Wednesday, May 27, 2009

ॐ सांई राम!!!

भव सागर~~~

आयेगा तूफान सांई तो मैं न कभी घबराऊंगी,
तेरा हाथ पकङ कर सांई पार उतर मैं तो जाऊंगी~

बहुत बङा है ये भव सागर सांई,
मैं हूँ मिट्टी की छोटी सी गागर सांई,
अकेले कितनी दूर इसे चला मैं पाऊंगी,
तेरा हाथ पकङ कर सांई.........

ठोकर खा कर टूट-फूट सकती है सांई,
जाल में ये किसी के फस सकती है सांई,
कैसे फिर मैं बता निकल यहां से पाऊं गी,
तेरा हाथ पकङ कर सांई........

चारों तरफ है पानी ही पानी सांई,
किस ओर मैं जाऊं बता कोई निशनी सांई,
किनारे को फिर शायद ढूढ मैं पाऊंगी,
तेरा हाथ पकङ कर सांई........


घिरे खङे है सांई काम, क्रोध, लोभ और मोह के राक्षस,
इनसे लङने का मुझे मैं नहीं है साहस,
दे ऐसा ज्ञान मुझे तो इन से लङ मैं पाऊंगी,
तेरा हाथ पकङ कर सांई........

तेरा साथ जो मैं पा लूं सांई,
सब भय को फिर मैं दूर भगा लूं सांई,
तेरी नगरी फिर तो पहुँच मैं पाउऊंगी,
तेरा हाथ पकङ कर सांई........

~सांईसुधा

जय सांई राम!!!
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