ॐ सांई राम~~~
चाहत हो तेरे दीदार की बस,
कोई और मुझे अब चाह न हो,
कुछ ऐसा करिश्मा कर दो सांई,
मुझे अपनी भी परवाह न हो,
भिखारिन हूँ तेरे दर की,
सांई खाली हाथ न जाऊँगी,
बैठी हूँ तेरे दर पे सांई,
अब तो ले के कुछ उठूँगी,
चाहे पत्थर बना ले अपने दर का,
चरण धूली मैं पा लूँगी,
चाहे फूल बना ले सांई मुझको,
तेरे आँचल की सांई मैं हवा लूँगी,
बनी रहे ये चाहत यही चाहती हूँ मैं,
तेरे दर की भिखारिन बनना चाहती हूँ मैं~~~~
जय सांई राम~~~