ॐ साईं राम
महासमाधि की ओर
२८ सितम्बर १९१८ के दिन
बाबाजी को ताप चढा
मानों काल ने दस्तक दी
दबे पाँव था काल बढा
भक्तों के कष्टों को ढोते
पावन काया जीर्ण हुई
जन जन की व्याधि को ओढे
दुर्बल काया क्षीण हुई
महा निर्वाण के दिवस का आगम
साईं नाथ ने भाँपा था
किंतु भीष्ण और कटु सत्य को
बडे जतन से ढाँपा था
तो भी धर्म की प्रथा के हेतु
श्री वझे को बुलवाया
'राम विजय' का पाठ निरँतर
चौदह दिन तक करवाया
शाँत बैठ गए बाबाजी फिर
आत्मस्थित हो मस्जिद में
पूर्ण सचेत बाबा भक्तों को
ढाँढस धैर्य देते थे
१५ अक्टूबर निर्वाण दिवस को
मध्याह्ण की आरती के बाद
साईं देव भक्तों से बोले
वाणी में भर प्रेम अगाध
जाओ मेरे प्यारे भक्तों
अपने अपने घर जाओ
विश्राम करो कुछ देर और फिर
भोजन कर वापिस आओ
तत्पश्चात श्री बाबाजी ने
लक्ष्मी शिंदे को बुलवाया
बडे प्रेम से उनको देखा
और श्री मुख से फरमाया
बडे जतन औेर प्रेम भाव से
तुमने की सेवा मेरी
मुझको मालिक समझा, खुद को
सदा कहा मेरी चेरी
यह कह कर प्रभु प्यारे जी ने
अपनी जेब में डाला हाथ
नौ रुपये का महादान उसे
दिया स्व आषिश के साथ
कोई नहीं साईं सम सदगुरु
उद्धारक और ईश महान
नवधा भक्ति दे लक्षमी को
देव किया उसका कल्याण
तत्पश्चात दिया बाबा ने
मानो भक्तों को आदेश
वो अँतिम इच्छा थी उनकी
और वही अँतिम सँदेश
"मेरे प्यारे भक्तों मुझको
तुमसे इतना कहना है
दिल नहीं लगता मशिद में मेरा
मुझे यहाँ नहीं रहना है"
"बूटी के पत्थर वाडे में
भक्तो मुझको ले जाओ
सुख पाऊँगा वाडे में मैं
तुम भी सँग सँग सुख पाओ"
इतना कहते देवा की देह
बयाजी पर झुक गई
भूमँडल और पृथ्वी सारी
मानों थम कर रुक गई
दसों दिशाऐं मर्माहत हो
चीत्कार करने लगी
बाबा के प्यारों की आँखे
झरने सम झरने लगीं
हाहाकार मचा चहुँ ओर
घर घर में मातम आया
भक्तों के जीवन पर छाया
दुखों का कलुषित साया
देह को त्याग परम आत्मा
परमात्मा में लीन हुई
किंतु साईं कृपा दृष्टि से
सँगत नहीं विहीन हुई
उसी दिवस कृपालु भगवन
दासगणु के सपने में आए
देह त्याग सँदेश दिया और
मधुर वचन ये फरमाए
"सुँदर ताजे फूलों की माला
गणु एक बना लो तुम
शिरडी आकर मम शरीर पर
स्वँय हाथ से डालो तुम"
अगले दिन श्री बाबाजी ने
मामा जोशी को स्वप्न दिया
हाथ खींच कर उन्हें उठाया
और फिर ये आदेश दिया
"मृत ना समझो मुझको तुम
शीघ्र मशिद में जाओ तुम
धूप दीप का थाल सजाकर
काँकण आरती गाओ तुम"
पूजन अर्चन का क्रम ना टूटा
सुँदर लीला थी साईं की
बूटी वाडे में बनी समाधि
साईं सर्व सहाई की
शिरडी पावन धाम बन गया
भक्तों का काशी काबा
वहीं समाधि मँदिर में
रहते हैं प्यारे बाबा
