ओम साईं राम
मेरा जी चाहता है साईं
मेरे इस चंचल से मन में
नन्ही सी जागी अभिलाषा
प्रकट दर्शन पाऊं साईं का
रह ना जाए मन ये प्यासा
वो जो मेरे मन के अंदर
बैठा रहता बाहर ना आता
कभी निकल कर बाहर आए
व्याकुल मन अब रह नहीं पाता
बार बार खुद को समझाऊं
सब जीवों मे दर्शन पाऊं
झाकूं भीतर अपने मन के
पर ये प्यासे नैना तन के
बिलख बिलख कर रह जाते हैं
विनती अपनी कह जाते हैं
एक बार बस एक बार तो
सन्मुख आकर मुझे तार दो
मेरा तुमसे है ये वादा
मांगूगी ना इससे ज्यादा
दर्शन तेरा प्यारा प्यारा
नैनों मे भर लूंगी सारा
और चाहिए क्या जीवन से
प्राण जुदा हो जाएं तन से
उससे पहले झलक दिखा दो
प्यासे मन की प्यास बुझा दो
~Sai Sewika
जय साईं राम