Friday, February 19, 2010

बाबा जी के परम भक्त - 9---राधाकृष्णा माई जी

ॐ साईं राम

बाबा जी के परम भक्त - 9

राधाकृष्णा माई जी
परम भक्त थी बाबा की
शिरडी ही उनकी काशी थी
शिरडी ही उनका काबा थी

२५ वर्ष की आयु में वो
शिरडी धाम पधारी थी
भक्ति भाव अटूट था उनमें
पर किस्मत की मारी थी

सुन्दरा बाई नाम था असली
दुनिया का कुछ ज्ञान ना था
अति रुपवान थी वो पर
रँग रूप का मान ना था

सतरह वर्ष की आयु में ही
विवाह हो गया था उनका
लेकिन उनके भाग्य में
प्रणय बँध का सुख ना था

आठ दिवस पश्चात विवाह के
विधवा हो गई नार नवेली
दुख का सागर उमडा उन पर
दुनिया में रह गई अकेली

मोह भँग हो गया था उनका
चैन कहीं ना पाती थी
परम ईश को लगी ढूँढने
शहर शहर वो जाती थी

यूँ हीं ढूढती सदगुरू अपना
पहुँची थी वो शिरडी धाम
साईं नाथ का दरस जो पाया
आहत रूह को मिला आराम

अँतरयामी बाबा जी ने
हाल सभी था जान लिया
"राधामाई" कह कर पुकारा
और 'शाला' में स्थान दिया

अगले दस बरस तक भक्तिन
भूली अपना नाम ग्राम
केवल साईं नाथ की सेवा
बस ये ही था उनका काम

जिन जिन रस्तों से बाबा जी
गुज़रा करते थे दिन में
'माई' उनको झाड बुहार
स्वच्छ करती थी पल छिन्न में

चावडी में सोने की जब
बाबा की बारी होती थी
राधा माई उस दिन जतन से
द्वारकामाई को धोती थी

राधामाई की प्रेरणा से ही
गठित हुआ था साईं सँस्थान
धीरे धीरे दस दिश गूँजा
शिरडी धाम का पावन नाम

साईं सँस्थान की हर इक वस्तु
राधामाई ने सँजोयी थी
साईं की सेवा में "राधा"
मीरा बन कर खोई थी

निःस्वार्थ यूँ सेवा करती
राधाकृष्णा माई जी
अँतरँग भक्तिन कहलाई
साईं सर्व सहाई की

दस वर्ष पश्चात अचानक
उन्नीस सौ सोलह में वो
परम ईश को प्रिय हो गई
परम नींद में गई वो सो

निष्काम भक्ति का प्रतीक बना
राधाकृष्णा माई का जीवन
अर्पण करके साईं नाथ को
पाया अमोलक साईं नाम धन

~ Sai Sewika

जय साईं राम
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