ॐ साईं राम !!!
क्या करूं कैसे संभालू,
ये मन संभले न संभलता है,
जितना चांहू बस में करना,
उतना उङता जाता है,
जितना चांहू बाँध के रखना,
उतने पर फैलाता है,
छोटा कितना है ये मन,
पर न जाने कितने पंख फैलाए हैं,
इस मन का पेट कभी न भरता,
रोज़ नई ख्वाइश रखता है,
जब मैं चैन से बैठना चाहूं
यही मुझे तंग करता है,
मेरा मन तो चाहे कि मन ही न हो,
बस फिर कोई झंझट ही न हो,
हे सांई यह कृपा कर दो,
इस मन को बस में कर दो,
इसके पंख काट डालो या फिर मुझे तुम अपना लो~~~
जय साईं राम!!!
क्या करूं कैसे संभालू,
ये मन संभले न संभलता है,
जितना चांहू बस में करना,
उतना उङता जाता है,
जितना चांहू बाँध के रखना,
उतने पर फैलाता है,
छोटा कितना है ये मन,
पर न जाने कितने पंख फैलाए हैं,
इस मन का पेट कभी न भरता,
रोज़ नई ख्वाइश रखता है,
जब मैं चैन से बैठना चाहूं
यही मुझे तंग करता है,
मेरा मन तो चाहे कि मन ही न हो,
बस फिर कोई झंझट ही न हो,
हे सांई यह कृपा कर दो,
इस मन को बस में कर दो,
इसके पंख काट डालो या फिर मुझे तुम अपना लो~~~
जय साईं राम!!!