ॐ साईं राम
विजयादशमी को महासमाधि
साईं प्रभु जी हो गए
महासमाधि में लीन
अश्रुपूरित नयन लिए
भक्त खडे बन दीन
काल कराल आन खडा
द्वारकामाई के द्वारे
स्वयं प्रभु की आज्ञा हो तो
यम भी कैसे टारे
विजयादशमी का दिवस चुना
महाप्रयाण के हेत
परम ईश में प्रभु मिले
साधन सभी समेट
सावधान किया साईं ने
भक्त जनों को आप
अन्तस दानव मार कर
हो जाओ निष्पाप
मार सको तो मार दो
अपनी "मैं" का रावण
सदगुरू साईं की शिक्षा को
कर लो हृदय में धारण
भेदभाव की भेद कर
मन में खडी दीवार
मानव मानव से करे
भातृवत अति प्यार
काम क्रोध मद मत्सर लोभ
वैर द्वेष कुविचार
अहंकार सब त्याग कर
क्षमा हृदय में धार
यही दशहरा पर्व है
दमन करो निज पाप
दलो सभी विकार को
बनो शुद्ध और पाक
~Sai Sewika
जय साईं राम
Wednesday, September 30, 2009
Saturday, September 26, 2009
सीमोंल्लंघन
ॐ साईं राम
सीमोंल्लंघन
समय॰॰॰॰॰॰॰ २॰३० दोपहर
दिवस॰॰॰॰॰॰॰विजयादशमी १९१८
स्थान॰॰॰॰॰॰॰शिरडी
भाव॰॰॰॰॰॰॰॰॰सभी शिरडी वासियों के
सीमोंल्लंघन करके साईं
चले गए तुम आज
ना मुडके देखा हमको
ना तुमने दी आवाज़
गरीबों का मसीहा
दुखियों का था सहारा
बस छोड गया देह को
किया सबसे ही किनारा
कितनी ही आँखें भीगी
कितने ही प्राण छूटे
कितने ही ख्वाब बिखरे
कितने ही सपने टूटे
ना चिडिया कोई चहकी
ना फूल मुस्कुराए
ग़मों के काले साऐ
हर ज़िन्दगी पे छाए
दसों दिशाऐं सिसकीं
पृथ्वी का सीना काँपा
दुनिया के हर ज़र्रे में
दुखों का सागर व्यापा
तुम चल दिए तो चल दिया
दुनिया का नूर सारा
चहूँ ओर ही फैला है
कालरात्री का अँधियारा
वो करुणामयी आँखे
आशिश में उठा हाथ
श्री चरणों की शरण वो
उन सब का छूटा साथ
वो भक्ति भाव लहरी
हर हृदय में थी रहती
शिरडी के हर कूचे में
साईं नाम धुन थी बहती
मस्जिद में गूँजता वो
शँख नाद न्यारा
हर पल धधकती धूनि
प्रवचन वो प्यारा प्यारा
कैसे जिऐंगे देवा
तुम इतना तो बता दो
तुम्हारे बिना जीने की
तुम हमको ना सजा दो
निवेदन है तुम्हीं से
ये भक्ति भाव भीना
ले जाओ हमें सँग में
हमको नहीं है जीना
~Sai Sewika
जय साईं राम
सीमोंल्लंघन
समय॰॰॰॰॰॰॰ २॰३० दोपहर
दिवस॰॰॰॰॰॰॰विजयादशमी १९१८
स्थान॰॰॰॰॰॰॰शिरडी
भाव॰॰॰॰॰॰॰॰॰सभी शिरडी वासियों के
सीमोंल्लंघन करके साईं
चले गए तुम आज
ना मुडके देखा हमको
ना तुमने दी आवाज़
गरीबों का मसीहा
दुखियों का था सहारा
बस छोड गया देह को
किया सबसे ही किनारा
कितनी ही आँखें भीगी
कितने ही प्राण छूटे
कितने ही ख्वाब बिखरे
कितने ही सपने टूटे
ना चिडिया कोई चहकी
ना फूल मुस्कुराए
ग़मों के काले साऐ
हर ज़िन्दगी पे छाए
दसों दिशाऐं सिसकीं
पृथ्वी का सीना काँपा
दुनिया के हर ज़र्रे में
दुखों का सागर व्यापा
तुम चल दिए तो चल दिया
दुनिया का नूर सारा
चहूँ ओर ही फैला है
कालरात्री का अँधियारा
वो करुणामयी आँखे
आशिश में उठा हाथ
श्री चरणों की शरण वो
उन सब का छूटा साथ
वो भक्ति भाव लहरी
हर हृदय में थी रहती
शिरडी के हर कूचे में
साईं नाम धुन थी बहती
मस्जिद में गूँजता वो
शँख नाद न्यारा
हर पल धधकती धूनि
प्रवचन वो प्यारा प्यारा
कैसे जिऐंगे देवा
तुम इतना तो बता दो
तुम्हारे बिना जीने की
तुम हमको ना सजा दो
निवेदन है तुम्हीं से
ये भक्ति भाव भीना
ले जाओ हमें सँग में
हमको नहीं है जीना
~Sai Sewika
जय साईं राम
Friday, September 25, 2009
बाबा की यह व्यथा -2
ॐ साईं राम
बाबा की यह व्यथा -2
बडे दिनों के बाद कल
सपनें में बाबा आए
अंजलि भर श्री चरण में मैंने
श्रद्दा सुमन चढाए
हाथ जोड फिर पूछा उनसे
इतने दिन के बाद
भक्त जनों की साईं नाथ को
अब आई है याद
बाबा बोले निकल गया था
मैं कुछ ज़्यादा दूर
समझ रहा था खुद को मैं
व्याकुल और मजबूर
शीश झुकाकर मैंने पूछा
साईं ये समझा दो
परम विधाता व्याकुल कैसे
होते हैं बतलादो
अति मधुर वाणी में बाबा
बोले हौले हौले
अपने व्याकुल मन के भेद
बाबा ने यूँ खोले
मेरे प्रिय भक्तों ने मुझ पर
लगा दिए आरोप
उनके दिल मे क्रोध भरा है
और भरा आक्रोश
उनको लगता मेरे कारण
वो हर दुख सहते हैं
फिर भी जाने क्यूँ वो खुद को
भक्त मेरा कहते हैं
अक्सर कोई इच्छा ले कर
वो द्वार मेरे आते हैं
अगर ना पूरी कर पाऊँ तो
मुझ पर झल्लाते हैं
मन्नत में कभी कोई भक्त
चरित्र पारायण करता है
कभी कोई नव वार का व्रत
इस हेतु धरता है
फिर मुझसे मनचाहा पाना
उसका हक हो जाता है
पूजा और वरों का लिक्खा
भक्त जनों नें खाता है
नहीं जानते वो दुख उनका
मेरा दुख होता है
उनके दुख में मैं जगता हूँ
जब ये जग सोता है
मैं चाहता हूँ कर दूँ मैं
हर भक्त की इच्छा पूरी
लेकिन ऐसा ना करने की
मेरी है मजबूरी
समय से पहले,भाग्य से ज़्यादा
किसी को कुछ नहीं मिलता
कर्मों के ग़र बीज ना हों तो
कोई फूल नहीं खिलता
लेकिन मेरे भोले भक्त
मुझसे है आस लगाते
अपनी झोली फैलाते है
मेरे दर पर आते
मैं पूरी कोशिश करता हूँ
कर्म बन्ध मैं काटूँ
अपने भक्तों के जीवन में
ढेरों खुशियाँ बाँटू
लेकिन ऐसा ना कर पाऊँ
तो ये मन रोता है
भक्त समझते उनका साईं
कहीं पडा सोता है
अपने भक्तों को मैं कैसे
समझाऊँ ये बात
हानि लाभ जीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ
सब जीवों के कर्म फलों का
अपना ताना बाना है
जितना जिसकी बही में लिक्खा
उतना सुख दुख पाना है
इतना कह कर मौन हो गये
साईं पालन हारे
सबकी चिन्ता करने वाले
जन जन के रखवाले
श्री चरणों में मस्तक धरकर
और जोडकर हाथ
सविनय अरज करी तब मैंने
भक्ति भाव के साथ
गत जन्मों के कर्म बन्ध के
जितने भी है भार
ढोने को उन सब को साईं
हम भी है तैयार
बस अब कभी दुखी ना होना
साईं मेरे स्वामी
हँस कर दुख सहने की शक्ति
दे दो अंतरयामी
~ Sai Sewika
जय साई राम
बाबा की यह व्यथा -2
बडे दिनों के बाद कल
सपनें में बाबा आए
अंजलि भर श्री चरण में मैंने
श्रद्दा सुमन चढाए
हाथ जोड फिर पूछा उनसे
इतने दिन के बाद
भक्त जनों की साईं नाथ को
अब आई है याद
बाबा बोले निकल गया था
मैं कुछ ज़्यादा दूर
समझ रहा था खुद को मैं
व्याकुल और मजबूर
शीश झुकाकर मैंने पूछा
साईं ये समझा दो
परम विधाता व्याकुल कैसे
होते हैं बतलादो
अति मधुर वाणी में बाबा
बोले हौले हौले
अपने व्याकुल मन के भेद
बाबा ने यूँ खोले
मेरे प्रिय भक्तों ने मुझ पर
लगा दिए आरोप
उनके दिल मे क्रोध भरा है
और भरा आक्रोश
उनको लगता मेरे कारण
वो हर दुख सहते हैं
फिर भी जाने क्यूँ वो खुद को
भक्त मेरा कहते हैं
अक्सर कोई इच्छा ले कर
वो द्वार मेरे आते हैं
अगर ना पूरी कर पाऊँ तो
मुझ पर झल्लाते हैं
मन्नत में कभी कोई भक्त
चरित्र पारायण करता है
कभी कोई नव वार का व्रत
इस हेतु धरता है
फिर मुझसे मनचाहा पाना
उसका हक हो जाता है
पूजा और वरों का लिक्खा
भक्त जनों नें खाता है
नहीं जानते वो दुख उनका
मेरा दुख होता है
उनके दुख में मैं जगता हूँ
जब ये जग सोता है
मैं चाहता हूँ कर दूँ मैं
हर भक्त की इच्छा पूरी
लेकिन ऐसा ना करने की
मेरी है मजबूरी
समय से पहले,भाग्य से ज़्यादा
किसी को कुछ नहीं मिलता
कर्मों के ग़र बीज ना हों तो
कोई फूल नहीं खिलता
लेकिन मेरे भोले भक्त
मुझसे है आस लगाते
अपनी झोली फैलाते है
मेरे दर पर आते
मैं पूरी कोशिश करता हूँ
कर्म बन्ध मैं काटूँ
अपने भक्तों के जीवन में
ढेरों खुशियाँ बाँटू
लेकिन ऐसा ना कर पाऊँ
तो ये मन रोता है
भक्त समझते उनका साईं
कहीं पडा सोता है
अपने भक्तों को मैं कैसे
समझाऊँ ये बात
हानि लाभ जीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ
सब जीवों के कर्म फलों का
अपना ताना बाना है
जितना जिसकी बही में लिक्खा
उतना सुख दुख पाना है
इतना कह कर मौन हो गये
साईं पालन हारे
सबकी चिन्ता करने वाले
जन जन के रखवाले
श्री चरणों में मस्तक धरकर
और जोडकर हाथ
सविनय अरज करी तब मैंने
भक्ति भाव के साथ
गत जन्मों के कर्म बन्ध के
जितने भी है भार
ढोने को उन सब को साईं
हम भी है तैयार
बस अब कभी दुखी ना होना
साईं मेरे स्वामी
हँस कर दुख सहने की शक्ति
दे दो अंतरयामी
~ Sai Sewika
जय साई राम
Tuesday, September 22, 2009
Om Sai Ram!!!
