ॐ साईं राम
सपने की सीख
कल रात सपने में देखी
साईं लीला न्यारी
साईं माँ के घर जनमी मैं
बनके बेटी प्यारी
साईं माँ की गोदी में मैं
निश्चित पडी थी सोती
पल भर भी मैया जाती तो
सुबक सुबक मैं रोती
मेरे दिन और रात जुडे थे
साईं माँ के साथ
उन्हें काम करने ना देती
थामे रहती हाथ
साईं मैया जी ने सोचा
इसका एक उपाय
मुझे ले बाज़ार गईं और
खिलौने कई दिलाए
काठ की सखियाँ,काठ के साथी
नन्हें बरतन, चूल्हा,
छोटी प्यारी सुन्दर चीज़ें
काठ का सुन्दर दूल्हा
साईं मैया लगी काम में
यूँ मुझको बहला कर
मैं भी उनसे लगी खेलने
भूली माँ का आँचल
इतने में मेरी आँख खुल गई
सपना मेरा टूटा
सुन्दर खेल खिलौने और
साईं माँ का आँचल छूटा
उठ कर देखा ठीक सामने
बाबा को बैठा पाया
श्री चरणों में झुक कर मैंने
श्रद्धा से शीश नवाया
उत्साहित हो नाथ को मैंने
अद्भुत स्वप्न सुनाया
श्री मुख से तब बाबा जी ने
ये मधुर वचन फरमाया
क्या अर्थ है स्वप्न का आओ
मैं तुमको समझाता हूँ
बद्ध जीव और जीवन का मैं
सार तुम्हें समझाता हूँ
याद है तुमको स्वप्न में मैंने
खिलौने कई दिलाए थे
कैसे तुमको उलझाने को
माया जाल फैलाए थे
तुम भी उनको पा कर कैसे
फूली नहीं समाई थी
खेल खिलौनों में तुम डूबी
याद ना मेरी आई थी
ऐसे इस दुनिया में आकर
जीव भूलते हैं मुझको
मैं जो रचता माया उसमें
उलझा लेते हैं खुद को
सोने के पिंजरे में पँछी
सुख सुविधा को पा कर के
खुद को ना वो बद्ध समझता
दाना दुनका खा कर के
ऐसे जब तक मोक्ष की इच्छा
मन में किसी के जागे ना
बँधन को बँधन ना समझे
मोह माया से भागे ना
तब तक इस दुनिया में उसका
आना जाना होता है
ऐसे जनम जनम तक प्राणी
मानव देह को ढोता है
बाबा बोले - तुम पर है
तुम इसको जैसा भी मानो
माया में ही खुश रह लो
या फिर इसको बँधन जानो
पर अन्ततः आत्म मिलेगा
परमात्मा से आकर
जैसे नदिया बह कर मिलती
महा समुद्र में जाकर
ये कह कर बाबा जी प्यारे
मँद मँद मुस्काए
सपना दिखला कर माया के
सभी भेद समझाए
जय साईं राम