ॐ सांई राम!!!
सपने तो सपने होते है,
फिर भी देखते है हम सोते जागते,
फिर मैने भी एक सपना देखा,
सपने में कोई अपना देखा,
देखा, तो हैरान सी थी मैं,
बाबा उतर रहे थे आसमान से,
पंखों के आसन पर बैठे बाबा,
आँखों में प्यार और
हाथ में आशीर्वाद लिए,
गुरूवार का दिन था,
देखते ही मैं दौड़ने लगी इधर-उधर,
कहां जाऊं,कैसे रिझाऊं ,
कहाँ से लाऊँ फूल,
कहाँ से लाऊँ माला,
किस-किस को बुलाऊँ?
कैसे बुलाऊँ?
जी तो करता है ,
सारे जमाने को जगाऊं ,
दिखा दूँ अपने बाबा को
सिद्ध कर दूँ कि मैं सही हूँ।
देखा...आज आए है मेरे बाबा,
मेरे पास,
हमारे आँगन में खुद ही उतरे है ,
कूदने लगे प्रीती, मानव, वैभव, राज ;
बाबा के आस-पास,
तेज़ल को गुड्डा,
आयुश को हाथी,
तो किसी को शेर,
तो किसी को मिठाई,
सब को कुछ ना कुछ मिल रहा था,
मैं खङी थी चुपचाप,
केवल देख रही थी,
मुझे मालुम था,
जानती थी,
क्योंकि मैं सपने में थी,
पर,
आज मैने वो पाया जो मैं चाहती थी.....
जय सांई राम!!!