ओम साईं राम
अगर साईं का प्यार एक समन्दर है
तो मैं इसमें डूब जाना चाहती हूं
किनारे की कोई ललक नहीं मुझको
मैं तो लहर बनके इसमें समाना चाहती हूं
अगर साईं का प्यार एक तपता सूरज है
तो मैं इसमें झुलस जाना चाहती हूं
मैं वो शै नहीं जो आग से डरूं
मैं खुद को इसमें तपाना चाहती हूं
अगर साईं का प्यार एक रास्ता है
तो मैं इस पर चलते जाना चाहती हूं
कंकडों पत्थरों की परवाह नहीं है मुझे
मैं तो रास्ते की धूल बन जाना चाहती हूं
अगर साईं का प्यार एक मन्ज़िल है
तो मैं उस मन्ज़िल को पाना चाहती हूं
साईं मैं तेरे कदमों में आ पडी हूं
यहीं अपना आखिरी ठिकाना चाहती हूं
~साईं सेविका
जय साईं राम