है वो वही मेरे सांई~~~
देने वालों को ही देता है सांई ,
मंदिर में नहीं , मस्जिद में नहीं,
है वो वहा पर जहाँ भी उसे दर्द दिखा,
बाबा वही है , है वो वही तेरा सांई~~
BABA gives to those who always give
BABA is not supposed to be present in Mandir- Masjid,
where there is passion for the needy,
BABA is there,BABA is present there~~
देता है दिखाई जो नहीं,
बाबा है तेरे मन में वही,
बन के इक दर्द तेरे मन में बसा जो,
है बाबा वही....है वो तेरा बाबा वही~~
He{BABA} , who is invisible,
BABA is present in your heart,
He, who is living in u as a passion,
He is definitely the BABA~~
बाबा , मूर्ति में नहीं , पत्थर में नहीं,
न दिवारो-दर में , न मंदिर-मस्जिद में,
इक बहुत बङी सोच,जो सोच से बाहर,
बस है इक एहसास,जो आँखों से न दिखाई दे~~
BABA is neither in statue nor in stone
Is neither in Temples nor in Madir-Masjid,
Is a big thought, beyond imagination,
Is a feeling, invisible with the outer eyes~~
जब इक दर्द उतर आता है जो दिल में,
आँखों से बरसते है जो झमाझम ,
इक नमकीन सा बादल जो,
बस , है बाबा वही....है वो तेरा बाबा वही~~
A passion born in the heart
is visible as tears in the eyes
like salty water of clouds
He is definitely the BABA~~~
Jai Sai Ram!!!
है वो वही मेरे सांई~~~
देने वालों को ही देता है सांई ,
मंदिर में नहीं , मस्जिद में नहीं,
है वो वहा पर जहाँ भी उसे दर्द दिखा,
बाबा वही है , है वो वही तेरा सांई~~
BABA gives to those who always give
BABA is not supposed to be present in Mandir- Masjid,
where there is passion for the needy,
BABA is there,BABA is present there~~
देता है दिखाई जो नहीं,
बाबा है तेरे मन में वही,
बन के इक दर्द तेरे मन में बसा जो,
है बाबा वही....है वो तेरा बाबा वही~~
He{BABA} , who is invisible,
BABA is present in your heart,
He, who is living in u as a passion,
He is definitely the BABA~~
बाबा , मूर्ति में नहीं , पत्थर में नहीं,
न दिवारो-दर में , न मंदिर-मस्जिद में,
इक बहुत बङी सोच,जो सोच से बाहर,
बस है इक एहसास,जो आँखों से न दिखाई दे~~
BABA is neither in statue nor in stone
Is neither in Temples nor in Madir-Masjid,
Is a big thought, beyond imagination,
Is a feeling, invisible with the outer eyes~~
जब इक दर्द उतर आता है जो दिल में,
आँखों से बरसते है जो झमाझम ,
इक नमकीन सा बादल जो,
बस , है बाबा वही....है वो तेरा बाबा वही~~
A passion born in the heart
is visible as tears in the eyes
like salty water of clouds
He is definitely the BABA~~~
Jai Sai Ram!!!
ॐ सांई राम!!!
इतनी सुंदर इतनी शांत,
मुस्कान आज जो देखी मैने,
सांई आप को क्या कहूं मैं,
क्या कुछ पा लिया मैनें,
उस एक मुस्कान पर सांई,
मैं अपना तन मन वार दूँ,
जी तो मेरा चाह रहा था,
जी जान सब वार दूँ~
इस अमृतमयी मुस्कान ने सांई,
मुझे तो तर बतर कर दिया,
इस अमृत गंगा में मैने
जी भर कर आज स्नान किया,
सारे ताप शांत हुए मेरे,
खुद पर ही काबू न रहा,
आप की प्यारी मुस्कान ने सांई
मुझे तो रुला ही दिया
ये आसूँ नहीं प्यार है सांई
जिन्हें मन ही मन मैने आप के चरणों पर चढ़ा दिया!!!
जय सांई राम!!!
इतनी सुंदर इतनी शांत,
मुस्कान आज जो देखी मैने,
सांई आप को क्या कहूं मैं,
क्या कुछ पा लिया मैनें,
उस एक मुस्कान पर सांई,
मैं अपना तन मन वार दूँ,
जी तो मेरा चाह रहा था,
जी जान सब वार दूँ~
इस अमृतमयी मुस्कान ने सांई,
मुझे तो तर बतर कर दिया,
इस अमृत गंगा में मैने
जी भर कर आज स्नान किया,
सारे ताप शांत हुए मेरे,
खुद पर ही काबू न रहा,
आप की प्यारी मुस्कान ने सांई
मुझे तो रुला ही दिया
ये आसूँ नहीं प्यार है सांई
जिन्हें मन ही मन मैने आप के चरणों पर चढ़ा दिया!!!
जय सांई राम!!!
Friday, September 18, 2009
इस जग में तुम सबसे सुंदर
ॐ साईं राम
इस जग में तुम सबसे सुंदर
इस जग में तुम सबसे सुंदर
हे मेरे चित्त चोर
तुम्हें निरख नित्त थिरके मेरे
चंचल मन का मोर
गणपति जैसे मंगलदायक
शुभसूचक सुखदायी
करूणामयी कल्याणी मूरत
तेरी साईं सहाई
सत्यवक्ता तुम राम सरीखे
अति विनम्र, गंभीर
सदाचारी, कोमल और निर्मल
जीवनदायी समीर
रवि तेज का पुँज है मुख पर
दमके स्वर्ण समान
नयनों में शीतलता जैसे
गगन में निकला चाँद
वैरागी शिव शंकर जैसे
महासमाधि में लीन
राजधिराज होकर भी रहते
ज्यों दीनों के दीन
कर्मयोगी और कर्मठ ऐसे
जैसे कृष्ण कन्हाई
जड चेतन और सारी सृष्टि
साईं में ही समाई
दुर्गा मइया जैसी ममता
तव नयनों से झलके
ह्रदय से प्रेम गंग की धारा
भक्तों के हित छलके
तुझमें देखूँ राम कृष्ण को
शिव को तुझमें ही पाऊँ
ममता की मूरत मैं तुझपे
वारि वारि जाऊँ
~ Sai Sewika
जय साईं राम
इस जग में तुम सबसे सुंदर
इस जग में तुम सबसे सुंदर
हे मेरे चित्त चोर
तुम्हें निरख नित्त थिरके मेरे
चंचल मन का मोर
गणपति जैसे मंगलदायक
शुभसूचक सुखदायी
करूणामयी कल्याणी मूरत
तेरी साईं सहाई
सत्यवक्ता तुम राम सरीखे
अति विनम्र, गंभीर
सदाचारी, कोमल और निर्मल
जीवनदायी समीर
रवि तेज का पुँज है मुख पर
दमके स्वर्ण समान
नयनों में शीतलता जैसे
गगन में निकला चाँद
वैरागी शिव शंकर जैसे
महासमाधि में लीन
राजधिराज होकर भी रहते
ज्यों दीनों के दीन
कर्मयोगी और कर्मठ ऐसे
जैसे कृष्ण कन्हाई
जड चेतन और सारी सृष्टि
साईं में ही समाई
दुर्गा मइया जैसी ममता
तव नयनों से झलके
ह्रदय से प्रेम गंग की धारा
भक्तों के हित छलके
तुझमें देखूँ राम कृष्ण को
शिव को तुझमें ही पाऊँ
ममता की मूरत मैं तुझपे
वारि वारि जाऊँ
~ Sai Sewika
जय साईं राम
Wednesday, September 16, 2009
बाबा की आस~~~
ॐ साई राम!!!
