ओम साईं राम
आंख खुली जब आज सवेरे
मन में थे कई प्रश्न घनेरे
तुमको साईं कैसे पाऊं
ढूंढूं कहां कहां मैं जाऊं
यही सोच मैं घर से निकली
कानों में आ बोली तितली
वो देखो वो ठीक सामने
उस वृद्ध को शीघ्र थामने
जिस युवक ने बांह बढाई
उसमें ही है तेरा साईं
और वो देखो दूर वहां पर
मंदिर दिखता एक जहां पर
भूखों को जो रोटी देती
ढेर दुआएं उनकी लेती
उस बाला में साईं को मान
कर ले उसकी तू पहचान
दुखिया, पंगु और असहाय
इनकी सेवा में सुख पाय
उन सब में है साईं का वास
क्यूं ना तुझको है आभास
व्यर्थ भटकती यहां वहां
साईंमय है सकल जहां
केवल मन की आंखे खोल
मुख से साईं नाम ही बोल
मिट जायगा सब अंधियारा
नित देखेगी साईं प्यारा
~सांई सेविका
जय साईं राम