ॐ साईं राम
मोहभँग
तुझसे अब ये दूरियाँ
मुझसे सही ना जाती
मोहिनी माया जगत की
पग पग पर भरमाती
माया साँपिन बन चढी
जकडा सकल शरीर
सुख पाने की चाह में
भटकी बनी अधीर
जग के जँतर मँतर में
भूली अपनी राह
कितने विषम विकार ओढे
ईर्ष्या, द्वेष और ढाह
विषय सुखों से मोहित हो
छिटकी तुझसे दूर
आशा,तृष्णा मान में
मैं तो हो गई चूर
राग रँग में मस्त हुई
समय गँवाया व्यर्थ
श्रद्धा, भक्ति, प्रेम के
समझ ना पाई अर्थ
मेरे 'मैं" ने ढाँप लिया
परम ईश का ज्ञान
तेरा रूप ओझल हुआ
बिसरी तेरा नाम
धीरे धीरे सुख सारे
बने गले की फाँस
जग के नाते रिश्तों से
पाया कटुतम त्रास
मोहभँग सब हो गया
गई आत्मा चेत
मन उचटा सँसार से
जैसे उड जाए रेत
पश्चाताप के आँसू से
भरे मेरे दो नैन
तुझे ढूँढने निकली मैं
पाऊँ कहीं ना चैन
पत्ता गिर कर डाल से
सूखे और मुरझाए
ऐसे तुझसे बिछड कर
भक्त नहीं जी पाए
क्षमा करो हे नाथ जी
मेरे पाप के कर्म
तुझसे बिछड, वियोग का
जाना मैनें मर्म
तू तो परम दयालु है
क्षमाशील करतार
प्रेम पगी सुदृष्टि से
अब तो मुझको तार
मानुष जीवन बीत रहा
बन कर दिन और साल
महा मृत्यु के आने से
पहले मुझे सँभाल
निज भक्ति का दान दे
माँगूँ ना कुछ और
तुझसे निकटता पाऊँ मैं
श्री चरणों की ठौर
~ Sai Sewika
जय साईं राम