ॐ साईं राम
साईं पावन प्रेम का
मुझे दीजिए ज्ञान
परमात्मा से प्रेम का
पाऊँ अनुपम दान
तुमसे ही बस प्रीति हो
मोह माया को त्याग
सच्ची लगन हो प्रभु से
भक्तिमय अनुराग
तेरे प्रेम में मैं पडूँ
भूल के जग के बन्ध
प्रेममय रस पान करूँ
पाऊँ मैं मकरन्द
तेरी प्रेम नगरी में मैं
करूँ प्रेम से वास
तुझ से जोडूँ नाता मैं
बंधू प्रेम के पाश
तेरे प्रेम में झंकृत हों
मेरे मन के तार
प्रेम नाद छिड जावे तो
छूटें सभी विकार
दुख आवे,सुख जावे चाहे
जीवन में सौ बार
तुमसे प्रीति कम ना होवे
बढता जाए प्यार
तेरे प्रेम वियोग में
मैं रोऊँ और बिलखूँ
प्रेम पगी दृष्टि से साईं
तुझको ही मैं निरखूँ
प्रियतम साईं तुम्हें लिखूँ
भक्ति भाव की पाती
शब्दों में हो प्रेम गंग
अमृत रस बरसाती
प्रेममयी भक्ति करूँ
पूर्ण भाव के संग
रोम रोम हो प्रेम भरा
मन में प्रेम उमंग
तुझमें श्रद्धा सबुरी ही
विशुद्ध प्रेम का रूप
तुझसे प्रेम विरक्त जो
पडे अन्ध के कूप
~ Sai Sewika
जय साईं राम