ॐ सांई राम!!!
आज बैठी यूँ ही सोच रही मैं,
अपने मन की तुलना किससे करूं मैं??
क्या पुकारूं इसे , क्या इसका नाम धरूं??
फिर सोचा, इस मन का मैं गिरगिट नाम धरूं~
गिरगिट की तरह रंग ये बदलता है~
कैसे कैसे रंग बनाए,क्या ढग दिखाता है!!!
फिर लगता पंतग जैसा,
जितना खीचूं उतना उङता~
ज़रा ढीलं दूँ,तो फिर कट जात...
फिर सोचा , लगता कभी जिद्दी बच्चा~
कैसी कैसी जिद्द ये करता~
जो न मिल सके वही पाना चाहता....
फिर लगता मुझे तितली जैसा~
जैसा चाहे उङना चाहता~
हर फूल पर बैठना चाहता~
सारा रस ये पीना चाहता~
ज़रा सी मुश्किल हो जाए तो~
तितली की तरह फङफङाता....
एक मन और रूप अनेक,
मेरी समझ में न आया है....
प्रभु ही जाने ये क्या है~
जिसने इसे बनाया है~
जय सांई राम!!!
आज बैठी यूँ ही सोच रही मैं,
अपने मन की तुलना किससे करूं मैं??
क्या पुकारूं इसे , क्या इसका नाम धरूं??
फिर सोचा, इस मन का मैं गिरगिट नाम धरूं~
गिरगिट की तरह रंग ये बदलता है~
कैसे कैसे रंग बनाए,क्या ढग दिखाता है!!!
फिर लगता पंतग जैसा,
जितना खीचूं उतना उङता~
ज़रा ढीलं दूँ,तो फिर कट जात...
फिर सोचा , लगता कभी जिद्दी बच्चा~
कैसी कैसी जिद्द ये करता~
जो न मिल सके वही पाना चाहता....
फिर लगता मुझे तितली जैसा~
जैसा चाहे उङना चाहता~
हर फूल पर बैठना चाहता~
सारा रस ये पीना चाहता~
ज़रा सी मुश्किल हो जाए तो~
तितली की तरह फङफङाता....
एक मन और रूप अनेक,
मेरी समझ में न आया है....
प्रभु ही जाने ये क्या है~
जिसने इसे बनाया है~
जय सांई राम!!!