Monday, April 5, 2010

अनगिनत सवाल

ॐ साईं राम


अनगिनत सवाल

कई बार सोचती हूँ साईं
आपकी भक्ति के पथ पर
मेरी स्थिति कैसी है,
मेरा क्या स्थान है?
भक्ति का स्तर कैसा है?
क्या कोई आत्मज्ञान है?

आपने मुझे किस प्रकार
स्वीकार किया है?
अधम, साधारण या उत्तम
किस श्रेणी में स्थान दिया है?

क्या आपने मुझे
तात्या की तरह अपनाया है?
या फिर म्हालसापति की तरह
मैनें आपके दरबार में स्थान पाया है?

क्या मुझे शामा की तरह
आपसे रूठने का अधिकार है?
क्या खुशालचँद की तरह
आपको इस भक्त से भी विशेष प्यार है?

क्या लक्ष्मीबाई शिंदे की तरह
आप मेरा नेवैद्य भी करते हैं स्वीकार?
क्या राधाकृष्णामाई की तरह,महाप्रसाद पाने का
मुझे भी है अधिकार?

क्या भीमाजी पाटिल की तरह
मेरे गत कर्मों को आपने नष्ट कर दिया है?
क्या मेघा की तरह
मेरी पूजा को भी आपने स्वीकार किया है?

क्या सपटणेकर की तरह मेरे
दुविधाग्रस्त संशय से आप परेशान हैं?
क्या हाजी सिद्दीकी की तरह
मेरे अहँ को देख कर आप हैरान हैं?

मद्रासी भजनी मँडली के मुखिया की तरह
मेरी सकाम भक्ति, क्या आपको कष्ट पहुँचाती है?
इतने ढेर सवालों से बोझिल डगमग भक्ति
क्या मेरे नाथ को भाती है?

इन सब प्रश्नों का उत्तर देने को साईं
एक बार तो आपको सामने आना ही होगा
अपनी कृपा वृष्टि से देवा
भक्तिन को नहलाना ही होगा

जिस दिन आप हे नाथ
इन प्यासे नैनों के सन्मुख आओगे,
अपने सुमधुर आशिष से
मेरी आत्मा को सहलाओगे

उस दिन स्वामी मिट जाऐंगे
भ्रम, सँशय और सवाल
जग की ठगिनी माया के
सभी कटेंगे जाल

उस दिन हर सँदेह,
हर प्रश्न बेमानी हो जाएगा
शुभ दर्शन से मोहित ये मन
चिर विश्राँति को पाएगा



~SaiSewika

जय साईं राम
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