Friday, September 11, 2009

तन्हाई

ॐ साईं राम

वो अक्सर मुँह अँधेरे ही चली आती थी
मैं चाहूँ ना चाहूँ, मेरे पास ही मँडराती थी

मैंने कई बार उसे दुत्कारा और भगाया था
पर अक्सर उसे अपने नज़दीक ही पाया था

सच बताऊँ, मैं उससे बहुत डरती थी
वो आज ना आए, हर दिन दुआ करती थी

पर रोज़ की तरह, वो उस दिन भी चली आई
मुझे देखा और व्यंग्य से मुस्कराई

मैंने कहा- तुम रोज़ क्यूँ चली आती हो
जानती तो हो कि तुम मुझे बिल्कुल नहीं भाती हो

वैसे भी नहीं चाहिेए मुझे तु्म्हारा साथ
क्योंकि मेरे साथ हरदम हैं मेरे साईं नाथ

वो बोली दिल के बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है
पर सच बताऊँ, साईं से तुम्हारा प्यार अभी कच्चा है

अगर ऐसा ना होता तो मैं तुम्हारे वजूद पर छा नहीं सकती थी
और जिस दिल में साईं रहते हों,उसमें मैं समा नहीं सकती थी

अच्छा सच बताओ-
जब तुम नहीं देखती, तब भी तुम्हारे घर में टी वी कयूँ चलता रहता है
क्यूँ तुम भरम पालती हो कि तुम अकेली नहीं,तुम्हारे संग कोई रहता है

क्यूँ तुम्हारे कान दरवाज़े की घंटी पर लगे रहते हैं
और क्यूँ अक्सर तुम्हारी आँखों से आँसू बहते हैं

वैसे तुम ही नहीं, बहुत से लोग मुझ से घबराते हैं
और कई तो भीड में भी मुझे अपने साथ ही पाते हैं

यह कह कर तन्हाई "खामोश" हो गई, और मुझे निहारा
पहली बार मुझे उसका साथ लगा अनोखा और प्यारा

उसने आज मुझे एक कडवा सच बतलाया था
पल भर में ही दूर हो गया मायूसियों का साया था

मैनें कहा शुक्रिया तन्हाई, तुम्हारी बातों ने आज मुझे चेताया है
और साईं साथ हों तो तुम्हारा वजूद नहीं ये सच मुझे समझाया है

अब तुम मेरे आस पास रहो मुझे फर्क नहीं पडता
और तुम कहीं आ ना जाओ,ये सोच कर दिल नहीं डरता

अब मैं और मेरा साईं अक्सर, बातें करते रहते हैं
और सुना है मेरे पीछे लोग मुझे दिवाना कहते हैं

~Sai Sewika

जय साईं राम
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