बाबा की आस~~~
आज सुबह तुम्हारे ही घर में बैठा
करता रहा मैं तुम्हारा इंतज़ार
तुम मेरी तस्वीर के सामने से
गुज़री भी थी सौ बार
पर एक बार भी तुम्हारा ध्यान
गया नहीं मेरी ओर
तुम्हारे इस आचरण से
मुझे हुई है पीडा घोर
यूँ तो तमने मेरी तस्वीर को
अपने मंदिर में लगाया है
पर लगता है जैसे सजावट के सामान की तरह
मुझे बस सजाया है
ऐसा ना होता तो
उठते ही आ जाती तुम मेरे पास
मुझे लगता था कि तुम्हारे जीवन में
मेरा महत्व है कुछ खास
मुझे आशा थी कि सुबह होते ही
तुम मेरे पास आओगी
हाथ जोडोगी और
श्रद्धा से सर झुकाओगी
पर ना तुमने मुझे देखा
ना मेरे पास आई
ना ही तुम्हारी भक्ति,
ना श्रद्धा मैंने पाई
फिर देर तक तुम
अपनी अल्मारी से कपडे निकालती रही
कभी उन्हें, फैलाती,
कभी संभालती रही
पर तैयार होकर भी तुम
मेरे पास नहीं आईं
बस सामने कुर्सी पर बैठी
और कुछ सोच कर मुस्कुराईं
मुझे पता है, उस समय
तुम्हारे पास कोई काम ना था
पर उस समय भी, तुम्हारे ज़हन में
मेरा नाम ना था
तभी तुम अचानक उठीं
मुझे लगा शायद अब तुम्हें
मेरा ख़्याल आ गया
पर मेरी आशा का फ़ूल
तो खिलते ही मुरझा गया
तुम सीधे फ़ोन के पास गई
अपने कुछ दोस्तों को फ़ोन मिलाया
फिर फ़ैशन और फिल्मों की बातों में
समय गंवाया
मैं ठंडी साँस भरके
तुम्हें काम पर जाते देखता रहा
और शायद वहीं तुम मुझसे बात करोगी
ये सोचता रहा
पर वहाँ तो तुम
घर से भी ज़्यादा व्यस्त थीं
काम में भी मुझे याद कर सकते हैं
इस बात की ना अभ्यस्त थीं
दोपहर को भोजन के समय
तुम थीं अपने मित्रों के साथ
उस समय भी तुम्हें
आई नहीं मेरी ज़रा भी याद
पता नहीं मुझे सबके बीच याद करना
तुम्हारा संकोच था या कुछ और
पर तुम्हारी झिझक से
मुझे पहुंचा था दुख घोर
ख़ैर मैंने सोचा
अभी तो बाकी है आधा दिन
तुम मुझे याद कर ही लोगी
किसी भी पल छिन
मैं तकता रहा
दिन भर तुम्हारी राह
तुमसे घडी दो घडी बात करने की
मेरी बडी थी चाह
तुम थकी माँदी
शाम को लौटीं जब घर
तब भी मुझसे बात करने का
तुम्हारे पास नहीं था अवसर
तुम घर के काम करती रहीं
जाने किन ख़्यालों में खोई रहीं
और मुझे यूँ नज़रअँदाज़ किया
जैसे मैं तुम्हारा कोई नहीं
मैं तब भी धैर्य से
प्रतीक्षा करता रहा कि तुम आओगी
ऑफिस में क्या क्या किया
मुझे सब बताओगी
पर एक बार फिर
तुमने मुझे मायूस किया
और मेरी ओर देखे बिना
टी वी का रिमोट थाम लिया
तुम देर तक टीवी के
चैनल बदलती रही
इधर तुम्हारी उपेक्षा से
मेरी बेचैनी बढती रही
ना चाहते हुए भी
तुमने टीवी के सामने वक्त गुज़ारा
और एक बार भी
मेरा नाम लेकर नहीं पुकारा
फिर तुम अपने घर वालों को
शुभरात्री कह कर
आराम से सो गईं
अपने बिस्तर पर जाकर
तुम्हें याद तक नहीं आया कि
तुम्हारा साईं तुम्हारे अँग सँग है, पास है
उसके मन में भी
अपने भक्तों से मिलने की आस है
पर मुझमें कितना धीरज है
यह मैं तुम्हें बताऊँगा
तुम चाहे मुझे याद ना करो,
फिर भी तुम्हारे पास मैं आऊँगा
मैं तुम्हारे एक इशारे, एक याद,
एक प्रार्थना, एक शुकराने का इंतज़ार करता हूँ
क्योंकि मैं अपने भक्तों के वश में हूं
उनसे बेइंतेहाँ प्यार करता हूँ
कल फिर सुबह होगी
कल फिर करूंगा मैं तुम्हारा इंतज़ार
तुम ज़रूर मेरे लिए समय निकालोगी
अगर तुम्हारे दिल में है मेरे लिए
ज़रा सा भी प्यार~~
~Sai Sewika & Tana
जय साईं राम!!!
बाबा की आस~~~
आज सुबह तुम्हारे ही घर में बैठा
करता रहा मैं तुम्हारा इंतज़ार
तुम मेरी तस्वीर के सामने से
गुज़री भी थी सौ बार
पर एक बार भी तुम्हारा ध्यान
गया नहीं मेरी ओर
तुम्हारे इस आचरण से
मुझे हुई है पीडा घोर
यूँ तो तमने मेरी तस्वीर को
अपने मंदिर में लगाया है
पर लगता है जैसे सजावट के सामान की तरह
मुझे बस सजाया है
ऐसा ना होता तो
उठते ही आ जाती तुम मेरे पास
मुझे लगता था कि तुम्हारे जीवन में
मेरा महत्व है कुछ खास
मुझे आशा थी कि सुबह होते ही
तुम मेरे पास आओगी
हाथ जोडोगी और
श्रद्धा से सर झुकाओगी
पर ना तुमने मुझे देखा
ना मेरे पास आई
ना ही तुम्हारी भक्ति,
ना श्रद्धा मैंने पाई
फिर देर तक तुम
अपनी अल्मारी से कपडे निकालती रही
कभी उन्हें, फैलाती,
कभी संभालती रही
पर तैयार होकर भी तुम
मेरे पास नहीं आईं
बस सामने कुर्सी पर बैठी
और कुछ सोच कर मुस्कुराईं
मुझे पता है, उस समय
तुम्हारे पास कोई काम ना था
पर उस समय भी, तुम्हारे ज़हन में
मेरा नाम ना था
तभी तुम अचानक उठीं
मुझे लगा शायद अब तुम्हें
मेरा ख़्याल आ गया
पर मेरी आशा का फ़ूल
तो खिलते ही मुरझा गया
तुम सीधे फ़ोन के पास गई
अपने कुछ दोस्तों को फ़ोन मिलाया
फिर फ़ैशन और फिल्मों की बातों में
समय गंवाया
मैं ठंडी साँस भरके
तुम्हें काम पर जाते देखता रहा
और शायद वहीं तुम मुझसे बात करोगी
ये सोचता रहा
पर वहाँ तो तुम
घर से भी ज़्यादा व्यस्त थीं
काम में भी मुझे याद कर सकते हैं
इस बात की ना अभ्यस्त थीं
दोपहर को भोजन के समय
तुम थीं अपने मित्रों के साथ
उस समय भी तुम्हें
आई नहीं मेरी ज़रा भी याद
पता नहीं मुझे सबके बीच याद करना
तुम्हारा संकोच था या कुछ और
पर तुम्हारी झिझक से
मुझे पहुंचा था दुख घोर
ख़ैर मैंने सोचा
अभी तो बाकी है आधा दिन
तुम मुझे याद कर ही लोगी
किसी भी पल छिन
मैं तकता रहा
दिन भर तुम्हारी राह
तुमसे घडी दो घडी बात करने की
मेरी बडी थी चाह
तुम थकी माँदी
शाम को लौटीं जब घर
तब भी मुझसे बात करने का
तुम्हारे पास नहीं था अवसर
तुम घर के काम करती रहीं
जाने किन ख़्यालों में खोई रहीं
और मुझे यूँ नज़रअँदाज़ किया
जैसे मैं तुम्हारा कोई नहीं
मैं तब भी धैर्य से
प्रतीक्षा करता रहा कि तुम आओगी
ऑफिस में क्या क्या किया
मुझे सब बताओगी
पर एक बार फिर
तुमने मुझे मायूस किया
और मेरी ओर देखे बिना
टी वी का रिमोट थाम लिया
तुम देर तक टीवी के
चैनल बदलती रही
इधर तुम्हारी उपेक्षा से
मेरी बेचैनी बढती रही
ना चाहते हुए भी
तुमने टीवी के सामने वक्त गुज़ारा
और एक बार भी
मेरा नाम लेकर नहीं पुकारा
फिर तुम अपने घर वालों को
शुभरात्री कह कर
आराम से सो गईं
अपने बिस्तर पर जाकर
तुम्हें याद तक नहीं आया कि
तुम्हारा साईं तुम्हारे अँग सँग है, पास है
उसके मन में भी
अपने भक्तों से मिलने की आस है
पर मुझमें कितना धीरज है
यह मैं तुम्हें बताऊँगा
तुम चाहे मुझे याद ना करो,
फिर भी तुम्हारे पास मैं आऊँगा
मैं तुम्हारे एक इशारे, एक याद,
एक प्रार्थना, एक शुकराने का इंतज़ार करता हूँ
क्योंकि मैं अपने भक्तों के वश में हूं
उनसे बेइंतेहाँ प्यार करता हूँ
कल फिर सुबह होगी
कल फिर करूंगा मैं तुम्हारा इंतज़ार
तुम ज़रूर मेरे लिए समय निकालोगी
अगर तुम्हारे दिल में है मेरे लिए
ज़रा सा भी प्यार~~
~Sai Sewika & Tana
जय साईं राम!!!
