को गहरा कर
याद है मुझे आज भी वो दिन
जब बाबा ने अपनी योग शक्ति से
मुझे जलाया था
फिर हर दिन सुबह और शाम
मैनें प्रेम बाबा का पाया था
बाबा अक्सर लकडियाँ डालते हुए
मेरे सामने बैठ जाते थे
कभी आसमान की ओर देखते,
कभी श्री मुख से वचन फरमाते थे
साईं प्रतिदिन भिक्षा में
जो कुछ भी पाते थे
सर्वप्रथम उसकी आहूति
मेरी ज्वाला में चढाते थे
फिर हवा में चमकीली चिंगारियाँ
छोडते हुए धुनि माँ ने बताया
कैसे समय ने उन्हे
साईं की लीलाओं का साक्षी बनाया
एक बार दशहरे के दिन बाबा
क्रोधित हुए किसी बात पर
भक्तों को लगा कि क्रोध
शाँत ना होगा रात भर
बाबा ने अपने सभी वस्त्र
क्रोधित हो कर फाड डाले
और मेरी अग्नि की लपटों के
कर दिए हवाले
इस आहूति को पा मेरी लपटें
दुगुनी धधक पडी थी
बाबा की क्रोधाग्नि और मेरी ज्वाला
मानों एक साथ बढी थीं
धीरे धीरे बाबा शाँत हुए
और पुनः प्रेम बरसाया था
सब भक्त जनों ने मानो
नव जीवन सा पाया था
एक दिवस मैने भी
बाबा की लीला देखने का मन बनाया
और अपनी लपटों को तेज कर
ऊपर की ओर बढाया
अपनी ज्वाला को
धीरे धीरे बढा कर
जैसे मैने छू ही लिया
द्वारकामाई की छत को जा कर
अन्तरयामी साईं ने क्षण भर मे
मेरी इच्छा को था जान लिया
और अद्भुत लीला दिखला कर
उस इच्छा को था मान दिया
बाबा ने अपने सटके से चोट की
द्वारकामाई की दीवार पर
मेरी लपटें शाँत होने लगी
सटके की हर मार पर
साठ बरस में ना जाने
कितनी ही बार
बाबा की लीलाओं का
पाया था मैनें साक्षात्कार
एक अग्निहोत्र की तरह बाबा ने
मुझे जीवन भर प्रज्जवलित रक्खा था
और मेरी ही राख से उपजी 'ऊदि' का
भक्तों ने कृपा प्रसाद चक्खा था
बाबा से किसी भक्त ने
पूछा था एक बार
सदैव धूनि जलाए रखने का
क्या है आधार?
तब साईं नाथ ने
श्री मुख से जो फरमाया था
उसने भक्त जनों मे
मेरा महत्व बढाया था
बाबा ने कहा था-
धूनि की पावन अग्नि
कर्मों और विकारों को जलाती है
और जीवन में जो भी है,क्षणभंगुर है
यह एहसास कराती है
अग्नि वस्तु और कुवस्तु में
भेद नहीं जताती है
जो भी उसके सँपर्क में आए
उसे सम ताप ही पहुँचाती है
समस्त वेद पुराण भी
धूनि की महिमा गाते हैं
देवता भी अपना नैवेद्य
अग्नि के द्वारा ही पाते हैं
धूनि की अग्नि में भस्म हो
जो कुछ भी बच जाता है
उसी का तो हर साईं भक्त
महा प्रसाद पाता है
फिर गर्म साँस को
हवा में छोड कर
अपनी पावन लपटों से मानों
हाथों को जोड कर
धूनि माँ ने साईं नाथ को
प्रणाम किया
और मुझे आशिष देते हुए
अपनी वाणी को विश्राम दिया
मैंनें भी मँत्र मुग्धा हो
धूनि माँ की महिमा को जाना
साईॅ उनके माध्यम से जो कहना चाहते थे
उस सच को पहचाना
लोबान डालते हुए मैनें
धुनि माँ को प्रणाम किया
जीवन की एकमात्र सच्चाई
'ऊदि' का प्रसाद लिया
धूनि माँ से प्रेरित हो कर
मैने भी अपने ह्रदय में
साईं नाम की धूनि जलाई है
कोशिश करती हूँ उसमें
अपने विकारों की आहूति दूँ,
यही शिक्षा तो मैनें धूनि माँ से पाई है
~SaiSewika
जय साईं राम
जय साईं राम
अनगिनत सवाल
ॐ साईं राम
अनगिनत सवाल
कई बार सोचती हूँ साईं
आपकी भक्ति के पथ पर
मेरी स्थिति कैसी है,
मेरा क्या स्थान है?
भक्ति का स्तर कैसा है?
