ॐ सांई राम~~~
सच है क्या और झूठ है क्या,
ये मैं कुछ भी नहीं जानती,
मेरे कर्म है क्या , और अकर्म है क्या
मैं कुछ भी नहीं पहचानती,
पाप है क्या और पुन्य है क्या
मैं ये भी नहीं जानती
जो दिल कहता वो मैं करती
बस दिल का कहाँ मैं मानती
कल क्या होगा किसने दिखा
जो बीत गया वो बिसरा लेखा
आज है जो वही सच है बस
इसी को सच मैं मानती
तूने सच दिखलाया मुझको
मैं कुछ नहीं थी जानती
यही कारण है ओ मेरे सांई
जो तुझे ही अपन सर्वाधार मैं मानती~~~
जय सांई राम~~~