Tuesday, September 15, 2009
नौकरी की अरजी
ॐ साईं राम
तेरी नौकरी मुझे चाहिए
हे साईं अभिराम
चाकर मुझे बना लो, दे दो
श्री चरणों में स्थान
चौबिस घंटे, सातों दिन की
ड्यूटी मुझको दे दो
बचा समय जो इस जीवन का
निज सेवा में ले लो
वेतन में तुम मझको देना
श्रद्धा और सबूरी
इतना वेतन हो कि स्वामी
तुम से ना हो दूरी
सिक्क लीव मुझे नहीं चाहिए
ई एल तुम ना देना
इस जीवन का हर क्षण दाता
अपने नाम कर लेना
टी ए, डी ए जब हो जाए
कभी ड्यू जो मेरा
शिरडी धाम का लगवा देना
साईं तुम इक फेरा
अप्रेज़ल के समय में दाता
मेरे दोष निरखना
सच्ची झूठी भक्ति को तुम
साईं आन परखना
लेश मात्र भी कमी जो पाओ
डिमोशन चाहे करना
जैसे कर्म हो मेरे, वैसे
फल से झोली भरना
बोनस में मुझको दे देना
दरशन अपना प्यारा
तेरी नौकरी में ही बीते
मेरा जीवन सारा
प्रमोशन जब भी करना चाहो
तब इतना ही करना
भक्ति की ऊँची सीढी पर
साईं मुझको धरना
रिटायरमेंट का समय जो आवे
तुम खुद ही आ जाना
इस जीव को दाता अपने
सँग तुम्हीं ले जाना
अरजी मैनें डाली है, तुम
इस पर करो विचार
तेरी नौकरी पा जाऊँ तो
हो जावे उद्धार
~ Sai Sewika
जय साईं राम
तेरी नौकरी मुझे चाहिए
हे साईं अभिराम
चाकर मुझे बना लो, दे दो
श्री चरणों में स्थान
चौबिस घंटे, सातों दिन की
ड्यूटी मुझको दे दो
बचा समय जो इस जीवन का
निज सेवा में ले लो
वेतन में तुम मझको देना
श्रद्धा और सबूरी
इतना वेतन हो कि स्वामी
तुम से ना हो दूरी
सिक्क लीव मुझे नहीं चाहिए
ई एल तुम ना देना
इस जीवन का हर क्षण दाता
अपने नाम कर लेना
टी ए, डी ए जब हो जाए
कभी ड्यू जो मेरा
शिरडी धाम का लगवा देना
साईं तुम इक फेरा
अप्रेज़ल के समय में दाता
मेरे दोष निरखना
सच्ची झूठी भक्ति को तुम
साईं आन परखना
लेश मात्र भी कमी जो पाओ
डिमोशन चाहे करना
जैसे कर्म हो मेरे, वैसे
फल से झोली भरना
बोनस में मुझको दे देना
दरशन अपना प्यारा
तेरी नौकरी में ही बीते
मेरा जीवन सारा
प्रमोशन जब भी करना चाहो
तब इतना ही करना
भक्ति की ऊँची सीढी पर
साईं मुझको धरना
रिटायरमेंट का समय जो आवे
तुम खुद ही आ जाना
इस जीव को दाता अपने
सँग तुम्हीं ले जाना
अरजी मैनें डाली है, तुम
इस पर करो विचार
तेरी नौकरी पा जाऊँ तो
हो जावे उद्धार
~ Sai Sewika
जय साईं राम
Friday, September 11, 2009
तन्हाई
ॐ साईं राम
वो अक्सर मुँह अँधेरे ही चली आती थी
मैं चाहूँ ना चाहूँ, मेरे पास ही मँडराती थी
मैंने कई बार उसे दुत्कारा और भगाया था
पर अक्सर उसे अपने नज़दीक ही पाया था
सच बताऊँ, मैं उससे बहुत डरती थी
वो आज ना आए, हर दिन दुआ करती थी
पर रोज़ की तरह, वो उस दिन भी चली आई
मुझे देखा और व्यंग्य से मुस्कराई
मैंने कहा- तुम रोज़ क्यूँ चली आती हो
जानती तो हो कि तुम मुझे बिल्कुल नहीं भाती हो
वैसे भी नहीं चाहिेए मुझे तु्म्हारा साथ
क्योंकि मेरे साथ हरदम हैं मेरे साईं नाथ
वो बोली दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है
पर सच बताऊँ, साईं से तुम्हारा प्यार अभी कच्चा है
अगर ऐसा ना होता तो मैं तुम्हारे वजूद पर छा नहीं सकती थी
और जिस दिल में साईं रहते हों,उसमें मैं समा नहीं सकती थी
अच्छा सच बताओ-
जब तुम नहीं देखती, तब भी तुम्हारे घर में टी वी कयूँ चलता रहता है
क्यूँ तुम भरम पालती हो कि तुम अकेली नहीं,तुम्हारे संग कोई रहता है
क्यूँ तुम्हारे कान दरवाज़े की घंटी पर लगे रहते हैं
और क्यूँ अक्सर तुम्हारी आँखों से आँसू बहते हैं
वैसे तुम ही नहीं, बहुत से लोग मुझ से घबराते हैं
और कई तो भीड में भी मुझे अपने साथ ही पाते हैं
यह कह कर तन्हाई "खामोश" हो गई, और मुझे निहारा
पहली बार मुझे उसका साथ लगा अनोखा और प्यारा
उसने आज मुझे एक कडवा सच बतलाया था
पल भर में ही दूर हो गया मायूसियों का साया था
मैनें कहा शुक्रिया तन्हाई, तुम्हारी बातों ने आज मुझे चेताया है
और साईं साथ हों तो तुम्हारा वजूद नहीं ये सच मुझे समझाया है
अब तुम मेरे आस पास रहो मुझे फर्क नहीं पडता
और तुम कहीं आ ना जाओ,ये सोच कर दिल नहीं डरता
अब मैं और मेरा साईं अक्सर, बातें करते रहते हैं
और सुना है मेरे पीछे लोग मुझे दिवाना कहते हैं
~Sai Sewika
जय साईं राम
वो अक्सर मुँह अँधेरे ही चली आती थी
मैं चाहूँ ना चाहूँ, मेरे पास ही मँडराती थी
मैंने कई बार उसे दुत्कारा और भगाया था
पर अक्सर उसे अपने नज़दीक ही पाया था
सच बताऊँ, मैं उससे बहुत डरती थी
वो आज ना आए, हर दिन दुआ करती थी
पर रोज़ की तरह, वो उस दिन भी चली आई
मुझे देखा और व्यंग्य से मुस्कराई
मैंने कहा- तुम रोज़ क्यूँ चली आती हो
जानती तो हो कि तुम मुझे बिल्कुल नहीं भाती हो
वैसे भी नहीं चाहिेए मुझे तु्म्हारा साथ
क्योंकि मेरे साथ हरदम हैं मेरे साईं नाथ
वो बोली दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है
पर सच बताऊँ, साईं से तुम्हारा प्यार अभी कच्चा है
अगर ऐसा ना होता तो मैं तुम्हारे वजूद पर छा नहीं सकती थी
और जिस दिल में साईं रहते हों,उसमें मैं समा नहीं सकती थी
अच्छा सच बताओ-
जब तुम नहीं देखती, तब भी तुम्हारे घर में टी वी कयूँ चलता रहता है
क्यूँ तुम भरम पालती हो कि तुम अकेली नहीं,तुम्हारे संग कोई रहता है
क्यूँ तुम्हारे कान दरवाज़े की घंटी पर लगे रहते हैं
और क्यूँ अक्सर तुम्हारी आँखों से आँसू बहते हैं
वैसे तुम ही नहीं, बहुत से लोग मुझ से घबराते हैं
और कई तो भीड में भी मुझे अपने साथ ही पाते हैं
यह कह कर तन्हाई "खामोश" हो गई, और मुझे निहारा
पहली बार मुझे उसका साथ लगा अनोखा और प्यारा
उसने आज मुझे एक कडवा सच बतलाया था
पल भर में ही दूर हो गया मायूसियों का साया था
मैनें कहा शुक्रिया तन्हाई, तुम्हारी बातों ने आज मुझे चेताया है
और साईं साथ हों तो तुम्हारा वजूद नहीं ये सच मुझे समझाया है
अब तुम मेरे आस पास रहो मुझे फर्क नहीं पडता
और तुम कहीं आ ना जाओ,ये सोच कर दिल नहीं डरता
अब मैं और मेरा साईं अक्सर, बातें करते रहते हैं
और सुना है मेरे पीछे लोग मुझे दिवाना कहते हैं
~Sai Sewika
जय साईं राम
Wednesday, September 9, 2009
ॐ सांई राम!!!
