Friday, September 25, 2009

बाबा की यह व्यथा -2

ॐ साईं राम
बाबा की यह व्यथा -2
बडे दिनों के बाद कल
सपनें में बाबा आए
अंजलि भर श्री चरण में मैंने
श्रद्दा सुमन चढाए

हाथ जोड फिर पूछा उनसे
इतने दिन के बाद
भक्त जनों की साईं नाथ को
अब आई है याद

बाबा बोले निकल गया था
मैं कुछ ज़्यादा दूर
समझ रहा था खुद को मैं
व्याकुल और मजबूर

शीश झुकाकर मैंने पूछा
साईं ये समझा दो
परम विधाता व्याकुल कैसे
होते हैं बतलादो

अति मधुर वाणी में बाबा
बोले हौले हौले
अपने व्याकुल मन के भेद
बाबा ने यूँ खोले

मेरे प्रिय भक्तों ने मुझ पर
लगा दिए आरोप
उनके दिल मे क्रोध भरा है
और भरा आक्रोश

उनको लगता मेरे कारण
वो हर दुख सहते हैं
फिर भी जाने क्यूँ वो खुद को
भक्त मेरा कहते हैं

अक्सर कोई इच्छा ले कर
वो द्वार मेरे आते हैं
अगर ना पूरी कर पाऊँ तो
मुझ पर झल्लाते हैं

मन्नत में कभी कोई भक्त
चरित्र पारायण करता है
कभी कोई नव वार का व्रत
इस हेतु धरता है

फिर मुझसे मनचाहा पाना
उसका हक हो जाता है
पूजा और वरों का लिक्खा
भक्त जनों नें खाता है

नहीं जानते वो दुख उनका
मेरा दुख होता है
उनके दुख में मैं जगता हूँ
जब ये जग सोता है

मैं चाहता हूँ कर दूँ मैं
हर भक्त की इच्छा पूरी
लेकिन ऐसा ना करने की
मेरी है मजबूरी

समय से पहले,भाग्य से ज़्यादा
किसी को कुछ नहीं मिलता
कर्मों के ग़र बीज ना हों तो
कोई फूल नहीं खिलता

लेकिन मेरे भोले भक्त
मुझसे है आस लगाते
अपनी झोली फैलाते है
मेरे दर पर आते

मैं पूरी कोशिश करता हूँ
कर्म बन्ध मैं काटूँ
अपने भक्तों के जीवन में
ढेरों खुशियाँ बाँटू

लेकिन ऐसा ना कर पाऊँ
तो ये मन रोता है
भक्त समझते उनका साईं
कहीं पडा सोता है

अपने भक्तों को मैं कैसे
समझाऊँ ये बात
हानि लाभ जीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ

सब जीवों के कर्म फलों का
अपना ताना बाना है
जितना जिसकी बही में लिक्खा
उतना सुख दुख पाना है

इतना कह कर मौन हो गये
साईं पालन हारे
सबकी चिन्ता करने वाले
जन जन के रखवाले

श्री चरणों में मस्तक धरकर
और जोडकर हाथ
सविनय अरज करी तब मैंने
भक्ति भाव के साथ

गत जन्मों के कर्म बन्ध के
जितने भी है भार
ढोने को उन सब को साईं
हम भी है तैयार

बस अब कभी दुखी ना होना
साईं मेरे स्वामी
हँस कर दुख सहने की शक्ति
दे दो अंतरयामी

~ Sai Sewika
जय साई राम
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