ॐ साईं राम
साईं की चक्की लीला
एक दिवस हेमाड जी
पहुँचे द्वारकामाई
लीला की तैयारी करके
बैठे थे प्रभु साईं
कपडा एक बिछाकर प्रभु ने
चक्की रक्खी उस पर
गेहूँ डाला, लगे पीसने
आटा साईं गुरूवर
बाबा की लीला लखने को
उमडी जनता सारी
कोई समझ सका ना लीला
बाबा जी की न्यारी
चार स्त्रियाँ आगे बढकर
पहुँची साईं के पास
जबरन चक्की ले लेने का
करने लगी प्रयास
पहले क्रोधित हुए, शाँत फिर
हो गए बाबा साईं
पीछे हटकर बाबा ने थी
चक्की उन्हें थमाई
चक्की पीसते, रही सोचती
चारों ही ये बात
इस आटे की उनको ही
बाबा देंगे सौगात
घर द्वार नहीं है बाबा का
ना वो रसोई बनाते
पाँच घरों से माँग के भिक्षा
बाबा काम चलाते
यही सोचते, गाकर गीत
सारा गेहूँ पीसा
आपस में बाँट के आटा
चली ले अपना हिस्सा
उनको देख ले जाते आटा
क्रुद्ध हो गए साईं
एक गरजती वाणी फिर थी
उनको पडी सुनाई
किसकी सँपत्ति समझ कर तुम
ले जाती हो आटा
कर्ज़दार का माल नहीं जो
आपस में है बाँटा
जाओ, इस आटे को
गाँव की सीमा पर ले जाओ
सारे आटे की इक रेखा
सीमा पर बिखराओ
हुए अचँभित शिरडी वासी
आदेश साईं का पा कर
आटा बिखराया शिरडी की
सीमा पर ले जा कर
चहूँ ओर प्लेग था फैला
छाई थी महामारी
सरक्षित शिरडी को करने की
थी उनकी तैयारी
भक्तों ने साईं लीला का
पाया मधुर सुयोग
रही सदा सुरक्षित शिरडी
फैला ना कोई रोग
हुए रोमाँचित हेमाड जी
देख साईं की लीला
भक्ति रस से हो गया
उनका तन मन गीला
उपजा पावन हृदय में
अति उत्तम सुविचार
साईं की गाथा लिखी तो
होगा बेडा पार
भक्तों का कल्याण करेंगी
बाबा की लीलाएँ
सुने गुनेगा जो कोई उसके
पाप नष्ट हो जाएँ
शामा जी ने करी प्रार्थना
बाबा जी के आगे
मिली स्वीकृति गाथा लिखने की
भाग्य हेमाड के जागे
ऐसे लीला रच बाबा ने
दाभोलकर को चेताया
माध्यम उन्हें बना कर अपना
अमृत रस बरसाया
मुदित हुए सब भक्त जो पाया
सच्चरित्र का दान
श्रद्धा प्रेम की लहर उठी तो
मिटा घोर अज्ञान
~Sai Sewika
जय साईं राम