सांई दर तेरा बरकतों का भंण्डार है,
तुझे सभी से प्यार है,
मैं भी प्यासी हूँ इस प्यार की,
तेरे दुलार की तेरे दीदार की,
इस दर से कोई गया ना निराश है,
मेरे दिल में भी एक यही आस है,
कैसी भी हूँ मैं मुझे अपनाओं गे तुम,
मुझे हिए से लगाओं गे तुम,
ये दिल में आज ठाना है मैने,
तुझे देखे बिना नहीं जाना है मैने,
झोली भर के ही जाऊं गी मैं,
नहीं तो यही मर जाऊंगी मैं,
ज़िद ये मेरी है तुझे आना पङेगा
मुझे हिए से लगाना पङेगा,
पापी हूँ ,पतित हूँ , कोटिल हूँ चाहे,
पर बेटी हूँ तेरी ये मानना पङेगा,
पुकार ये आज तुझे सुननी पङेगी,
नहीं तो बेटी तुझसे लङ पङेगी,
तु मान ना मान मुझे प्यार है तुझसे,
मैने जो पुकारा तुझे आना पङेगा,
जो तुम ना आए तो मेरा सब तो कुछ ही जाए गा,
पर मेरे सांई......
ममता मयी जो नाम धराया है तुमने,
वो नाम बिगङ जाए गा...
बाबा~~~~~
जय सांई राम!!!
सांई दर तेरा बरकतों का भंण्डार है,
तुझे सभी से प्यार है,
मैं भी प्यासी हूँ इस प्यार की,
तेरे दुलार की तेरे दीदार की,
इस दर से कोई गया ना निराश है,
मेरे दिल में भी एक यही आस है,
कैसी भी हूँ मैं मुझे अपनाओं गे तुम,
मुझे हिए से लगाओं गे तुम,
ये दिल में आज ठाना है मैने,
तुझे देखे बिना नहीं जाना है मैने,
झोली भर के ही जाऊं गी मैं,
नहीं तो यही मर जाऊंगी मैं,
ज़िद ये मेरी है तुझे आना पङेगा
मुझे हिए से लगाना पङेगा,
पापी हूँ ,पतित हूँ , कोटिल हूँ चाहे,
पर बेटी हूँ तेरी ये मानना पङेगा,
पुकार ये आज तुझे सुननी पङेगी,
नहीं तो बेटी तुझसे लङ पङेगी,
तु मान ना मान मुझे प्यार है तुझसे,
मैने जो पुकारा तुझे आना पङेगा,
जो तुम ना आए तो मेरा सब तो कुछ ही जाए गा,
पर मेरे सांई......
ममता मयी जो नाम धराया है तुमने,
वो नाम बिगङ जाए गा...
बाबा~~~~~
जय सांई राम!!!
प्रेम याचना
ॐ साईं राम
साईं पावन प्रेम का
मुझे दीजिए ज्ञान
परमात्मा से प्रेम का
पाऊँ अनुपम दान
तुमसे ही बस प्रीति हो
मोह माया को त्याग
सच्ची लगन हो प्रभु से
भक्तिमय अनुराग
तेरे प्रेम में मैं पडूँ
भूल के जग के बन्ध
प्रेममय रस पान करूँ
पाऊँ मैं मकरन्द
तेरी प्रेम नगरी में मैं
करूँ प्रेम से वास
तुझ से जोडूँ नाता मैं
बंधू प्रेम के पाश
तेरे प्रेम में झंकृत हों
मेरे मन के तार
प्रेम नाद छिड जावे तो
छूटें सभी विकार
दुख आवे,सुख जावे चाहे
जीवन में सौ बार
तुमसे प्रीति कम ना होवे
बढता जाए प्यार
तेरे प्रेम वियोग में
मैं रोऊँ और बिलखूँ
प्रेम पगी दृष्टि से साईं
तुझको ही मैं निरखूँ
प्रियतम साईं तुम्हें लिखूँ
भक्ति भाव की पाती
शब्दों में हो प्रेम गंग
अमृत रस बरसाती
प्रेममयी भक्ति करूँ
पूर्ण भाव के संग
रोम रोम हो प्रेम भरा
मन में प्रेम उमंग
तुझमें श्रद्धा सबुरी ही
विशुद्ध प्रेम का रूप
तुझसे प्रेम विरक्त जो
पडे अन्ध के कूप
~ Sai Sewika
जय साईं राम
साईं पावन प्रेम का
मुझे दीजिए ज्ञान
परमात्मा से प्रेम का
पाऊँ अनुपम दान
तुमसे ही बस प्रीति हो
मोह माया को त्याग
सच्ची लगन हो प्रभु से
भक्तिमय अनुराग
तेरे प्रेम में मैं पडूँ
भूल के जग के बन्ध
प्रेममय रस पान करूँ
पाऊँ मैं मकरन्द
तेरी प्रेम नगरी में मैं
करूँ प्रेम से वास
तुझ से जोडूँ नाता मैं
बंधू प्रेम के पाश
तेरे प्रेम में झंकृत हों
मेरे मन के तार
प्रेम नाद छिड जावे तो
छूटें सभी विकार
दुख आवे,सुख जावे चाहे
जीवन में सौ बार
तुमसे प्रीति कम ना होवे
बढता जाए प्यार
तेरे प्रेम वियोग में
मैं रोऊँ और बिलखूँ
प्रेम पगी दृष्टि से साईं
तुझको ही मैं निरखूँ
प्रियतम साईं तुम्हें लिखूँ
भक्ति भाव की पाती
शब्दों में हो प्रेम गंग
अमृत रस बरसाती
प्रेममयी भक्ति करूँ
पूर्ण भाव के संग
रोम रोम हो प्रेम भरा
मन में प्रेम उमंग
तुझमें श्रद्धा सबुरी ही
विशुद्ध प्रेम का रूप
तुझसे प्रेम विरक्त जो
पडे अन्ध के कूप
~ Sai Sewika
जय साईं राम
बरस रहें हो...
बरस रहें हो...
साईं सूरज हैं,
आप सब उनकी सुनहरी किरणें.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं चाँद हैं,
आप सब उनकी शीतल चाँदनी.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं विशाल सागर हैं,
आप सब उनकी झूमती लहरें.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं वायु हैं,
आप सब उनकी कृपा का झोंका.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं अंतरिक्ष हैं,
आप सब उनके चमकते सितारे.
आज मुझ पर बरस रहें हो !
आप सब को मिलने के बाद, मैंने अपने आप से पूछा ...
" क्या अब भी साईं के दर्शन को तरस रहें हों ? "
~रोहित बहल
जय सांई राम!!!
साईं सूरज हैं,
आप सब उनकी सुनहरी किरणें.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं चाँद हैं,
आप सब उनकी शीतल चाँदनी.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं विशाल सागर हैं,
आप सब उनकी झूमती लहरें.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं वायु हैं,
आप सब उनकी कृपा का झोंका.
आज मुझ पर बरस रहें हों !
साईं अंतरिक्ष हैं,
आप सब उनके चमकते सितारे.
आज मुझ पर बरस रहें हो !
आप सब को मिलने के बाद, मैंने अपने आप से पूछा ...
" क्या अब भी साईं के दर्शन को तरस रहें हों ? "
~रोहित बहल
जय सांई राम!!!
