Saturday, May 30, 2009

ॐ साईं राम

काश अगर मैं सटका होती
साईं तेरे हाथ का
परम पुनीत होता ये जीवन
सुख पाती तव साथ का


मुझे हाथ में थामे रहते
मेरे प्यारे साईं राम
फिर कोई चाहत ना रहती
जीवन हो जाता निष्काम


कभी धरा पर पटक के सटका
जल के स्त्रोत बहाते तुम
अग्नि ज्वाला मद्धम होती
सटका जो लहराते तुम


'सटका लीला' करते साईं
निरख निरख जग सुख पाता
तेरे हाथ में आकर साईं
मेरा जीवन तर जाता


काश अगर मैं झोला होती
कन्धे पर लटकाते तुम
जहां जहां भी जाते साईं
मुझको भी ले जाते तुम


सारे सुख दुख भक्त जनों के
मुझमें तुम डाला करते
बडे जतन से, समझ के संपद
मझको नाथ संभाला करते


काश अगर मैं कफनी होती
मुझको धारण करते तुम
पतित जो जीवन इस दासी का
इसका तारण करते तुम


कैसा पावन जीवन होता
पाकर साईं संग तेरा
कतरे कतरे पर चढ जाता
प्रेम तेरा और रंग तेरा


और जो होती तेरी पादुका
श्री चरणों में रहती मैं
मुझसा भाग्य नहीं किसी का
ऐसा सबसे कहती मैं


श्री चरणों की पावन रज को
साईं निशदिन पाती मैं
धारण कर मस्तक पर, अपनी
किस्मत पर इतराती मैं


टमरैल या भिक्षा पात्र ही होती
साईं तेरी दासी तो
महा पुण्य प्रताप मिल जाता
नित दर्शन की प्यासी को


जाने कितने क्षुधित तृषित
तृप्ति आकर पा जाते
कौर कौर को तरस रहे जो
महाप्रसाद वो पा जाते


काश अगर जो ऐसा होता
धन्य धन्य हो जाती मैं
पद पंकज में आश्रय पाकर
चिर विश्रांति पाती मैं

~सांई सेविका


जय साईं राम
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