Wednesday, July 8, 2009

ॐ साईं राम

कल रात सपने में मैनें
फिर बाबा को पुकारा
कई प्रश्न पूछने हैं
आ जाओ ना दोबारा

आवाज़ मेरी सुनकर
बाबाजी चले आए
प्रश्नों की झडी लगादी
बिन क्षण भी इक गवाए

जो भी था मेरे मन में
उनके समक्ष रखा
फिर साईं की वाणी का
सुमधुर सा रस चक्खा

मैंने कहा ये उनसे
साईं इतना तो बता दो
मेरी भक्ती में क्या कमी है
ये मुझको भी जता तो

कभी भी बाबा क्यूँ तुम
मेरे सामने ना आते
क्यूँ चमत्कार कोई
मुझको नहीं दिखलाते

सोती हूँ जागती हूँ
मैं तेरे ही सहारे
नख शिख से जानता है
मुझको तू साईं प्यारे

फिर क्यूँ नहीं दिखलाते
तुम लीला कोई न्यारी
अदभुत सा खेल कोई
दिखलादो अबकी बारी

वो फूलों की जो माला
मैनें तुम्हें चढाई
मैं देखती ही रह गयी
पर तुमने ना बढाई

मेरे सामने हे दाता
तुमने ना आँख खोली
इक पलक ही झपका दो
मैं कितना तुमसे बोली

साईं तेरे लबों को
मैं एक टक निहारी
कभी ना बोले मुझसे
तुम बाबा एक बारी

मेरे घर का हर इक कोना
मैंने तो छान डाला
तुम कहीं तो दिखोगे
ये वहम मैंने पाला

पर तुम दिखे ना मुझको
ना निशाँ कोई छोडा
कैसे बताऊँ साईं
इस दिल को तुमने तोडा

ये बात मेरी सुनकर
बाबाजी मुस्कुराए
इक क्षण में दूर हो गए
गमो के जो थे साए

सुमधुर वाणी में फिर
बाबाजी मुझसे बोले
कच्ची तुम्हारी भक्ती
जो क्षण क्षण में है डोले

क्यूँ देखना चाहती हो
तुम चमत्कार मेरा
विशवास उठ गया क्या
मुझसे ही कहो तेरा

क्या बार बार मुझको
परीक्षा देनी होगी
क्यूँ चमत्कार चाहता
आता है दर पे जो भी

मैं भी तो चाहता हूँ
कई भक्त ऐसे प्यारे
म्हालसापति जैसे
शामा के जैसे न्यारे

इच्छा रहित करी थी
उन सबने मेरी भक्ती
ना आशा थी ना तृष्णा
ना थी कोई आसक्ती

जो नहीं दिखाउंगा
मैं चमत्कार अपना
तो भूलोगी क्या मुझको
समझ के कोई सपना

चमत्कार की तुम
आशाएं ना यूँ पालो
चंचल अधीर मन को
साधो और संभालो

भक्ति बढाओ अपनी
ये माला, पलक छोडो
श्रधा से मन को भर के
तुम मेरी ओर मोडो



मैं देह में नहीं पर
भक्तों के दरम्यां हूँ
ह्रदय टटोलो अपना
पाओगी मैं वहाँ हूँ

~सांई सेविका

जय साईं राम
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