Monday, September 7, 2009
ओम साईं राम
भक्त वत्सल ,दीनबंधु,दयामय हे ईश
निर्गुण न्यारे,अनुपम प्यारे,सर्वेश्वर जगदीश
चैतन्यघन,परब्रह्म,स्वामी सद्चिदानंद
मंगलमूर्ति,दीनानाथ,अपरम्पार,भगवंत
अल्लाह,ईश्वर,ईसा,नानक,रामकृष्ण भगवान
गणपति,विट्ठल,पीर मोहम्मद,साईं दयानिधान
करुणासागर,करुणामूर्ति,करुणामय,करतार
सदासमर्थ,सदाचैतन्य,सदगुरु हे सरकार
निर्मल,पावन,जग मनभावन,सीधे सच्चे संत
वीतरागी,महात्यागी, आदि तुम्ही बेअंत
राम,रहीम,कृष्ण,करीम,दुर्गा मईया प्यारी
शिव शंकर तुम,विष्णु रुप तुम, बजरंगी,अवतारी
तुम ही काली,तुम ही भैरव,नरसिंह तुम हो बाबा
गंगा,जमना,प्रयाग,काशी तुम्ही हमारा काबा
श्रवण,कीर्तन,नामस्मरण, तुम ही पादसेवन
अर्चन,वंदन,दास्य,सख्य तुम ही आत्मनिवेदन
मात पिता तुम,भाई,बहन तुम, तुम ही शिक्षक प्यारे
तुम ही सखा,तुम ही बंधु,तुम ही सर्व सहारे
तुम ही गद्य,तुम ही पद्य, तुम ही कविता छंद
तुम ही सत्य,तुम ही सुंदर,तुम ही हो मकरंद
तुम ही अंदर, तुम ही बाहर, छाये हो चहुं ओर
तुम ही तुम, बस तुम ही तुम हो, जिसका ओर ना छोर
~Sai Sewika
जय साईं राम
भक्त वत्सल ,दीनबंधु,दयामय हे ईश
निर्गुण न्यारे,अनुपम प्यारे,सर्वेश्वर जगदीश
चैतन्यघन,परब्रह्म,स्वामी सद्चिदानंद
मंगलमूर्ति,दीनानाथ,अपरम्पार,भगवंत
अल्लाह,ईश्वर,ईसा,नानक,रामकृष्ण भगवान
गणपति,विट्ठल,पीर मोहम्मद,साईं दयानिधान
करुणासागर,करुणामूर्ति,करुणामय,करतार
सदासमर्थ,सदाचैतन्य,सदगुरु हे सरकार
निर्मल,पावन,जग मनभावन,सीधे सच्चे संत
वीतरागी,महात्यागी, आदि तुम्ही बेअंत
राम,रहीम,कृष्ण,करीम,दुर्गा मईया प्यारी
शिव शंकर तुम,विष्णु रुप तुम, बजरंगी,अवतारी
तुम ही काली,तुम ही भैरव,नरसिंह तुम हो बाबा
गंगा,जमना,प्रयाग,काशी तुम्ही हमारा काबा
श्रवण,कीर्तन,नामस्मरण, तुम ही पादसेवन
अर्चन,वंदन,दास्य,सख्य तुम ही आत्मनिवेदन
मात पिता तुम,भाई,बहन तुम, तुम ही शिक्षक प्यारे
तुम ही सखा,तुम ही बंधु,तुम ही सर्व सहारे
तुम ही गद्य,तुम ही पद्य, तुम ही कविता छंद
तुम ही सत्य,तुम ही सुंदर,तुम ही हो मकरंद
तुम ही अंदर, तुम ही बाहर, छाये हो चहुं ओर
तुम ही तुम, बस तुम ही तुम हो, जिसका ओर ना छोर
~Sai Sewika
जय साईं राम
Friday, September 4, 2009
एक सोने के सिंहासन
ओम साईं राम
ये शोर क्यूं मचा है
ये बवंडर क्यूं उठा है
ये कैसा है विवाद
ये कैसा है फ़साद
क्या दुनिया में ऐसा
पहली बार हुआ है
कि इश्क ने किसी आशिक के
दिल को छुआ है
एक सोने के सिंहासन को
मुद्दा बना डाला
एक बेमानी सवाल को
बेमतलब ही उछाला
जो स्वामी है सारे जग का
राजाओं का है राजा
वो महामहिम है दाता
धन्वन्तरी महाराजा
मोहताज नहीं यकीनन
वो ऐसी सौगातों का
पर है ख़्याल रखता
भक्तों के जज़्बातों का
कर लेता है कबूल
जो भी करो तुम अर्पण
बस भक्ती भाव हो पूरा
और पूर्ण हो समर्पण
अगर वो ना चाहे
तो पत्ता तक ना हिलता
ना धरती अम्बर होता
ना मानव जीवन मिलता
फिर क्यूं हम खुद ही
इस बहस को बढाएं
भक्ती के सिंहासन में
विवादों के जोडें पाये
बाबा के साथ कृप्या
ना राजनीति जोडें
रहने दें ज़ोर आज़माइश
ये रस्साकशी छोडें
बाबा को अपने मन के
सिंहासन पर बैठाएं
मालिक वो सारे जग का
उस से ही लौ लगाएं
~ Sai Sewika
जय साईं राम
ये शोर क्यूं मचा है
ये बवंडर क्यूं उठा है
ये कैसा है विवाद
ये कैसा है फ़साद
क्या दुनिया में ऐसा
पहली बार हुआ है
कि इश्क ने किसी आशिक के
दिल को छुआ है
एक सोने के सिंहासन को
मुद्दा बना डाला
एक बेमानी सवाल को
बेमतलब ही उछाला
जो स्वामी है सारे जग का
राजाओं का है राजा
वो महामहिम है दाता
धन्वन्तरी महाराजा
मोहताज नहीं यकीनन
वो ऐसी सौगातों का
पर है ख़्याल रखता
भक्तों के जज़्बातों का
कर लेता है कबूल
जो भी करो तुम अर्पण
बस भक्ती भाव हो पूरा
और पूर्ण हो समर्पण
अगर वो ना चाहे
तो पत्ता तक ना हिलता
ना धरती अम्बर होता
ना मानव जीवन मिलता
फिर क्यूं हम खुद ही
इस बहस को बढाएं
भक्ती के सिंहासन में
विवादों के जोडें पाये
बाबा के साथ कृप्या
ना राजनीति जोडें
रहने दें ज़ोर आज़माइश
ये रस्साकशी छोडें
बाबा को अपने मन के
सिंहासन पर बैठाएं
मालिक वो सारे जग का
उस से ही लौ लगाएं
~ Sai Sewika
जय साईं राम
शिरडी नाम ~अद्भुत अनुपम न्यारा न्यारा
ओम साईं राम
शिरडी नाम का छोटा सा
एक गांव है प्यारा
उसके अंदर समाधी मंदिर
अद्भुत अनुपम न्यारा
उसके अंदर साईं बैठे
मंद मंद मुस्काएं
जिनको उनसे मिलना है
वो शिरडी धाम को आए
समाधी मंदिर में बैठे बाबा
देख रहे हैं राह
भक्तों से मिलने की
भगवन भी रखते हैं चाह
द्वारका माई में बैठे बाबा
ताप रहे हैं सेक
श्री चरणों में शीश झुकाकर
माथा तुम लो टेक
चावडी में बैठे बाबा
करते हैं विश्राम
नैनों को शीतल करने को
पहुंचो शिरडी धाम
नीम तले हैं बैठे बाबा
देखो आंखे मूंद
भक्ती रस की चख लो आकर
हर इक पावन बूंद
पालकी में बैठे बाबा
देख रहे चहुं ओर
बाबा की अद्भुत लीला का
पावे ना कोई छोर
बाबा जा रहे हैं करने
लैंडी बाग की सैर
जल्दी जल्दी कदम बढाओ
पकडो उनके पैर
अहोभाग्य हमारा हमने
दर्शन पाये न्यारे
जितने भी थे पूरे हो गये
नैनों के सपने प्यारे
~sai Sawika
जय साईं राम
शिरडी नाम का छोटा सा
एक गांव है प्यारा
उसके अंदर समाधी मंदिर
अद्भुत अनुपम न्यारा
उसके अंदर साईं बैठे
मंद मंद मुस्काएं
जिनको उनसे मिलना है
वो शिरडी धाम को आए
समाधी मंदिर में बैठे बाबा
देख रहे हैं राह
भक्तों से मिलने की
भगवन भी रखते हैं चाह
द्वारका माई में बैठे बाबा
ताप रहे हैं सेक
श्री चरणों में शीश झुकाकर
माथा तुम लो टेक
चावडी में बैठे बाबा
करते हैं विश्राम
नैनों को शीतल करने को
पहुंचो शिरडी धाम
नीम तले हैं बैठे बाबा
देखो आंखे मूंद
भक्ती रस की चख लो आकर
हर इक पावन बूंद
पालकी में बैठे बाबा
देख रहे चहुं ओर
बाबा की अद्भुत लीला का
पावे ना कोई छोर
बाबा जा रहे हैं करने
लैंडी बाग की सैर
जल्दी जल्दी कदम बढाओ
पकडो उनके पैर
अहोभाग्य हमारा हमने
दर्शन पाये न्यारे
जितने भी थे पूरे हो गये
नैनों के सपने प्यारे
~sai Sawika
जय साईं राम
सबका मालिक एक
ॐ साईं राम
सबका मालिक एक
साईं नाम सुनाम के
परम भाव अनेक
अति उत्तम इक भाव है
सबका मालिक एक
द्वैत भाव की तोड कर
बीच खडी दीवार
ईश सभी का एक ही
बतलाया करतार
प्राणी प्राणी में करो नहीं
जाति धर्म का भेद
प्रेम सभी के ह्रदय बसे
होवे नहीं विच्छेद
जन्म से ऊँचा कोई नहीं
ना नीचा कोई धर्म
ऊँचा उसी को जानिए
जिसके ऊँचे कर्म
तेरा मेरा करे नहीं
हिंदु या इस्लाम
जन जन बाँटे प्रेम जो
सज्जन वही सुजान
सम है सभी में आत्मा
सम है सभी में प्राण
एक ही साईं सबका है
सबमें साईं मान
सबका मालिक एक है
अल्लाह कहो या राम
रस्ते चाहे अलग अलग
सबका एक ही धाम
सागर में नदिया कई
आकर के मिल जावें
छोड के निज अस्तित्व को
सागर ही कहलावें
ऐसे ही सब आत्मा
परमात्मा का अंश
एक में जाकर सभी मिलें
होवें तभी अनन्त
~Sai Sewika
जय साईं राम
सबका मालिक एक
साईं नाम सुनाम के
परम भाव अनेक
अति उत्तम इक भाव है
सबका मालिक एक
द्वैत भाव की तोड कर
बीच खडी दीवार
ईश सभी का एक ही
बतलाया करतार
प्राणी प्राणी में करो नहीं
जाति धर्म का भेद
प्रेम सभी के ह्रदय बसे
होवे नहीं विच्छेद
जन्म से ऊँचा कोई नहीं
ना नीचा कोई धर्म
ऊँचा उसी को जानिए
जिसके ऊँचे कर्म
तेरा मेरा करे नहीं
हिंदु या इस्लाम
जन जन बाँटे प्रेम जो
सज्जन वही सुजान
सम है सभी में आत्मा
सम है सभी में प्राण
एक ही साईं सबका है
सबमें साईं मान
सबका मालिक एक है
अल्लाह कहो या राम
रस्ते चाहे अलग अलग
सबका एक ही धाम
सागर में नदिया कई
आकर के मिल जावें
छोड के निज अस्तित्व को
सागर ही कहलावें
ऐसे ही सब आत्मा
परमात्मा का अंश
एक में जाकर सभी मिलें
होवें तभी अनन्त
~Sai Sewika
जय साईं राम
Thursday, September 3, 2009
है यह उस समय की बात...
