ओम साईं राम
बाबा जी के दोहे----------
मन्दिर मस्जिद जोड के
द्वारका देइ बनाय
सबका मालिक एक है
साईं दियो समझाय
गोदावरी के तीर की
महिमा दस दिस छाई
प्रभु स्वयं ही प्रगट हुए
नाम धराया साईं
तीन वाडों के बीच में
हरि करते विश्राम
तांता भक्तों का लगा
शिरडी बन गई धाम
हिन्दु हैं या यवन हैं
बाबा नहीं बतलाए
जैसी जाकी भावना
तैसो दरशन पाए
चन्दन उत्सव जोड दिया
रामनवमी के संग
हिन्दु मुसलिम प्रेम का
खूब जमा फिर रंग
पाप ताप संताप का
करने हेतु अंत
बाबा चक्की पीसते
देखे हेमाडपंत
चक्की में आटा पिसा
मेढ दियो बिख्रराय
शिरडी से सभी व्याधी को
साईं दियो भगाय
पोथी पढे नहीं होत है
अग्यानी को ग्यान
सदगुरु जिसके ह्रदय बसे
ताको ग्यानी जान
द्वारकामाई की गोद मे
बैठो कर विश्वास
सबके पापों का माई
कर देती है नाश
समाधि मंदिर की सीढी पर
रख देते जो पांव
उनके जीवन दुख का
रहे ना कोई ठांव
सब जीवों में देखे जो
साईं राम का वास
उसके ह्रदय में साईं
आप ही करे निवास
दास गणु क्यूं जात हो
प्रयाग काशी आप
गंगा जमना यहीं रहे
श्री चरणों में व्याप
तेली तुमने दिया नहीं
साईंनाथ को तेल
पानी से दीपक जले
लीला के थे खेल
चोलकर शक्कर छोड के
जोडे पाई पाई
अंतरयामी साईं ने
कर दीन्ही भरपाई
जो जन की निंदा करे
ऐसो ही गति पाए
जैसे कूडा ढेर से
शूकर विष्ठा खाए
पूजन चिन्तन मनन का
जो करता अभ्यास
साईं उसके साथ हैं
साईं उसके पास
मर्म दक्षिणा जान लो
पूरा लो पहचान
कर्मबन्ध के काटने
साईं लेते दान
नश्वर ये संसार है
मोह माया को त्याग
यही बताने को साईं
ऊदी दियो परसाद
धूप दीप का थाल ले
जोग खडे प्रभु द्वार
तांत्या चंवर ढुला रहे
नाना है बलिहार
~सांई सेविका
जय साईं राम