क्या कोई आत्मज्ञान है?
आपने मुझे किस प्रकार
स्वीकार किया है?
अधम, साधारण या उत्तम
किस श्रेणी में स्थान दिया है?
क्या आपने मुझे
तात्या की तरह अपनाया है?
या फिर म्हालसापति की तरह
मैनें आपके दरबार में स्थान पाया है?
क्या मुझे शामा की तरह
आपसे रूठने का अधिकार है?
क्या खुशालचँद की तरह
आपको इस भक्त से भी विशेष प्यार है?
क्या लक्ष्मीबाई शिंदे की तरह
आप मेरा नेवैद्य भी करते हैं स्वीकार?
क्या राधाकृष्णामाई की तरह,महाप्रसाद पाने का
मुझे भी है अधिकार?
क्या भीमाजी पाटिल की तरह
मेरे गत कर्मों को आपने नष्ट कर दिया है?
क्या मेघा की तरह
मेरी पूजा को भी आपने स्वीकार किया है?
क्या सपटणेकर की तरह मेरे
दुविधाग्रस्त संशय से आप परेशान हैं?
क्या हाजी सिद्दीकी की तरह
मेरे अहँ को देख कर आप हैरान हैं?
मद्रासी भजनी मँडली के मुखिया की तरह
मेरी सकाम भक्ति, क्या आपको कष्ट पहुँचाती है?
इतने ढेर सवालों से बोझिल डगमग भक्ति
क्या मेरे नाथ को भाती है?
इन सब प्रश्नों का उत्तर देने को साईं
एक बार तो आपको सामने आना ही होगा
अपनी कृपा वृष्टि से देवा
भक्तिन को नहलाना ही होगा
जिस दिन आप हे नाथ
इन प्यासे नैनों के सन्मुख आओगे,
अपने सुमधुर आशिष से
मेरी आत्मा को सहलाओगे
उस दिन स्वामी मिट जाऐंगे
भ्रम, सँशय और सवाल
जग की ठगिनी माया के
सभी कटेंगे जाल
उस दिन हर सँदेह,
हर प्रश्न बेमानी हो जाएगा
शुभ दर्शन से मोहित ये मन
चिर विश्राँति को पाएगा
~SaiSewika
जय साईं राम
अनगिनत सवाल
कई बार सोचती हूँ साईं
आपकी भक्ति के पथ पर
मेरी स्थिति कैसी है,
मेरा क्या स्थान है?
भक्ति का स्तर कैसा है?
क्या कोई आत्मज्ञान है?
आपने मुझे किस प्रकार
स्वीकार किया है?
अधम, साधारण या उत्तम
किस श्रेणी में स्थान दिया है?
क्या आपने मुझे
तात्या की तरह अपनाया है?
या फिर म्हालसापति की तरह
मैनें आपके दरबार में स्थान पाया है?
क्या मुझे शामा की तरह
आपसे रूठने का अधिकार है?
क्या खुशालचँद की तरह
आपको इस भक्त से भी विशेष प्यार है?
क्या लक्ष्मीबाई शिंदे की तरह
आप मेरा नेवैद्य भी करते हैं स्वीकार?
क्या राधाकृष्णामाई की तरह,महाप्रसाद पाने का
मुझे भी है अधिकार?
क्या भीमाजी पाटिल की तरह
मेरे गत कर्मों को आपने नष्ट कर दिया है?
क्या मेघा की तरह
मेरी पूजा को भी आपने स्वीकार किया है?
क्या सपटणेकर की तरह मेरे
दुविधाग्रस्त संशय से आप परेशान हैं?
क्या हाजी सिद्दीकी की तरह
मेरे अहँ को देख कर आप हैरान हैं?
मद्रासी भजनी मँडली के मुखिया की तरह
मेरी सकाम भक्ति, क्या आपको कष्ट पहुँचाती है?
इतने ढेर सवालों से बोझिल डगमग भक्ति
क्या मेरे नाथ को भाती है?
इन सब प्रश्नों का उत्तर देने को साईं
एक बार तो आपको सामने आना ही होगा
अपनी कृपा वृष्टि से देवा
भक्तिन को नहलाना ही होगा
जिस दिन आप हे नाथ
इन प्यासे नैनों के सन्मुख आओगे,
अपने सुमधुर आशिष से
मेरी आत्मा को सहलाओगे
उस दिन स्वामी मिट जाऐंगे
भ्रम, सँशय और सवाल
जग की ठगिनी माया के
सभी कटेंगे जाल
उस दिन हर सँदेह,
हर प्रश्न बेमानी हो जाएगा
शुभ दर्शन से मोहित ये मन
चिर विश्राँति को पाएगा
~SaiSewika
जय साईं राम
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