है यह उस समय की बात...
है यह उस समय की बात
बनिये ने किया इन्कार
बाबा को दिया नहीं
एक बुन्द भी तेल इस बार
थे सब बनिये बहुत घमन्डी॥
पुछे सब मस्जिदमाई
सोचा कैसे जलायेग दिया यह बाबा सांई॥
पीके कुछ बून्द तेल की
उलेट दिया उसे मटकी में
डाला दियो में तेल नहीं वो जल
और चमत्कार से जल उठे दिये
जल उठा उनका भी अहन्कार
मान ली बनियों ने अपनी हार
रहे गये सभी हाथ अपने मल॥
सिखाया बाबा ने उनको नम्रता क पाठ
हुई बाबा की बहुत जय जयकार
है यह उस समय की बात
है यह उस समय की बात
~Sai Preet
है यह उस समय की बात
बनिये ने किया इन्कार
बाबा को दिया नहीं
एक बुन्द भी तेल इस बार
थे सब बनिये बहुत घमन्डी॥
पुछे सब मस्जिदमाई
सोचा कैसे जलायेग दिया यह बाबा सांई॥
पीके कुछ बून्द तेल की
उलेट दिया उसे मटकी में
डाला दियो में तेल नहीं वो जल
और चमत्कार से जल उठे दिये
जल उठा उनका भी अहन्कार
मान ली बनियों ने अपनी हार
रहे गये सभी हाथ अपने मल॥
सिखाया बाबा ने उनको नम्रता क पाठ
हुई बाबा की बहुत जय जयकार
है यह उस समय की बात
है यह उस समय की बात
~Sai Preet
है तू ही इन में...
है तू ही इन में...
है तू ही दिन में, है तू ही रात में
है तू ही सुबह में, है तू ही शाम में
है तू ही चारों पहर में
है तू पूरब में, है तू ही पचशिम में
है तू ही उत्तर में, है तू ही दक्षिण में
है तू ही चारों दिशों में
है तू ही मक्का में, है तू ही मदिना में
है तू ही मस्जिद में, है तू ही मन्दिर में
है तू ही चारों धाम में
है तू ही राम में, है तू ही रहीम में
है तू ही ईसा में, है तू ही गुरु में
है तू ही चारों रूपों में
है तू ही होली में, है तू ही दिवाली में
है तू ही क्रिसमस में, है तू ही ईद में
है तू ही चारों तहवार में
है तू ही लय में, है तू ही ताल में
है तू ही सरगम में , है तू ही सदा में
है तू ही सातों सुर में
है तू ही लाल में, है तू ही हरा
है तू ही पीले में, है तू ही नीले में
है तू ही सातों रंग में
है तू ही दिल में, है तू ही आँखों में
है तू ही होतों में, है तू ही जुबान में
है तू ही पाचों इन्द्रियों में
है तू ही जीवन में, है तू ही मृत्यु में
है तू ही दोनों सत्यों में.
है तू ही श्रद्धा में, है तू ही सबुरी में
है तू ही दोनों उपदेशों में
~sai Preet
है तू ही दिन में, है तू ही रात में
है तू ही सुबह में, है तू ही शाम में
है तू ही चारों पहर में
है तू पूरब में, है तू ही पचशिम में
है तू ही उत्तर में, है तू ही दक्षिण में
है तू ही चारों दिशों में
है तू ही मक्का में, है तू ही मदिना में
है तू ही मस्जिद में, है तू ही मन्दिर में
है तू ही चारों धाम में
है तू ही राम में, है तू ही रहीम में
है तू ही ईसा में, है तू ही गुरु में
है तू ही चारों रूपों में
है तू ही होली में, है तू ही दिवाली में
है तू ही क्रिसमस में, है तू ही ईद में
है तू ही चारों तहवार में
है तू ही लय में, है तू ही ताल में
है तू ही सरगम में , है तू ही सदा में
है तू ही सातों सुर में
है तू ही लाल में, है तू ही हरा
है तू ही पीले में, है तू ही नीले में
है तू ही सातों रंग में
है तू ही दिल में, है तू ही आँखों में
है तू ही होतों में, है तू ही जुबान में
है तू ही पाचों इन्द्रियों में
है तू ही जीवन में, है तू ही मृत्यु में
है तू ही दोनों सत्यों में.
है तू ही श्रद्धा में, है तू ही सबुरी में
है तू ही दोनों उपदेशों में
~sai Preet
है तू ही...
है तू ही...
है तू ही आज, है तू ही कल
है तू ही तब, है तू ही अब
है तू ही चंदा, है तू ही सूरज
है तू ही दिन, है तू ही रात
है तू ही सुबह, है तू ही शाम
है तू ही फूल, है तू ही माली
है तू ही पेड़, है तू ही छाया
है तू ही आग, है तू ही जल
है तू ही जीवन, है तू ही पल
है तू ही निर्गुण, है तू ही सगुण
है तू ही यहाँ, है तू ही वहां
है तू ही आकाश, है तू ही पाताल
है तू ही सुर, है तू ही ताल
है तू ही सरगम, है तू ही सदा
है तू ही सत्यम्, है तू ही शिवम्
है तू ही राम, है तू ही रहीम,
है तू ही गोपाल, है तू ही गुरु
है तू ही साईं, है तू ही ईसा
है तू ही गंगा, है तू ही यमुना
है तू ही किताब, है तू ही कलम
है तू ही कविता, है तू ही कवि
~Sai Preet
है तू ही आज, है तू ही कल
है तू ही तब, है तू ही अब
है तू ही चंदा, है तू ही सूरज
है तू ही दिन, है तू ही रात
है तू ही सुबह, है तू ही शाम
है तू ही फूल, है तू ही माली
है तू ही पेड़, है तू ही छाया
है तू ही आग, है तू ही जल
है तू ही जीवन, है तू ही पल
है तू ही निर्गुण, है तू ही सगुण
है तू ही यहाँ, है तू ही वहां
है तू ही आकाश, है तू ही पाताल
है तू ही सुर, है तू ही ताल
है तू ही सरगम, है तू ही सदा
है तू ही सत्यम्, है तू ही शिवम्
है तू ही राम, है तू ही रहीम,
है तू ही गोपाल, है तू ही गुरु
है तू ही साईं, है तू ही ईसा
है तू ही गंगा, है तू ही यमुना
है तू ही किताब, है तू ही कलम
है तू ही कविता, है तू ही कवि
~Sai Preet
ॐ सांई राम~~~
सांई-का-आँगन
है यह
फूल भी है और कान्टे भी
सुख भी है और दुख भी
अच्छाई भी है और बुराई भी
मिलन भी है और जुदाई भी है
दोस्ती भी है और दुश्मनी भी है
सांई-का-आँगन
है यह
फूल भी मुरझा जाते है और कान्टे ही फूल बन जाते है
सुख भी चले जाते है और दुख ही सुख बन जाते है
अच्छाई भी समाप्त हो जाटी है और बुराई ही अच्छाई बन जाती है
मिलन भी नहीं होता है और जुदाई ही मिलन बन जाती है
दोस्ती भी खत्म हो जाती है और दुश्मनी ही दोस्ती बन जाटी है
सांई-का-आँगन
है यह
है नहीं कुछ भी सांई से बङकर
क्यों करूं चिन्ता मैं इन सब आती जाती चीज़ों की
सांई है हमेशा मेरे साथ
आज भी कल भी सदैव भी
सांई वास करता है इन सब ही चीज़ों मैं
तो अब चाहे
फूल मिले या कान्टे
सुख मिले या दुख
अच्छा हो या बुरा
मिलन हो या जुदाई
दोस्ती हो य दुश्मनी
सांई तो है सभी में
सांई तो है सभी में
है यही
सांई-का-आँगन
~ Sai Preet
जय सांई राम~~~
सांई-का-आँगन
है यह
फूल भी है और कान्टे भी
सुख भी है और दुख भी
अच्छाई भी है और बुराई भी
मिलन भी है और जुदाई भी है
दोस्ती भी है और दुश्मनी भी है
सांई-का-आँगन
है यह
