ॐ साईं राम
बाबा जी के भक्त -8
दासगणु जी महाभक्त थे
भक्तों के भक्तार
साईं की महिमा पहुँचाई
हर घर में हर द्वार
गणपत्त राव दत्तात्रेय
ये असली था नाम
कार्यरत थे पुलिस बल में
रक्षा का था काम
नानासाहेब चाँदोरकर के सँग
शिरडी धाम को आते थे
बाबा जी का प्रेम और आशिष
दोनो ही वो पाते थे
नाच और गाना प्रिय था उनको
पुलिस की नौकरी के साथ
गाँव जिले की नौटँकी में
खुश हो कर लेते थे भाग
परख लिया था बाबाजी ने
गणपतराव की क्षमता को
लेकिन गणपत्त समझ ना पाए
साईं नाथ की ममता को
बाबा जी चाहते थे, गणु जी
छोड दें अब पुलिस का काम
प्रभु को जीवन अर्पण करके
पाँवें श्री चरणों मे स्थान
परम देव ने लीला रच कर
उनको खींचा अपनी ओर
आशिष पा कर बाबा जी का
'दासगणु' जी हुए विभोर
त्यागपत्र दे दिया उन्होंने
छोड दिया था पुलिस का काम
साईं नाम का कीर्तन करते
घूमें गणु जी ग्राम ग्राम
अलख जगाई साईं नाम की
बहुत किया गुण गान
शब्दों के मोती चुन चुन कर
रचना करी महान
एक दिवस निश्चय किया
दासगणु ने आप
प्रयाग स्नान कर पाएँ तो
होंगे वो निष्पाप
देवा की आज्ञा लेने वो
पहुँचे द्वारका माई
बाबा जी की मधुर सी वाणी
उनको पडी सुनाई
इधर उधर क्यूँ व्यर्थ भटकते
मुझ पर करो विश्वास
प्रयाग काशी सारे तीरथ
पाओगे मेरे पास
दासगणु ने साईं चरणों में
श्रद्धा से शीश नवाया
गँगा जमना की धारा को
श्री चरणों में बहता पाया
भक्ति भाव से रोमाँचित हो
रोए 'गणु' बेहाल
"साईं स्त्रोतस्विनी" उनके मुख से
प्रवाहित हुई तत्काल
साईं नाम की ध्वजा को
पकड कर अपने हाथ
भवसागर से पार गए
भजते 'गणु' साईं नाथ
~Sai Sewika
जय साईं राम