जय साईं राम
महासमाधि की ओर
२८ सितम्बर १९१८ के दिन
बाबाजी को ताप चढा
मानों काल ने दस्तक दी
दबे पाँव था काल बढा
भक्तों के कष्टों को ढोते
पावन काया जीर्ण हुई
जन जन की व्याधि को ओढे
दुर्बल काया क्षीण हुई
महा निर्वाण के दिवस का आगम
साईं नाथ ने भाँपा था
किंतु भीष्ण और कटु सत्य को
बडे जतन से ढाँपा था
तो भी धर्म की प्रथा के हेतु
श्री वझे को बुलवाया
'राम विजय' का पाठ निरँतर
चौदह दिन तक करवाया
शाँत बैठ गए बाबाजी फिर
आत्मस्थित हो मस्जिद में
पूर्ण सचेत बाबा भक्तों को
ढाँढस धैर्य देते थे
१५ अक्टूबर निर्वाण दिवस को
मध्याह्ण की आरती के बाद
साईं देव भक्तों से बोले
वाणी में भर प्रेम अगाध
जाओ मेरे प्यारे भक्तों
अपने अपने घर जाओ
विश्राम करो कुछ देर और फिर
भोजन कर वापिस आओ
तत्पश्चात श्री बाबाजी ने
लक्ष्मी शिंदे को बुलवाया
बडे प्रेम से उनको देखा
और श्री मुख से फरमाया
बडे जतन औेर प्रेम भाव से
तुमने की सेवा मेरी
मुझको मालिक समझा, खुद को
सदा कहा मेरी चेरी
यह कह कर प्रभु प्यारे जी ने
अपनी जेब में डाला हाथ
नौ रुपये का महादान उसे
दिया स्व आषिश के साथ
कोई नहीं साईं सम सदगुरु
उद्धारक और ईश महान
नवधा भक्ति दे लक्षमी को
देव किया उसका कल्याण
तत्पश्चात दिया बाबा ने
मानो भक्तों को आदेश
वो अँतिम इच्छा थी उनकी
और वही अँतिम सँदेश
"मेरे प्यारे भक्तों मुझको
तुमसे इतना कहना है
दिल नहीं लगता मशिद में मेरा
मुझे यहाँ नहीं रहना है"
"बूटी के पत्थर वाडे में
भक्तो मुझको ले जाओ
सुख पाऊँगा वाडे में मैं
तुम भी सँग सँग सुख पाओ"
इतना कहते देवा की देह
बयाजी पर झुक गई
भूमँडल और पृथ्वी सारी
मानों थम कर रुक गई
दसों दिशाऐं मर्माहत हो
चीत्कार करने लगी
बाबा के प्यारों की आँखे
झरने सम झरने लगीं
हाहाकार मचा चहुँ ओर
घर घर में मातम आया
भक्तों के जीवन पर छाया
दुखों का कलुषित साया
देह को त्याग परम आत्मा
परमात्मा में लीन हुई
किंतु साईं कृपा दृष्टि से
सँगत नहीं विहीन हुई
उसी दिवस कृपालु भगवन
दासगणु के सपने में आए
देह त्याग सँदेश दिया और
मधुर वचन ये फरमाए
"सुँदर ताजे फूलों की माला
गणु एक बना लो तुम
शिरडी आकर मम शरीर पर
स्वँय हाथ से डालो तुम"
अगले दिन श्री बाबाजी ने
मामा जोशी को स्वप्न दिया
हाथ खींच कर उन्हें उठाया
और फिर ये आदेश दिया
"मृत ना समझो मुझको तुम
शीघ्र मशिद में जाओ तुम
धूप दीप का थाल सजाकर
काँकण आरती गाओ तुम"
पूजन अर्चन का क्रम ना टूटा
सुँदर लीला थी साईं की
बूटी वाडे में बनी समाधि
साईं सर्व सहाई की
शिरडी पावन धाम बन गया
भक्तों का काशी काबा
वहीं समाधि मँदिर में
रहते हैं प्यारे बाबा
जय साईं राम