फूल भी मुरझा जाते है और कान्टे ही फूल बन जाते है
सुख भी चले जाते है और दुख ही सुख बन जाते है
अच्छाई भी समाप्त हो जाटी है और बुराई ही अच्छाई बन जाती है
मिलन भी नहीं होता है और जुदाई ही मिलन बन जाती है
दोस्ती भी खत्म हो जाती है और दुश्मनी ही दोस्ती बन जाटी है
सांई-का-आँगन
है यह
है नहीं कुछ भी सांई से बङकर
क्यों करूं चिन्ता मैं इन सब आती जाती चीज़ों की
सांई है हमेशा मेरे साथ
आज भी कल भी सदैव भी
सांई वास करता है इन सब ही चीज़ों मैं
तो अब चाहे
फूल मिले या कान्टे
सुख मिले या दुख
अच्छा हो या बुरा
मिलन हो या जुदाई
दोस्ती हो य दुश्मनी
सांई तो है सभी में
सांई तो है सभी में
है यही
सांई-का-आँगन
~ Sai Preet
जय सांई राम~~~
ओम साईं राम
साईं सुमिरन जो करे, सो साईं को पाय
जन्म मरण छूटें सभी, भवसागर तर जाय
साईं सुमिरन से मिले, श्रद्धा और सबूरी
श्री चरणों मे जगह मिले,मिट जाय सब दूरी
साईं सुमिरन भजन से, बढे भक्ती विश्वास
साईं मे ही जा मिले जो साईंं का दास
साईं सुमिरन ध्यान से, मोह माया सब छूटे
परम सत्य का ग्यान हो, जग के बंधन टूटे
साईं सुमिरन नाव है, इसमें हो जो सवार
सहज हाथ में थाम ले, भक्ती की पतवार
साईं सुमिरन डोर है, साईं से जो जोडे
प्रेम करे सब जीवों से, भेदभाव सब छोडे
साईं सुमिरन इक रास्ता, इस पर चलते जाओ
श्वास श्वास से सिमर कर, साईं मंज़िल पाओ
साईं सुमिरन नदी है, डूबो गोते खाओ
निर्मल पावन मन होवे, मल विमुक्त हो जाओ
साईं सुमिरन जोत है जिसके मन में जागे
जीवन में उजियारा हो घोर अंधेरा भागे
साईं सुमिरन सीढी है, निशदिन चढते जाओ
साईं खडे हैं बांह फैलाए, उनमें आन समाओ
~Sai Sewika
जय साईं राम
साईं सुमिरन जो करे, सो साईं को पाय
जन्म मरण छूटें सभी, भवसागर तर जाय
साईं सुमिरन से मिले, श्रद्धा और सबूरी
श्री चरणों मे जगह मिले,मिट जाय सब दूरी
साईं सुमिरन भजन से, बढे भक्ती विश्वास
साईं मे ही जा मिले जो साईंं का दास
साईं सुमिरन ध्यान से, मोह माया सब छूटे
परम सत्य का ग्यान हो, जग के बंधन टूटे
साईं सुमिरन नाव है, इसमें हो जो सवार
सहज हाथ में थाम ले, भक्ती की पतवार
साईं सुमिरन डोर है, साईं से जो जोडे
प्रेम करे सब जीवों से, भेदभाव सब छोडे
साईं सुमिरन इक रास्ता, इस पर चलते जाओ
श्वास श्वास से सिमर कर, साईं मंज़िल पाओ
साईं सुमिरन नदी है, डूबो गोते खाओ
निर्मल पावन मन होवे, मल विमुक्त हो जाओ
साईं सुमिरन जोत है जिसके मन में जागे
जीवन में उजियारा हो घोर अंधेरा भागे
साईं सुमिरन सीढी है, निशदिन चढते जाओ
साईं खडे हैं बांह फैलाए, उनमें आन समाओ
~Sai Sewika
जय साईं राम
बाबा जी के दोहे----------
ओम साईं राम
बाबा जी के दोहे----------
मन्दिर मस्जिद जोड के
द्वारका देइ बनाय
सबका मालिक एक है
साईं दियो समझाय
गोदावरी के तीर की
महिमा दस दिस छाई
प्रभु स्वयं ही प्रगट हुए
नाम धराया साईं
तीन वाडों के बीच में
हरि करते विश्राम
तांता भक्तों का लगा
शिरडी बन गई धाम
हिन्दु हैं या यवन हैं
बाबा नहीं बतलाए
जैसी जाकी भावना
तैसो दरशन पाए
चन्दन उत्सव जोड दिया
रामनवमी के संग
हिन्दु मुसलिम प्रेम का
खूब जमा फिर रंग
पाप ताप संताप का
करने हेतु अंत
बाबा चक्की पीसते
देखे हेमाडपंत
चक्की में आटा पिसा
मेढ दियो बिख्रराय
शिरडी से सभी व्याधी को
साईं दियो भगाय
पोथी पढे नहीं होत है
अग्यानी को ग्यान
सदगुरु जिसके ह्रदय बसे
ताको ग्यानी जान
द्वारकामाई की गोद मे
बैठो कर विश्वास
सबके पापों का माई
कर देती है नाश
समाधि मंदिर की सीढी पर
रख देते जो पांव
उनके जीवन दुख का
रहे ना कोई ठांव
सब जीवों में देखे जो
साईं राम का वास
उसके ह्रदय में साईं
आप ही करे निवास
दास गणु क्यूं जात हो
प्रयाग काशी आप
गंगा जमना यहीं रहे
श्री चरणों में व्याप
तेली तुमने दिया नहीं
साईंनाथ को तेल
पानी से दीपक जले
लीला के थे खेल
चोलकर शक्कर छोड के
जोडे पाई पाई
अंतरयामी साईं ने
कर दीन्ही भरपाई
जो जन की निंदा करे
ऐसो ही गति पाए
जैसे कूडा ढेर से
शूकर विष्ठा खाए
पूजन चिन्तन मनन का
जो करता अभ्यास
साईं उसके साथ हैं
साईं उसके पास
मर्म दक्षिणा जान लो
पूरा लो पहचान
कर्मबन्ध के काटने
साईं लेते दान
नश्वर ये संसार है
मोह माया को त्याग
यही बताने को साईं
ऊदी दियो परसाद
धूप दीप का थाल ले
जोग खडे प्रभु द्वार
तांत्या चंवर ढुला रहे
नाना है बलिहार
Sai Sewika
जय साईं राम
बाबा जी के दोहे----------
मन्दिर मस्जिद जोड के
द्वारका देइ बनाय
सबका मालिक एक है
साईं दियो समझाय
गोदावरी के तीर की
महिमा दस दिस छाई
प्रभु स्वयं ही प्रगट हुए
नाम धराया साईं
तीन वाडों के बीच में
हरि करते विश्राम
तांता भक्तों का लगा
शिरडी बन गई धाम
हिन्दु हैं या यवन हैं
बाबा नहीं बतलाए
जैसी जाकी भावना
तैसो दरशन पाए
चन्दन उत्सव जोड दिया
रामनवमी के संग
हिन्दु मुसलिम प्रेम का
खूब जमा फिर रंग
पाप ताप संताप का
करने हेतु अंत
बाबा चक्की पीसते
देखे हेमाडपंत
चक्की में आटा पिसा
मेढ दियो बिख्रराय
शिरडी से सभी व्याधी को
साईं दियो भगाय
पोथी पढे नहीं होत है
अग्यानी को ग्यान
सदगुरु जिसके ह्रदय बसे
ताको ग्यानी जान
द्वारकामाई की गोद मे
बैठो कर विश्वास
सबके पापों का माई
कर देती है नाश
समाधि मंदिर की सीढी पर
रख देते जो पांव
उनके जीवन दुख का
रहे ना कोई ठांव
सब जीवों में देखे जो
साईं राम का वास
उसके ह्रदय में साईं
आप ही करे निवास
दास गणु क्यूं जात हो
प्रयाग काशी आप
गंगा जमना यहीं रहे
श्री चरणों में व्याप
तेली तुमने दिया नहीं
साईंनाथ को तेल
पानी से दीपक जले
लीला के थे खेल
चोलकर शक्कर छोड के
जोडे पाई पाई
अंतरयामी साईं ने
कर दीन्ही भरपाई
जो जन की निंदा करे
ऐसो ही गति पाए
जैसे कूडा ढेर से
शूकर विष्ठा खाए
पूजन चिन्तन मनन का
जो करता अभ्यास
साईं उसके साथ हैं
साईं उसके पास
मर्म दक्षिणा जान लो
पूरा लो पहचान
कर्मबन्ध के काटने
साईं लेते दान
नश्वर ये संसार है
मोह माया को त्याग
यही बताने को साईं
ऊदी दियो परसाद
धूप दीप का थाल ले
जोग खडे प्रभु द्वार
तांत्या चंवर ढुला रहे
नाना है बलिहार
Sai Sewika
जय साईं राम
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