ॐ साईं राम!!!
संसार के इस सागर की~
मैं इक छोटी सी मीन~
बड़ी लहरे, कठोर चट्टानें~
मैं डरी फिरूं बनी दीन~
जिधर भी देखूं अजीब नज़ारा~
गहरा पानी, भयानक धारा~
हर तरफ घिरी बड़ी मीनों से~
मुझे न सूझे कोई चारा~
जीवन बना इक जाल है~
जिसमें मैं फसी हूँ~
अब थक गयी हूँ तैर तैर कर ~
चाहूँ बस अब भाव पार किनारा~~
जय साईं राम!!!
संसार के इस सागर की~
मैं इक छोटी सी मीन~
बड़ी लहरे, कठोर चट्टानें~
मैं डरी फिरूं बनी दीन~
जिधर भी देखूं अजीब नज़ारा~
गहरा पानी, भयानक धारा~
हर तरफ घिरी बड़ी मीनों से~
मुझे न सूझे कोई चारा~
जीवन बना इक जाल है~
जिसमें मैं फसी हूँ~
अब थक गयी हूँ तैर तैर कर ~
चाहूँ बस अब भाव पार किनारा~~
जय साईं राम!!!