ॐ साईं राम
काश अगर ऐसा होता
बाबा आज भी द्वारकामाई में
सशरीर विराजित होते
जो भी शिरडी जाता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
बाबा के सदेह दर्शन पाता॰॰॰॰॰॰॰॰
अब यूँ ना कहिएगा कि
बाबा हैं ना सब तरफ
बस मन की आँखें चाहिए
उन्हें भीतर खोजूँ वगैरहा वगैरहा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मुझे तन की आँखों से देखना है उन्हें॰॰॰॰॰॰
आमने सामने॰॰॰॰जेसे देखते थे सब भक्त
जो उनके साथ थे॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता
आज भी समाधि मँदिर की जगह पर
बाबा के हाथों से सींची, रोपी,
पुष्पित, पल्लवित फुलवारी होती
हम उसमें से फूल तोडते,गूँथते,
और प्रेम से बनाई माला
बाबा के गले में पहनाते॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰� �
अब यूँ ना कहिएगा कि
भावों की माला बनाकर
बाबा को पहना दी
तो समझो बाबा ने माला पहन ली॰॰॰
मुझे सचमुच दुनिया के सुन्दरतम फूलों से
गूँथी माला बाबा को पहनानी है॰॰॰॰॰॰॰॰
और फिर देर तक उन्हें निहारना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता कि
चावडी के जुलूस में॰॰॰॰॰॰
बाबा के सन्मुख चँवर ढुलाने का अवसर
हमें भी मिलता॰॰॰॰॰
बाबा हौले हौले श्री चरण बढाते
लाल गलीचे पर चलते
तो हम भी उन के पीछे चलते
अब यूँ ना कहिएगा कि
शिरडी में पालकी यात्रा में
शामिल हो जाओ॰॰॰॰॰॰॰या फिर
हर रात सोने से पहले
चावडी समारोह का दृश्य
आँखों के सन्मुख लाऊँ
और समझूँ कि मैं
उस जुलूस में सम्मिलित थी॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मुझे सच में चावडी जुलूस में
अपने बाबा के कोमल पैरों तले
गुलाब की पँखुडियों को बिछाना है॰॰॰॰॰॰॰
उनके श्री चरणों की धूल को
अपने माथे से लगाना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता कि
बाबा द्वारकामाई में बैठ
श्री मुख से प्रवचन सुनाते,
अपने अनोखे अँदाज़ में कहानियाँ कहते,
और मैं सब भक्तों के बीच बैठी
बाबा की मधुर वाणी सुनती,
उनकी ठिठोली पर हँसती,
उनके गुस्से पर सहमती॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
अब यूँ ना कहिएगा कि
मैं साईं सच्चरित्र का पाठ करके ही
साईं लीलाओं का आनँद लूँ
और भक्तों के अनुभव पढकर
मालिक की कृपाओं को अनुभव करूँ
सच तो ये है कि जब जब भी मैनें
बाबा के चरित्र का पाठ किया है,
उनकी लीलाओं का अमृत पान किया है॰॰॰॰॰॰
तब तब ही जैसे कोई अँदर से चीत्कार करता है॰॰॰॰॰
क्यों मै सौ बरस पहले ना जन्मी॰॰॰॰॰॰॰॰
क्यों समय वहीं रूक नहीं गया॰॰॰॰॰॰
क्यों॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰� �॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰� ��॰॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता
बाबा आज भी द्वारकामाई में
सशरीर विराजित होते
जो भी शिरडी जाता॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
बाबा के सदेह दर्शन पाता॰॰॰॰॰॰॰॰
अब यूँ ना कहिएगा कि
बाबा हैं ना सब तरफ
बस मन की आँखें चाहिए
उन्हें भीतर खोजूँ वगैरहा वगैरहा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मुझे तन की आँखों से देखना है उन्हें॰॰॰॰॰॰
आमने सामने॰॰॰॰जेसे देखते थे सब भक्त
जो उनके साथ थे॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता
आज भी समाधि मँदिर की जगह पर
बाबा के हाथों से सींची, रोपी,
पुष्पित, पल्लवित फुलवारी होती
हम उसमें से फूल तोडते,गूँथते,
और प्रेम से बनाई माला
बाबा के गले में पहनाते॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰� �
अब यूँ ना कहिएगा कि
भावों की माला बनाकर
बाबा को पहना दी
तो समझो बाबा ने माला पहन ली॰॰॰
मुझे सचमुच दुनिया के सुन्दरतम फूलों से
गूँथी माला बाबा को पहनानी है॰॰॰॰॰॰॰॰
और फिर देर तक उन्हें निहारना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता कि
चावडी के जुलूस में॰॰॰॰॰॰
बाबा के सन्मुख चँवर ढुलाने का अवसर
हमें भी मिलता॰॰॰॰॰
बाबा हौले हौले श्री चरण बढाते
लाल गलीचे पर चलते
तो हम भी उन के पीछे चलते
अब यूँ ना कहिएगा कि
शिरडी में पालकी यात्रा में
शामिल हो जाओ॰॰॰॰॰॰॰या फिर
हर रात सोने से पहले
चावडी समारोह का दृश्य
आँखों के सन्मुख लाऊँ
और समझूँ कि मैं
उस जुलूस में सम्मिलित थी॰॰॰॰॰॰॰॰॰
मुझे सच में चावडी जुलूस में
अपने बाबा के कोमल पैरों तले
गुलाब की पँखुडियों को बिछाना है॰॰॰॰॰॰॰
उनके श्री चरणों की धूल को
अपने माथे से लगाना है॰॰॰॰॰॰॰॰॰
काश अगर ऐसा होता कि
बाबा द्वारकामाई में बैठ
श्री मुख से प्रवचन सुनाते,
अपने अनोखे अँदाज़ में कहानियाँ कहते,
और मैं सब भक्तों के बीच बैठी
बाबा की मधुर वाणी सुनती,
उनकी ठिठोली पर हँसती,
उनके गुस्से पर सहमती॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
अब यूँ ना कहिएगा कि
मैं साईं सच्चरित्र का पाठ करके ही
साईं लीलाओं का आनँद लूँ
और भक्तों के अनुभव पढकर
मालिक की कृपाओं को अनुभव करूँ
सच तो ये है कि जब जब भी मैनें
बाबा के चरित्र का पाठ किया है,
उनकी लीलाओं का अमृत पान किया है॰॰॰॰॰॰
तब तब ही जैसे कोई अँदर से चीत्कार करता है॰॰॰॰॰
क्यों मै सौ बरस पहले ना जन्मी॰॰॰॰॰॰॰॰
क्यों समय वहीं रूक नहीं गया॰॰॰॰॰॰
क्यों॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰� �॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰� ��॰॰॰॰॰॰॰॰
~Saisewika
जय साईं राम
जय साईं राम