ओम साईं राम
कैसे करूं तुम्हारी पूजा
कल रात मेरे सपने मे
फिर से बाबा आए
हाथ जोडकर खडी रही मैं
जडवत शीश नवाए
बाबा बोले प्रश्न पूछ ले
कर ना तू संकोच
जो भी तेरे मन में है
सब कह दे यूं ना सोच
श्री चरणों मे नत होकर मैं
बोली मेरे स्वामी
कुछ शंकाए मन में हैं
सुलझाओ अंतरयामी
कैसे करूं तुम्हारी पूजा
साईं ये बतलादो
विधि विधान जैसे भी हों
भक्तों को समझा दो
तुमको अर्पण करूं मैं बाबा
कैसे हों वो फूल
कोई ऐसा फूल नहीं है
जिसमें ना हों शूल
धूप दीप कहां से लाऊं
जिनमें सुगंध हो पूरी
बिना सुगंध के मेरी पूजा
रह ना जाए अधूरी
कैसे स्वर में मधुर आरती
गा के तुम्हें पुकारूं
कागा जैसी मेरी वाणी
कैसे इसे सुधारूं
नैवेद्य बनाऊं कैसा जो हो
मनभावन प्रभु तेरा
स्वीकारो तुम खुशी खुशी से
जो चढावा हो मेरा
इन सारे प्रश्नों को सुनकर
बाबा जी मुस्काए
फिर पूजा कैसी हो इसके
सभी भेद समझाए
बोले मुझको नहीं चाहिए
पुष्पों की कोई माला
अपने मन को "सुमन" बना कर
अर्पित कर दो बाला
धूप दीप या बाती की
मुझे नही दरकार
श्रद्धा और सबूरी ही मैं
कर लेता स्वीकार
दे सको तो अपने सारे अवगुण
मेरे आगे डालो
सेवा और त्याग का मार्ग
जीवन में अपनालो
वाणी कर लो ऐसी कि तुम
जब भी मुख को खोलो
हर प्राणी से मधुर स्वरों में
मीठी बातें बोलो
कभी किसी का दिल ना तोडो
कभी ना करो विवाद
तेरे कारण किसी जीव को
कभी ना होवे विषाद
सीधी सच्ची भक्ति की राह
दिखलाता हूं तुझको
पूजा के कोई आडम्बर
नहीं चाहिए मुझको
पूर्ण भाव से नत हो कर के
करो एक ही बार
ऐसा श्रद्धामय वंदन मैं
कर लेता स्वीकार
~सांई सेविका
जय साईं राम