ॐ सांई राम~~~
मिट्टी का खिलौना~~~
सांई मुझे सिर्फ मिट्टी का खिलौना ना समझ
इसमे आवाज़ भी है और ज़ज़्बात भी है,
सांसों की डोर से बान्धा है जब से तूने इसे,
होता इसे हर दर्द का आभास भी है~
आते तुझे है खेल बहुत ही सारे सांई,
आसमान पर है जितने भी सितारें सांई,
खेलने वाले पर क्या बीती इसका तुझे
कुछ आहास भी है,
हर दर्द का .............
तूने खिलाया है तो मैं खेली हूँ सांई,
भीङ में रही हूँ या मैं रही हूँ अकेली सांई,
तूँ ही बता क्या मेरे बस में,
मेरे यह हालात भी है,
हर दर्द का .............
सांई तूँ कहता है सब कुछ मैं करता हूँ,
आपने किया पर फिर मैं क्यूं इतना रोता हूँ,
आपने किया पर तूँ कुछ ना बोले और मेरे
किये पर हो जाता तूँ नाराज़ भी है,
हर दर्द का .............
सहन किया है सब कुछ सहन करूंगी,
पर अब तुझसे ना फरियाद करूंगी,
इतना ही बहुत है तूँ खेल रहा है इस बार
कि मुझे तुझ से आस भी है,
हर दर्द का .............
~सांईसुधा
जय सांई राम!!!